काग़जी फूलों की हैं यह बस्तियां ढूंढ़ते फिरते हैं बच्चे तितलियां और बढ़ती जा रही हैं लौ मेरी तेज़ जितनी…
चाह नहीं, इस हफ़्ते तुमसे मैं 'गुलाब' कोई पाऊं चाह नहीं ‘आई लव यू’ कहो, और मैं सुनकर इतराऊं चाह…
अब अपनी आंखें खोल देना और आईने में ख़ुद को देखना मेरी नज़र से जैसे तुम्हें आईना नहीं मैं देख…
सुनो-सुनो मज़े की एक कहानी उस दुनिया की जो हुई सयानी है कुछ साल पहले की बात दिवाली के कुछ…
क्यों ख़ामोश हो इस कदर इन अधरों को खुलने दो जो एहसास जगे है तुममें उन्हें लबों पर आने दो…
क्या कहें आज क्या माजरा हो गया ज़िंदगी से मेरा वास्ता हो गया इक ख़ुशी क्या मिली मैं निखरती गई…
आ गए आपकी मेहरबानी हुई दिल की सरगम बजी शादमानी हुई मिल गई प्यार की सल्तनत अब हमें वो भी…
देख लेती हूं तुम्हें ख़्वाब में सोते-सोते चैन मिलता है शब-ए-हिज्र में रोते-रोते इक तेरे ग़म के सिवा और बचा…
प्रेम कथाओं के पृष्ठों पर, जब-जब कहीं निहारा होगा सच मानो मेरी आंखों में केवल चित्र तुम्हारा होगा कभी याद…
अब मुझे किसी से शिकवा ना शिकायत है अब मैं अकेला हूं, कितनी बड़ी राहत है थी चोट लगी उनको…
हज़ारों तीर किसी की कमान से गुज़रे ये एक हम ही थे जो फिर भी शान से गुज़रे कभी ज़मीन…
किसी रिश्ते में वादे और स्वीकारोक्ति ज़रूरी तो नहीं कई बार बिना आई लव यू कहे भी तो प्यार होता…