नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर कुछ और है. उन्होंने अत्यंत धीमे किंतु सख्त स्वर में कहा,‘‘प्रखर, मेरी ओर देखो.’’ प्रखर ने अपनी दृष्टि उनकी ओर घुमाई. उसकी आंखों में लाल-लाल डोरे उभर आए थे और वे मूंदी जा रही थीं. आचार्य चौंक पड़े, ‘‘तुम नशे में हो?’’ ‘‘हां, मैं नशे में हूं. प्रेम के नशे में और यदि मैं डूबा तो कोई नहीं बचेगा. सभी को मेरे साथ डूबना होगा.’’ प्रखर के होंठों पर एक कुटिल मुस्कान तैर उठी.
आचार्य ने अपने नेत्र बंद कर लिए. उनके मन में अंतर्द्वंद्व चलने लगा. पद्मवासियों के उनके ऊपर बहुत उपकार थे. पूरे आश्रम का ख़र्च उनके द्वारा प्रदत्त भिक्षा से ही चलता था. ऐसे संकट के समय उनकी सहायता करना मानवता की पुकार तो थी ही कर्तव्य भी था. चंद पलों पश्चात उन्होंने अपने नेत्र खोले और शांत स्वर में बोले, ‘‘निसंदेह, मेरे शिष्य श्रेष्ठ कलाकार है, किंतु वैश्विक स्तर की इतनी बड़ी प्रतियोगिता जीत सकें इतनी सामर्थ्य उनमें नहीं है.’’ ‘‘लेकिन आचार्य...’’ एक व्यक्ति ने कुछ कहना चाहा, किंतु आचार्य ने हाथ उठाकर उसे चुप करा दिया फिर बोले, ‘‘लेकिन हमारी एक अतिथि हैं, जो अपराजिता हैं और इस प्रतियोगिता को जय कर सकती हैं. बस एक संशय है.’’ ‘‘कैसा संशय?’’ ‘‘वे भी किसी व्यवसायिक कार्यक्रम में शामिल न होने का वचन मुझे दे चुकी हैं.’’ आचार्य ने सांस भरी. ‘‘आचार्य, उनके हठ के चलते आप एक बार अपने नियमों को शिथिल कर चुके हैं, तो क्या जन-कल्याण हेतु वे एक बार अपने वचनों को शिथिल नहीं करेंगी? आप एक बार उनसे आग्रह तो करिए, हमें पूर्ण विश्वास है कि वे आपकी बात कभी नहीं टालेगीं.’’ उस दल के मुखिया ने कहा. श्वेता के नृत्य शिक्षण की पूरी कहानी उन सबको मालूम थी. आचार्य ने जब श्वेता को बुलाकर बात की, तो वह बोली, ‘‘पद्म के पुर्ननिर्माण के लिए मैं इस प्रतियोगिता में नृत्य अवश्य करूंगी, बस मेरी एक विनती है.’’ ‘‘कैसी विनती?’’ ‘‘यदि मैं अंतिम चरण तक पहुंच गई, तो फाइनल राउंड में जब मैं नृत्य करूं, तो आप मंच पर उपस्थित रहेंगे.’’ ‘‘तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं तबला वादन नहीं कर सकता, फिर यह कैसी शर्त?’’ आचार्य का स्वर दर्द से भीग उठा. ‘‘तबला वादन तो प्रखर ही करेगा, आप बस मंच पर आसीन रहिएगा. आपकी उपस्थित मात्र से मुझे ऊर्जा मिलेगी और विजयश्री के चरण चूमना मेरे लिए आसान हो जाएगा.’’ श्वेता ने हाथ जोड़े. आचार्य को इसमें कोई आपत्ति नज़र नहीं आई. उन्होंने फौरन हामी भर दी. जैसा आचार्य ने सोचा था वैसा ही हुआ. श्वेता का अपराजित रहने का अभियान जारी हो गया. हर एपीसोड के पश्चात उसकी लोकप्रियता और दूसरी प्रतिस्पर्धियों के बीच वोट का अंतर बढ़ता ही जा रहा था. सम्मोहित कर देने वाला उसका नृत्य सभी के दिलो-दिमाग़ पर छाता चला जा रहा था. भारत के साथ-साथ जिन-जिन दशों में अप्रवासी भारतीय रहते थे उनके अख़बारों में उसकी तारीफ़ों के पुल बांधे जा रहे थे. सोशल मीडिया पर उसके अद्भुत और अद्वितीय नृत्यों के वीडियो वायरल हो रहे थे. प्रशंसकों ने उसे फाइनल में पहुचने से पहले ही विजेता घोषित कर दिया था. प्रतियोगिता का फाइनल न्यूयॉर्क के प्रसिद्व मेट्रोपोलिटन ओपेरा में रखा गया था, जिसे देखने दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. पूरा ऑडिटोरियम खचाखच भरा हुआ था. आयोजकों ने अपने देश की नृत्य कला को लोकप्रिय बनाने के लिए लंबी-चौड़ी रकम ख़र्च करने की योजना बनाई थी, लेकिन उनके ऊपर तो पैसों की बरसात हो रही थी. श्वेता के नृत्यों के लाइव टेलीकास्ट में विज्ञापन देने के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियों में होड़ मची हुई थी. आयोजकों ने श्वेता के नृत्य का क्रम सबसे आख़िर में रखा था. उन्हें मालूम था कि उसके नृत्य का सम्मोहन छा जाने के बाद दर्शकों के लिए कार्यक्रम में कोई आकर्षण शेष नहीं बचेगा. आचार्य नागाधिराज भी मंच पर प्रखर के साथ उपस्थित थे. अचानक उनकी दृष्टि प्रखर के चेहरे पर पड़ी, तो वे चौंक पड़े, ‘‘तुम्हारी आंखें इतनी लाल क्यूं हैं?’’ ‘‘सिरदर्द के कारण पूरी रात सो न सका. नींद की गोली भी ली थी, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ है.’’ प्रखर ने बताया. यह भी पढ़ें: ख़ुद अपना ही सम्मान क्यों नहीं करतीं महिलाएं (Women Should Respect Herself) ‘‘आज श्वेता की प्रतिष्ठा के साथ-साथ पूरे पद्मवासियों का भविष्य भी दांव पर लगा हुआ है. ऐसी हालत में तुम वादन कर पाओगे या किसी और कलाकार को बुलाया जाए?’’ आचार्य नागाधिराज चिंतित हो उठे. ‘‘चिंता न करें आचार्य, श्वेता और मेरी सांसें एक ही डोर से जुड़ी हैं और यह डोर मैं कभी टूटने नहीं दूंगा.’’ प्रखर ने आश्वस्त किया. तभी श्वेता ने आचार्य नागाधिराज के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लिया, फिर दर्शकों की ओर मुड़ते हुए बोली, ‘‘संगीत की दुनिया के दोस्तों, आप सब जानते हैं कि संगीत का सृजन भगवान शिव शंकर ने किया है. उनसे पहले संगीत के स्वर, नाद और तालों का ज्ञान किसी को न था. उनकी नृत्य की दो मुद्राओं, तांडव नृत्य और अर्धनारीश्वर से तो पूरा जगत परिचित है. तांडव जहां विध्वंस का प्रतीक है, वहीं अर्धनारीश्वर का रूप प्रेम और सृजन का प्रतीक है. आज मैं भगवान रूद्र के दोनों स्वरूपों को प्रस्तुत करूंगी. यदि तांडव से अर्धनारीश्वर तक की मेरी यात्रा निष्कंटक सफल हो जाती है, तो आप अपना आशीर्वाद ज़रूर दीजिएगा.’’ यह क्या कर रही है श्वेता? विपरीत ध्रुवों के समतुल्य नृत्य के दोनों स्वरूपों का एक साथ मंचन? असंभव को संभव करने का यह कैसा प्रयास? अपराजिता के पराजित होने की रंच मात्र संभावना से ही आचार्य का हृदय कांप उठा. तभी श्वेता ने हाथ जोड़ दर्शकों का अभिवादन किया और अपनी आंखें बंद कर लीं. इसी के साथ प्रखर की उंगलियां तबलों पर तेजी से चलने लगीं. उनसे निकल रही ध्वनि से प्रतीत हो रहा था जैसे दूर कहीं शोर गूंज रहा हो. इस शोर की ध्वनि हर बीतते पल के साथ बढ़ती जा रही थी. इसी के साथ मंच पर खड़ी श्वेता के पैरों की गति और उनसे बंधे घुंघुरूओं की खनक भी बढ़ती जा रही थी. अचानक तबले पर प्रखर के तालों की चाल बदल गई. तेज थाप से प्रचंड विस्फोट की गूंज सुनाई पड़ने लगी. तभी श्वेता ने अपने नेत्र खोल दिए. उसकी ख़ूबसूरत आंखें अंगारों सी धधक रही थीं और चेहरे पर एक अजीब सी कठोरता छा गई थी. तबले पर प्रहार के साथ-साथ प्रखर ने सामने रखे माइक पर तांडव स्त्रोत का पाठ प्रारम्भ कर दिया- जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम।डमड्डमड्डमड्डमन्नीनादवड्डमर्वयम चकारचंडतांडवमतनोतुनःशिवःशिवम। इसी के साथ प्रारम्भ हो गया श्वेता का अद्भूत और अलौकिक नृत्य. उसके अंग-प्रत्यंग के संचालन, मुद्रा लाघव, चरण, कटि, भुजा और ग्रीवा के उन्मत्त हिलोल देख लग रहा था जैसे साक्षात रूद्र मंच पर अवतरित हो गए हैं. नृत्यबद्ध हो घूम रहे उसके कदमों की गति और लयबद्ध भुजाओं के मध्य तीव्र प्रतिस्पर्धा हो रही थी. हर बीतते पल के साथ नृत्य से प्रकट होने वाली रौद्ररस की प्रखरता भी बढ़ती जा रही थी. प्रंचड अग्निशिखा की भांति श्वेता का सर्वस्व धधक रहा था. प्रतीत हो रहा था कि शिव के तीसरे नेत्र के खुलने की घड़ी क़रीब आती जा रही है. ऑडिटोरियम में सशरीर उपस्थित दर्शकों के साथ-साथ 160 देशों में लाइव टेलीकास्ट देख रहे दर्शकों के हृदय की धड़कनें भी तीव्र से तीव्रतम होती जा रही थीं. साथ ही बढ़ती जा रही थी आचार्य नागाधिराज की चिंता. उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि नृत्य को तांडव के इतने कठोरतम स्तर पर पहुंचाने के पश्चात वह उसे अर्धनारीश्वर के कोमल स्वरूप में कैसे ला पाएगी. किंतु इस सबसे विरत श्वेता तांडव को चरम पर पहुंचाने के लिए मद-मस्त होकर नृत्य कर रही थी. अचानक प्रखर के तबले की ध्वनि थम गई, इसी के साथ प्रलय मचाने को आतुर श्वेता की भुजाओं और कदमों की गति भी थम गई. मंच पर एक बार फिर वह अपनी आंखों को बंद कर हाथ जोड़ वैसे ही खड़ी हो गई जैसा उसने नृत्य आरम्भ करने से पूर्व किया था. इससे पहले कि दर्शकों को इसका कारण समझ में आता प्रखर की उंगलियां एक बार फिर तबलों पर तैरने लगीं और गूंजने लगी मधुर धुन और कोमल स्वर. अचानक श्वेता ने अपने वस्त्रों को हाथ से पकड़ कर झटका, तो वे शरीर से अलग हो गए, उनके नीचे से जो पोशाक निकली वह आधी भगवान शिव की थी और आधी उनकी शक्ति, जगत-जननी देवी शिवा की. अगले ही पल श्वेता ने अपने नेत्र खोल दिए. उसकी बाईं आंख में स्त्रियों की कोमलता और चंचलता समाई हुई थी और दांई में पुरूषोचित गम्भीरता. चंद क्षणों पूर्व क्रोध से हुंकार रहे उसके होंठों पर अब एक स्निग्ध मुस्कान तैरने लगी थी. क्षणांश में भगवान शिव के तांडव रूप से अर्धनारीश्वर के रूप में कुशल अवतरण देख पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. इसी के साथ शनै-शनै प्रारम्भ हो गया अर्धनारीश्वर का सम्मोहक नृत्य. श्वेता के कदमों ने अभी लय पकड़ी भी नहीं थी कि प्रखर के तबले पर एक बार फिर तांडव की ध्वनि गूंजने लगी. इस त्रुटि पर पल भर के लिए श्वेता के चेहरे पर असमंजस के चिह्न उभरे, किंतु अगले ही पल वह अपने को संभाल तांडव की मुद्रा में आ गई. ‘‘प्रखर, क्या कर रहे हो? संभालो अपने आपको.’’ बगल में बैठे आचार्य ने टोका, तो प्रखर की उंगलियों से पुनः कोमल स्वर निकलने लगे. श्वेता ने एक बार फिर अपने नृत्य की लय परिर्वतित कर ली. बांई आंख को किसी अतृप्त हिरणी की चंचलता सा घुमाते हुए उसके शरीर के आधे हिस्से ने मादक अंगड़ाई ली. तभी प्रखर के तबले से पुनः तांडव के स्वर निकलने लगे. विवश श्वेता को भी दोबारा अपनी मुद्रा परिर्वतित करनी पड़ी. दर्शकों ने इसे एक काया से दूसरी काया में प्रवेश का द्वन्द और दो श्रेष्ठ कलाकारों का श्रेष्ठ प्रर्दशन समझा. उनकी तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा ऑडिटोरियम गूंजने लगा. किंतु! आचार्य नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर कुछ और है. उन्होंने अत्यंत धीमे किंतु सख्त स्वर में कहा,‘‘प्रखर, मेरी ओर देखो.’’ प्रखर ने अपनी दृष्टि उनकी ओर घुमाई. उसकी आंखों में लाल-लाल डोरे उभर आए थे और वे मूंदी जा रही थीं. आचार्य चौंक पड़े, ‘‘तुम नशे में हो?’’ ‘‘हां, मैं नशे में हूं. प्रेम के नशे में और यदि मैं डूबा तो कोई नहीं बचेगा. सभी को मेरे साथ डूबना होगा.’’ प्रखर के होंठों पर एक कुटिल मुस्कान तैर उठी. प्रतिशोध की अग्नि में जलकर वह श्वेता की नाव को ऐसी जगह लाकर डुबाएगा इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. पूरे संगीत जगत की दृष्टि इस समय श्वेता पर केन्द्रित होगी. अब सर्वस्व नष्ट हो जाएगा. पद्मवासियों के स्वप्न तो ध्वस्त होंगे ही उनके आश्रम की प्रतिष्ठा भी सदैव के लिए धूमिल हो जाएगी. आचार्य की आंखों की आगे अंधेरा छाने लगा. तभी प्रखर की उंगलियों ने पुनः वही त्रुटि दोहराई. आचार्य का हृदय चीत्कार कर उठा. अपराजिता को पराजित करने का षड़यंत्र! अक्षम्य विश्वासघात! अविश्वसनीय छल! हमेशा शांत रहने वाले आचार्य नागाधिराज का रोम-रोम क्रोधाग्नि से धधकने लगा. प्रखर को परे धकेल वे दाएं तबले को बाईं ओर और बाएं तबले को दाईं ओर कर कब स्वयं वादन करने लगे उन्हें स्वयं होश नहीं रहा. किंतु श्वेता के कानों ने स्वरों की बदली हुई कोमलता को भांप लिया था और वह झूम-झूम कर नृत्य करने लगी. उसके चेहरे पर तृप्ति की ऐसी भावना छा गई मानो युगों-युगों से उसे इसी क्षण की प्रतीक्षा थी. उसका आधा शरीर कोमल स्त्रीत्व के गुण लिए लयबद्ध तरीक़े से नृत्य कर रहा था, तो आधा शरीर पुरूषोचित मर्यादा अंगीकार किए हुए नृत्य की गहराइयों में लीन था. उसके शरीर का बायां हिस्सा कभी व्याकुल प्रेयसी की तरह प्रणय का आमंत्रण दे रहा होता, तो दायां अंग मतवाले प्रेमी की तरह मोहपाश में बंधने को आतुर नज़र आता. उसकी दोनों भुजाएं कभी सृजन की ओर अग्रसर प्रेमियों की तरह आलिंगनबद्ध होतीं, तो अगले ही पल तृप्ति का शंखनाद कर प्रसन्नता से झूमने लगती. एक ही शरीर से दो भाव-भंगिमाओं के उत्कृष्ट प्रर्दशन से उसने साक्षात अर्धनारीश्वर को मंच पर अवतरित कर दिया था. भूतो न भविष्यते. सृजन हेतु भगवान शिव का अपनी शक्ति देवी शिवा के साथ किए गए अलौकिक नृत्य की श्रेष्ठतम प्रस्तुति. अद्भुत, अद्वितीय और अविस्मरणीय दृश्य देख चारों ओर सम्मोहन सा छा गया. पलकें झपकना भूल गई थीं और सभी एकटक उसे निहारे जा रहे थे. सभी के हृदयों से एक ही पुकार निकल रही थी कि काश, यह समय ठहरता जाता और नृत्य यूं ही अनवरत चलता रहता. किंतु आयोजकों की अपनी सीमाएं थीं. सभी कलाकारों के लिए समय निर्धारित था. अतः न चाहते हुए भी उन्हें नृत्य रोकने का संकेत करना पड़ा. यह भी पढ़ें: सोशल मीडिया पर एक्टिव लड़कियों को बहू बनाने से क्यों कतराते हैं लोग? (How Social Media Affects Girls Marriage) मंच पर लगे इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड पर विश्व भर से दर्शकों के मिल रहे वोटों की संख्या प्रर्दशित हो रही थी. नृत्य की समाप्ति से पूर्व ही श्वेता को दूसरी प्रतिस्पर्धियों से कई गुना वोट मिल चुके थे. विजेता की घोषणा अब औपचारिकता मात्र रह गई थी. ‘‘तुम्हारा, नृत्य इस वसुंधरा को ईश्वर के दिव्यतम वरदानों में से एक है. तुमने शास्त्रीय नृत्य को उत्कृष्टता और लोकप्रियता के जिस शिखर पर पहुंचाया है उसके लिए संगीत जगत सदैव तुम्हारा ऋणी रहेगा.’’ वरिष्ठ निर्णायक ने जब श्वेता के सिर पर हाथ फेरते हुए उसे एक करोड़ डॉलर का चेक पकड़ाया, तो पूरा ऑडिटोरियम एक बार फिर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. श्वेता ने शीश झुका निर्णायकों और दर्शकों का अभिवादन किया फिर सीधे आचार्य नागाधिराज के समीप आ, चेक उनके चरणों में अर्पित करते हुए बोली, ‘‘आचार्य, गुरूदक्षिणा स्वीकार कीजिए.’’ आचार्य ने श्वेता के चेहरे की ओर देखा. इतनी बड़ी धनराशि अर्पित कर देने में वहां झिझक का कोई चिह्न न था. वे अभिभूत हो उठे, ‘‘तुम अपराजिता हो. तुम्हारे अनुपम नृत्य पर पूरे विश्व का अधिकार है. तुम्हारा जन्म इस कला को जन-जन तक पहुंचाने के लिए ही हुआ है, उसे वचनों की जंजीरों में बांधकऱ मैंने बहुत बड़ा अपराध किया है. मैं तुम्हें अभी, इसी पल से वचन मुक्त करता हूं, जाओ अपने जन्म को सार्थक करो.’’ ‘‘आपकी हर आज्ञा शिरोधार्य, बस एक छोटी सी विनती है.’’ श्वेता ने कहा. ‘‘अब कैसी विनती?’’ ‘‘मेरी रक्षार्थ आज आपने जो तबला वादन किया है उसे विश्राम मत दीजिएगा. मेरे जैसे अनेक शिष्यों को आपके आशीर्वाद की आवश्यकता है.’’ श्वेता ने हाथ जोड़ दिए. रक्षार्थ! आचार्य ने मुड़कर प्रखर की ओर देखा. उसकी आंखों की लालिमा गायब हो चुकी थी और उनमें असीम शांति समाई हुई थी. यह देख आचार्य के चेहरे पर एक स्निग्ध मुस्कान तैर गई, ‘‘तुम दोनों ने मुझे मेरे संगीत की जो सौग़ात लौटाई है वह मेरे जीवन का सबसे अमूल्य उपहार है. उसे मैं सदैव अक्षुण्ण रखूंगा.’’ ‘‘आचार्य!’’ श्वेता के होंठों ने सिसकारी भरी और वह आचार्य नागाधिराज के चरणों में झुक गई. ‘‘सदैव अपराजित रहो.’’ आचार्य ने अपना हाथ श्वेता के सिर पर रख दिया. फ्लैश लाइट्स की जगमगाहटें दो अनुपम कलाकारों के इस मिलन को सदैव के लिए सुरक्षित करने लगीं. संजीव जायसवाल ‘संजय’ अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.
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