‘‘आपके नृत्य के बारे में तो मैं कुछ नहीं जानता, लेकिन आप भाषण ज़रूर अच्छा दे लेती हैं.’’ वह जज व्यंग्य से मुस्कुराया, फिर बोला, ‘‘लगता है बहुत कुछ जानती हैं आप शास्त्रीय संगीत के बारे में?’’ ‘‘शास्त्रीय संगीत तो अनंत सागर से भी विशाल है. मैं उसके बारे में भला कितना जान सकती हूं? हां, उसके अमृत की चंद बूंदों को चुनने का सौभाग्य मुझे अवश्य मिला है.’’ जज के व्यंग्यबाणों से अविचलित श्वेता ने शांत स्वर में उत्तर दिया.
किंतु श्वेता अपने निर्णय पर अडिग थी. प्रखर के समझाने-बुझाने का कोई असर नहीं पड़ा. अंततः प्रखर को हार माननी पड़ी, क्यूंकि श्वेता से अलग उसने अपने अस्तित्व की कभी कल्पना ही न की थी. अतः न चाहते हुए भी वह उसे ऑडिशन के लिए ले गया. वहां तो जैसे पूरा शहर उमड़ पड़ा था. जहां तक दृष्टि जा सकती थी नरमुंडों का सैलाब दिखाई पड़ रहा था. शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों में श्वेता और प्रखर को अब सम्मान के साथ अग्रिम पंक्ति में बैठाया जाता था, किंतु यहां तो उन्हें पहचानने वाला भी कोई न था. बहुत मुश्किलों से श्वेता को ऑडिशन कक्ष में प्रवेश मिल सका. ‘‘मिस श्वेता, आप कौन-सा नृत्य प्रस्तुत करेंगी?’’ एक जज ने पूछा. ‘‘कत्थक!’’ ‘‘कत्थक?’’ जज अपनी कुर्सी से लगभग उछल पड़ा, ‘‘मैडम, क्या आपको पता नहीं कि यह मुंबइया फिल्मी गीतों के नाच-गानों का कार्यक्रम है?" ‘‘जानती हूं.’’ श्वेता आत्मविश्वास से मुस्कुराई. ‘‘फिर भी यहां आ गईं?’’ दूसरे जज ने भी आश्चर्य से उसकी ओर देखा, फिर बोला, ‘‘आपने यह सोचा भी कैसे कि हम आपको यहां कथक प्रस्तुत करने की अनुमति दे देगें.’’ ‘‘मैं शास्त्रीय संगीत को चारदीवारियों से बाहर लाकर लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाना चाहती हूं. आपका यह कार्यक्रम विश्व के 100 से भी अधिक देशों में देखा जाता है. यदि मुझे यहां नृत्य करने का अवसर मिला, तो शास्त्रीय नृत्य की लोकप्रियता जन-जन तक पहुंच सकती है. मुझे विश्वास है कि आप लोग मुझे इस पवित्र अभियान को पूर्ण करने का अवसर अवश्य प्रदान करेगें.’’ श्वेता एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बोली. ‘‘आपके नृत्य के बारे में तो मैं कुछ नहीं जानता, लेकिन आप भाषण ज़रूर अच्छा दे लेती हैं.’’ वह जज व्यंग्य से मुस्कुराया, फिर बोला, ‘‘लगता है बहुत कुछ जानती हैं आप शास्त्रीय संगीत के बारे में?’’ ‘‘शास्त्रीय संगीत तो अनंत सागर से भी विशाल है. मैं उसके बारे में भला कितना जान सकती हूं? हां, उसके अमृत की चंद बूंदों को चुनने का सौभाग्य मुझे अवश्य मिला है.’’ जज के व्यंग्यबाणों से अविचलित श्वेता ने शांत स्वर में उत्तर दिया. ‘‘तो फिर चलिए उन चंद बूंदों के दर्शन हम भी कर लेते हैं.’’ वह जज एक बार फिर व्यंग्य से मुस्कुराया, फिर बोला, "किस वेद में संगीत सामग्री मिलती है?’’ यह भी पढ़ें: आज़ाद भारत की आधी आबादी का सच (Women's Place In Indian Society Today) ‘‘सामवेद.’’ श्वेता ने तत्काल उत्तर दिया. ‘‘किस गायन शैली के लिए पखावज द्वारा संगति होनी चाहिए?’’ ‘‘ध्रुपद-धमार.’’ ‘‘धमार ताल का आविष्कार किसने किया?’’ ‘‘बैजू बावरा ने.’’ ‘‘भीमपलासी किस थाट का राग है?" ‘‘काफी.’' '‘राग केदार की उत्पत्ति किस थाट से हुई है?’’ ‘‘कल्याण.’’ ‘‘राग भैरवी में कौन से स्वर कोमल लगते हैं?’’ ‘‘रे ग ध नि." ‘‘हिंदुस्तानी या उत्तरी संगीत में कौन सी दो स्वरलिपि पद्धतियां हैं?" ‘‘भातखण्डे-विष्णु दिगम्बर।’’ ‘‘दक्षिणी संगीत में एक सप्तक में कितनी श्रुतियां मानी जाती हैं?’’ ‘‘33’’ श्वेता ने क्षणांस में उत्तर दिया. ‘‘आधुनिक राग में कौन सा स्वर कभी वर्जित नहीं होता?’’ ‘‘सा’’ श्वेता का चेहरा आत्मविश्वास से जगमगा रहा था. वह जज फिल्मों का एक लोकप्रिय संगीतकार था, किन्तु उसे शास्त्रीय संगीत का भी अच्छा ज्ञान था. वह एक के बाद एक प्रश्न पूछता जा रहा था और श्वेता बिना एक पल गंवाए उनका उत्तर देती जा रही थी. उस जज के चेहरे पर अनिर्णय के चिह्न उभरने लगे. शायद तय नहीं कर पा रहा था कि प्रश्नों की बौछार जारी रखे या रूक जाए. तभी तीसरे जज ने मोर्चा संभालते हुए कहा, ‘‘संगीत का किताबी ज्ञान आपका काफ़ी अच्छा मालूम पड़ता है, लेकिन मैं जिस गाने पर कहूं क्या आप उस पर कत्थक कर सकती हैं?’’ ‘‘पूरी श्रद्धा से करूंगी.’’ श्वेता ने हाथ जोड़े. ‘‘तो फिर चलिए ‘शोले’ के लिए पंचमदा द्वारा बनाई गई धुन महबूबा ओ महबूबा... पर नृत्य करिए.’’ जज के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तैर गई. श्वेता के पूरे शरीर में सिरहन सी दौड़ गई. ठेठ पश्चिमी संगीत पर आधारित भड़काऊ नृत्य की बोलों पर कत्थक की बात कल्पना से भी परे थी. उसके मस्तक पर पसीने की बूंदे छलछला आईं. "आप इतना घबरा क्यूं रही हैं? क्या प्रतियोगिता प्रारम्भ होने से पहले ही पराजय स्वीकार कर ली.’’ जज के स्वर में तिरस्कार के भाव उभर आए. श्वेता ने अपनी पलकों को बंद करके पल भर के लिए कुछ सोचा फिर बोली, ‘‘पंचम दा के इस गाने में संतूर बजाया था पंडित शिव कुमार शर्मा ने. लोग पंडितजी को संतूर सम्राट मानते हैं, लेकिन मैं उन्हें संगीत का देवता मानती हूं. इसलिए अपने देवता के सम्मान में मैं इस गाने की धुन पर नृत्य अवश्य करूंगी.’’ इतना कह उसने हाथ जोड़ तीनों जजों को प्रणाम किया फिर पैरों में बंधे घुंघरूओं को हिला ‘ततकार’ लिया ता थेई थेई तत... आ थेई थेई तत... ता थेई थेई तत... आ थेई थेई तत... पल भर के लिए लगा कि श्वेता का स्वप्न बिखर जाएगा. इस गीत पर कत्थक कर पाना संभव नहीं है, किंतु अगले ही पल श्वेता ने ‘ठाट’ लगाकर अपने अंग, उपांग एवं प्रत्यंगों का लयबद्ध परिचालन प्रारम्भ कर दिया. एक पल के लिए उसका शरीर चपल हिरणी सा कुलांचे भरता, तो अगले ही पल कमल दल की तरह झूमने लगता. अपने नेत्र, भौंओं और ग्रीवा के संचालन से कभी वह गीत के बोलों पर भाव-भंगिमा प्रस्तुत करती, तो कभी हाथों और पैरों के अद्भुत संचालन से गीत के बोलों के साथ अनोखा संगम प्रस्तुत करने लगती. उसका एक-एक अंग गीत के बोलों के साथ थिरक रहा था और घुंघरूओं की झंकार हृदय को झंकृत कर रही थी. अद्भुत, अकल्पनीय और अविश्वसनीय. पाश्चात्य धुन पर कत्थक का अविस्मरणीय प्रस्तुतीकरण. एक ऐसा सत्य जिसकी कभी परिकल्पना भी नहीं की गई होगी, किंतु वह आश्चर्यजनक यथार्थ बन अवतरित हो रहा था. अचानक उस जज ने हाथ उठाकर इशारा किया, तो संगीत की धुन रूक गई. किंतु लयबद्ध श्वेता पूर्ववत नृत्य करती रही. उसका शरीर पसीने से लथपथ हो चुका था, किंतु वह थमने का नाम नहीं ले रही थी. ‘‘श्वेताजी, अपने कदमों को विश्राम दीजिए.’’ वह जज अपनी कुर्सी से उतर कर मंच पर आ गया, तो श्वेता विस्मय भरी दृष्टि से उसकी ओर देखने लगी. "भूतो न भविष्यते. पाश्चात्य और शास्त्रीय संगति की ऐसी अद्भुत जुगलबंदी का साक्ष्य बनना मेरे जीवन का श्रेष्ठतम पल है. हम निर्णायकों में इतनी सामर्थ्य नहीं कि आपकी प्रतिभा का मूल्यांकन कर सकें. अंजाने में हमने आपका अपमान करने की जो धृष्टता की है उसके लिए हमें क्षमा करिएगा.’’ उस जज के स्वर में श्रद्धा और पाश्चाताप के मिश्रित भाव समाए हुए थे. ‘‘हमारे बस में होता, तो हम अभी ही आपको इस प्रतियोगिता की विजेता घोषित कर देते. किंतु यह एक व्यवसायिक कार्यक्रम है, इसलिए सोपान दर सोपान आपकी प्रतिभा को परीक्षा की कसौटी पर परखने की औपचारिकता निभाना हमारी विवशता है.’’ पहले जज ने भी क़रीब आते हुए कहा. ‘‘सर, मैं यहां विजेता बनने या किसी पुरस्कार की अभिलाषा से नहीं आई हूं. मेरा ध्येय तो शास्त्रीय संगीत को लोकप्रियता के शिखर पर आसीन कर जन-जन के हृदय तक पहुंचाना है, इसलिए मैं नृत्य करूंगी, हर एपीसोड में करूंगी और इसका अवसर प्रदान करने के लिए आप लोगों की सदैव ऋणी रहूंगी.’’ श्वेता के चेहरे पर संतुष्टि के भाव छा गए. जजों की भविष्यवाणी सही सिद्ध हुई. प्रतियोगिता के प्रारम्भ में तो श्वेता के नृत्यों को जनता की सराहना नहीं मिली उलटे उपहास ही हुआ. किंतु धीरे-धीरे उसका जादू सबके सिर चढ़ कर बोलने लगा. जिस दिन उसने राग ‘गारा’ पर आधारित फिल्म ‘मुगल-ए-आज़म’ का नृत्य मोहे पनघट पर नंदलाल छेड़ गयो रे... प्रस्तुत किया उस दिन उसे सर्वाधिक वोट मिले. राग ‘अदाना’ पर आधारित झनक-झनक बाजे पायलिया.., राग ‘भैरव’ पर आधारित ‘बैजू-बावरा’ का मोहे भूल गए सांवरिया... राग ‘बागेश्री’ पर आधारित फिल्म ‘आज़ाद’ का गीत राधा न बोले न बोले... के प्रस्तुतिकरण के साथ उसकी लोकप्रियता चरम पर पहुंचने लगी. आयोजकों की अनुमति से अब वह प्री-रिकार्डेड गीतों पर नृत्य करने की बजाय स्वयं अपने गीत लाइव गाने भी लगी थी. शास्त्रीय संगीत को इस लोकप्रिय ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है इसकी पहले कभी कल्पना भी नहीं की गई थी. पत्र-पत्रिकाओं में उसके अदभुत नृत्यों की चर्चाएं होने लगीं. उसने जब राग ‘बसंत’ पर आधारित ‘देवदास’ के गीत काहे छेड़ छेड़ मोहे गरवा लगाई... और राग ‘किरवानी‘ पर आधारित ‘बाजीराव-मस्तानी’ का गीत ये दीवानी मस्तानी हो गई... पर नृत्य प्रस्तुत किया, तो युवा पीढ़ी तो उसकी दीवानी हो गई. प्रतियोगिता की समाप्ति से पूर्व ही जनता ने उसे विजेता मान लिया था. इस प्रतियोगिता को जीतने के बाद श्वेता के समक्ष फिल्म निर्माताओं की लाइन लग गई. सभी उसकी लोकप्रियता को भुनाने के लिए मुंहमांगी क़ीमत देने के लिए प्रस्तुत थे, किंतु श्वेता ने सभी को इनकार कर दिया. उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य शास्त्रीय संगीत और नृत्य को उसका सम्मान दिलाना था. इसी ध्येय को लेकर वह एक के बाद एक नृत्य की प्रतियोगिताएं जीतती चली जा रही थी. उसकी लोकप्रियता का ही परिणाम था कि अब शास्त्रीय नृत्य की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन काफ़ी बड़े स्तर पर होने लगा था. किंतु सफलता का मार्ग न तो निष्कंटक होता है और न ही निरापद. शीर्ष पर पहुंचना जितना श्रमसाध्य होता है, वहां स्थिर रहना उससे भी अधिक दुष्कर. कुछ ऐसा ही हुआ. एक दिन श्वेता मंच पर नृत्य साधना में लीन थी. उसने ‘कायदा’ पर थाप ली ‘धागे त्रकिट तूना कत्ता। त्रकिट तूना कत्ता त्रकिट। तागे त्रकिट तूना कत्ता। त्रकिट तूना कत्ता त्रकिट।’ ‘आमद’ के पश्चात उसके कदम ‘गत’ पर थिरके ‘दी नग किड़ नग। धागे त्रकिन दिने किने। दीं नग किड़ नक। तीं नग किड़ नक। धागे त्रकिट दिने किने।' तबले पर प्रखर की उंगलियों के साथ श्वेता के कदम थिरक रहे थे. उसके अंग-प्रत्यंग में बिजली समाई हुई थी. ‘ताल’ बदलते ही उसके शरीर की गति भी बदल जाती थी. अद्भुत तारतम्य स्थापित हो चुका था दोनों में. तभी प्रखर ने ताल ‘तीया’ शुरू किया ‘तिट कत गद गिन। धाती धाती टक तग। दगि नधा तीधा तिट। कत गद गिन धाती... श्वेता ने भी संगत की. दर्शकों को त्रुटिहीन प्रतीत हुआ किंतु एक निर्णायक ने टोक दिया, "श्वेताजी, मैं काफ़ी दिनों से देख रहा हूं ताल ‘तीया’ में आपकी प्रवीणता तो है, किंतु वह श्रेष्ठता नहीं है जिसकी अपेक्षा आपसे है." यह भी पढ़ें: महिलाओं के हक़ में हुए फैसले और योजनाएं (Government decisions and policies in favor of women) श्वेता के लिए यह किसी तुषाराघात से कम न था. श्रेष्ठता से लेशमात्र की भी कमी उसे पराजय समान प्रतीत हो रही थी. उस रात्रि निंद्रा भी उससे रूठी रही. नैनों में स्वप्न नहीं, अश्रुकण झिलमिलाते रहे. आहत हृदय पूरी रात निराशा के सागर में गोता लगाता रहा, किंतु संकल्प की धनी श्वेता पराजय से परिचय हेतु तत्पर नहीं थी. सुबह होते ही वह नई उड़ान भरने के लिए कटिबद्ध हो गई. ‘‘प्रखर, मुझे लद्दाख जाना है.’’ उसने प्रखर को फोन किया. ‘‘लद्दाख! अचानक. ऐसा क्या हो गया?’’ ‘‘मुझे संगीत शिरोमणि, अनुपमेय गुरू आचार्य नागाधिराज से शिक्षा लेनी है.’’ ‘‘आचार्य नागाधिराज! किंतु उन्होंने तो केवल लद्दाख के सुयोग्य साधकों को ही शिक्षा देने का प्रण ले रखा है.’’ प्रखर आश्चर्य से भर उठा. "मैं उनके चरणों में शीश झुका प्रण शिथिल करने की विनती करूंगी. इसके लिए मुझे आज ही लद्दाख जाना होगा.’’ श्वेता ने निर्णय सुनाया. घबराया प्रखर थोड़ी ही देर में श्वेता के घर आ गया. उसने बहुत समझाया, लेकिन श्वेता लद्दाख जाने के फ़ैसले पर अडिग थी. ‘‘श्वेता, आचार्य नागाधिराज के निर्णय अपरिर्वतनीय होते हैं. यदि उन्होंने तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार नहीं की, तो तुम्हें अपमानित होना पड़ेगा. इसलिए तुम अपने कुछ विशिष्ट नृत्यों की सीडी उन्हें भेज दो. यदि वे तुम्हें सुयोग्य समझेंगें, तो शायद अपने अमृत की वर्षा तुम्हारे ऊपर कर दें.’’ प्रखर ने मध्य मार्ग अपनाने की सलाह दी. थोड़ी ना-नुकुर के पश्चात श्वेता मान गई. अगले ही दिन उसने अपने कुछ नृत्यों की सीडी अपनी अभिलाषा के साथ आचार्य नागाधिराज को भेज दी. दिवस पर दिवस व्यतीत होते रहे, किंतु कोई उत्तर नहीं आया. ‘‘आचार्यजी, किसी भी प्रकार की सीडी या टीवी प्रोग्राम नहीं देखते हैं.’’ एक दिन प्रखर के फोन करने पर उनके एक शिष्य ने बताया. ‘‘यदि ऐसा है, तो मैं उनके समक्ष नृत्य की जीवंत प्रस्तुति करूंगी.’’ श्वेता ने यह जानते ही प्रखर को अपना फ़ैसला सुनाया.अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें..
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