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वास्तु के अनुसार कैसा हो मुख्यद्वार (Vastu Tips For Home’s Main Door)
घर के हर कमरे में वास्तु के नियमों का पालन कर के किस तरह सुख, शांति, समृद्धि के साथ-साथ उत्साह, उमंग और उल्लास का माहौल बनाया जा सकता है, आइए, जानते हैं.
प्रवेशद्वार
घर में सुख-शांति, समृद्धि, धन-वैभव व ख़ुशहाली चाहते हैं तो मुख्यद्वार बनवाते समय वास्तु के कुछ नियमों का पालन करें और घर को नकारात्मक ऊर्जा से बचाएं.
* प्रमुख प्रवेश द्वार अत्यंत सुशोभित होना चाहिए. इससे प्रतिष्ठा बढ़ती है.
* प्रमुख प्रवेश द्वार अन्य दरवाज़ों से ऊंचा और बड़ा भी होना चाहिए यानी घर के मुख्यद्वार का आकार हमेशा घर के भीतर बने अन्य दरवाज़ों की तुलना में बड़ा होना चाहिए. वास्तु के अनुसार 4ु8 का मुख्यद्वार सर्वोत्तम होता है.
* बड़े शहरों में इतना बड़ा मुख्यद्वार बनाना संभव नहीं होता. ऐसे में इसका आकार 3ु7 भी रखा जा सकता है.
* अगर मुख्यद्वार किसी कारण से घर के अन्य दरवाज़ों से छोटा बन गया हो और उसे बदलना संभव न हो, तो उसके आसपास एक ऐसी फोकस लाइट लगाएं, जिसका प्रकाश मुख्यद्वार और वहां से प्रवेश करने वालों के चेहरों पर पड़े.
* तोरण बांधने से देवी-देवता सारे कार्य निर्विघ्न रूप से सम्पन्न कराकर मंगल प्रदान करते हैं.
* कम्पाउंड वॉल के पूर्व और उत्तर की तरफ़ मेन गेट होने से समृद्धि और ऐश्वर्य मिलता है.
* दरवाज़े जहां तक हो अंदर की ओर ही खुलने चाहिए. बाहर खुलने से हर कार्य में बाधा व धीरे-धीरे धनहानि होकर धनाभाव शुरू हो जाता है.
* घर का कोई भी द्वार धरातल से नीचा न हो.
* नैऋत्य और वायव्य कोण में द्वार न बनवाएं.
* द्वार स्वतः खुलने या बन्द होने वाला नहीं होना चाहिए एवं खोलते या बंद करते समय किसी भी प्रकार की आवाज़ नहीं होनी चाहिए.
* यदि किसी भवन में एक ही मुख्यद्वार बनवाना हो, तो पूर्व अथवा उत्तर दिशा में मुख्यद्वार बनवाएं. इससे शुभ फल मिलेगा.
* यदि घर दक्षिणमुखी या पश्चिममुखी है तो उसमें प्रवेशद्वार एक ही बनवाएं. साथ ही द्वार के बाहर गणेशजी की मूर्ति लगाएं.
* कभी भी नैऋत्य कोण में मुख्यद्वार न बनवाएं.
* वास्तु के अनुसार घर का मुख्यद्वार हमेशा दो पल्ले का होना चाहिए.
* घर के प्रवेशद्वार के आसपास किसी तरह का अवरोध नहीं होना चाहिए, जैसे बिजली के खंभे, कोई कांटेदार पौधा आदि.
* मुख्यद्वार के सामने डस्टबिन यानी कचरे का डिब्बा न रखें. साथ ही प्रवेशद्वार के आसपास सफ़ाई का भी पूरा ध्यान रखें.
* मुख्यद्वार के पास तुलसी का पौधा रखें. इससे वास्तु दोष दूर होते हैं और नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश नहीं कर पाती.
* इसके अलावा मुख्यद्वार पर जल से भरा कलश रखने से कई तरह की व्याधि घर के बाहर ही रह जाती है.
* निम्न कोटि के स्थान पर मुख्यद्वार कभी न बनवाएंं, वरना घर में रहनेवाले कई रोगों व परेशानियों के शिकार हो जाते हैं.
* मकान की चौखट या मुख्यद्वार हमेशा लकड़ी का बना होना चाहिए. मकान के भीतर के बाकी दरवाज़ों के फ्रेम लोहे के हो सकते हैं.
* मुख्यद्वार से अंदर प्रवेश करने पर बाईं ओर कुछ भी न रखें. इससे मुख्यद्वार से घर में वायु का प्रवाह सही तरीके से नहीं होगा. अक्सर लोग यहां शू रैक रखते हैं. ऐसा न करें.
मुख्यद्वार में दिशाओं का महत्व
* यदि घर का मुख्यद्वार उत्तर दिशा में हो तो उस घर में रहनेवालों के पास रुपए-पैसों की कमी कभी नहीं होती. सफलता हमेशा इनके क़दम चूमती है.
* पूर्व दिशा में मुख्यद्वार हो तो नाम, यश, सुख, क़ामयाबी तो मिलती ही है, साथ ही वंशवृद्धि भी होती है.
* अगर मुख्यद्वार दक्षिण दिशा में हो तो यहां रहनेवालों के पास न तो धन-दौलत रहती है और न ही स्वास्थ्य.
किन दिशाओं का क्या प्रभाव
पूर्व ईशान- सुख-समृद्धि, वंश वृद्धि एवं गृहस्वामी यशस्वी बनेंगे.
पूर्व- ऐश्वर्य की प्राप्ति तथा संतान की क़ामयाबी.
पूर्व आग्नेय- पुत्र कष्ट व अग्नि-भय.
दक्षिण आग्नेय- गृहिणी अस्वस्थ एवं भय की शिकार.
दक्षिण- स्त्रियों को मानसिक बीमारियां, आर्थिक तथा शारीरिक तकली़फें.
दक्षिण नैऋत्य- महिलाएं अधिक अस्वस्थ, कर्ज व चरित्रहीनता.
पश्चिम नैऋत्य- घर के मुख्य व्यक्ति को कष्ट, दुर्घटना, निराशा तथा पुरुष का चरित्रहीन होना.
पश्चिम- धन लाभ, पूजा-पाठ, अध्यात्म के प्रति रुचि एवं पुरुषों की अस्वस्थता.
पश्चिम वायव्य- पुरुषों को आर्थिक कष्ट, अकारण शत्रुता, कोर्ट-कचहरी के झगड़े एवं मति भ्रम.
उत्तर वायव्य- महिलाओं का सुख-शान्ति से वंचित होकर घर से बाहर अधिक रहना.
उत्तर- धन लाभ, मान-सम्मान, सुख तथा ख़ुशियों की प्राप्ति.
उत्तर ईशान- सुख-समृद्धि का लाभ, परिवार सुख-सम्पन्न तथा वंश वृद्धि.
वास्तु के मध्य केंद्र- भयंकर आर्थिक एवं मानसिक कष्ट.