Close

लड़कियां लड़कों सी क्यों नहीं होतीं: जानें दिलचस्प वजहें (Why girls are different than boys: Know interesting reasons)

कहते हैं, पुरुष दिमाग़ से और महिलाएं दिल से सोचती हैं, शायद इसीलिए दोनों की सोच में अंतर होता है. महिलाएं जहां छोटी-छोटी बातों को लेकर उत्सुक हो जाती हैं, लेकिन संतुष्ट नहीं हो पातीं, वहीं पुरुष जल्दी उत्सुक तो नहीं होते, लेकिन संतुष्ट ज़रूर हो जाते हैं. स्त्री-पुरुष की कुछ ऐसी ही अलग, मगर दिलचस्प सोच के बारे में जानते हैं.

स्त्री-पुरुष की न स़िर्फ शारीरिक बनावट अलग होती है, बल्कि उनकी सोच व मानसिकता भी एक-दूसरे से बिल्कुल अलग होती है, इसीलिए ये अंग्रेज़ी कहावत बहुत मशहूर है वुमेन्स आर फ्रॉम वीनस मेन्स आर फ्रॉम मार्स. वैसे तो स्त्री-पुरुष की भिन्न मानसिकता दर्शाने वाले मुद्दों की ़फेहरिस्त लंबी है, लेकिन हमने जुटाए हैं कुछ ऐसे ख़ास और दिलचस्प विषय, जो स्त्री-पुरुष की अलग-अलग सोच को ज़ाहिर करते हैं.

परिवार बनाम काम

स्त्रीः महिलाएं जब भी अपनी पर्सनल लाइफ से निराश होती हैं, तो वो अपनी प्रोफेशनल लाइफ की ओर ध्यान नहीं दे पातीं. साइकोलॉजिस्ट्स का कहना है, “महिलाएं प्रोफेशनल लाइफ की बजाय पर्सनल लाइफ को ज़्यादा तवज्जो देती हैं, इसलिए पारिवारिक मसलों के चलते उनकी प्रोफेशनल लाइफ ख़ुद ब ख़ुद प्रभावित हो जाती है.”

पुरुषः पुरुषों की मानसिकता ठीक इसके उल्ट होती है. वे पर्सनल की बजाय प्रोफेशनल लाइफ को प्राथमिकता देते हैं, इसलिए जब कभी उनकी

प्रोफेशनल लाइफ में उथल-पुथल मचती है, तो इसका सीधा असर उनकी पर्सनल लाइफ पर नज़र आता है. साइकोलॉजिस्ट के अनुसार, “घर का मुखिया होने की वजह से परिवार की आर्थिक ज़िम्मेदारी पुरुषों पर होती है. ऐसे में प्रोफेशनल लाइफ में आई अड़चनें उन्हें परिवार की भावी आर्थिक सुरक्षा को लेकर परेशान कर देती हैं, नतीजतन व्यावसायिक परेशानियां पारिवारिक झमेलों का रूप ले लेती हैं.”

समस्याओं का समाधान

स्त्रीः महिलाएं समस्याओं का हल खोजने की बजाय उसे शेयर करने में ज़्यादा विश्‍वास रखती हैं. जब तक वो अपनी समस्या किसी से शेयर नहीं कर लेतीं, उन्हें चैन नहीं पड़ता. किसी को बताने से उनके मन का गुबार निकल जाता है और वो ख़ुद को खुले आसमां में महसूस करती हैं. 23 वर्षीया होम मेकर सुषमा कहती हैं “मैं अपनी सास द्वारा किए गए बुरे बर्ताव के बारे में जब तक अपनी बेस्ट फ्रेंड या कलीग को बता नहीं देती, तब तक मेरे दिल को ठंडक नहीं पहुंचती और एक बार जब मैं अपनी बात कह देती हूं, तो ख़ुद को फ्रेश व हल्का महसूस करने लगती हूं.” 

पुरुषः महिलाओं के स्वभाव के विपरीत पुरुष अपनी समस्याओं के बारे में दूसरों से बात करना मुनासिब नहीं समझते, बल्कि वो ख़ुद ही उसका हल ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं और जब तक समाधान खोज नहीं लेते, चैन की नींद नहीं सोते. साइकोलॉजिस्ट के अनुसार, “अपनी बातें शेयर करने की वजह से महिलाएं स्ट्रेस फ्री हो जाती हैं, जबकि पुरुषों का स्ट्रेस ग्राफ बढ़ता चला जाता है. नतीजतन पुरुषों की तुलना में महिलाओं की न स़िर्फ उम्र बढ़ती है, बल्कि हार्ट अटैक जैसी बीमारी का ख़तरा भी कम हो जाता है.”

ख़्वाहिशों का ओर-छोर

स्त्रीः महिलाओं की ख़्वाहिशों का कोई अंत नहीं होता, वो ज़िंदगी से सब कुछ पाने की चाहत रखती हैं. अच्छा करियर, अच्छा पति, अच्छा ससुराल... और भी बहुत कुछ पाने की उम्मीद महिलाओं के ज़ेहन में होती है.

पुरुषः जबकि पुरुष काम चलाऊ जॉब से भी ख़ुश रहते हैं. सारी चीज़ें बेस्ट ही होनी चाहिए, पुरुषों के लिए ये बातें ख़ास मायने नहीं रखतीं. साइकोलॉजिस्ट के मुताबिक, “महिलाओं की तुलना में पुरुष न स़िर्फ भौतिक सुविधाओं से जल्दी संतुष्ट हो जाते हैं, बल्कि अपनी इच्छाओं पर लगाम कसना भी बख़ूबी जानते हैं, जबकि महिलाएं अपनी ख़्वाहिशों पर क़ाबू नहीं रख पातीं. वो बस सब कुछ पाने की उम्मीद संजोती जाती हैं.”

झूठ बोले कौआ काटे

स्त्रीः झूठ बोलने में महिलाएं पुरुषों से आगे होती हैं. “मेरे लिए आपसे बेहतर दूसरा कोई हो नहीं सकता... मेरे सभी पुरुष दोस्तों में आप सबसे हैंडसम हैं...” जैसे झूठे जुमले महिलाएं अपने पति से बेझिझक और बड़ी ही सहजता से बोल लेती हैं.

पुरुषः जबकि पुरुष अपनी पत्नी की आंखों में आंखें डालकर झूठ नहीं बोल पाते. यदि वो कोशिश भी करें, तो उनकी लड़खड़ाती ज़ुबान और भावभंगिमा से साफ़ ज़ाहिर हो जाता है कि वो कुछ छुपा रहे हैं. इस बारे में 29 वर्षीय विराज शर्मा अपना अनुभव बताते हैं कि “मैं जब भी अपनी पत्नी से झूठ बोलने की कोशिश करता हूं, तुरंत पकड़ा जाता हूं, जबकि अपनी पत्नी के झूठ को मैं तब तक नहीं समझ पाता, जब तक कि वो ख़ुद मुझसे ये न कहे कि उस रोज़ मैंने आपसे झूठ कहा था.” साइकोलॉजिस्ट का कहना है, “महिलाएं पुरुषों से चतुर होती हैं, क्योंकि महिलाओं का लेफ्ट ब्रेन जल्दी विकसित हो जाता है, इसलिए लड़कियां जन्म के बाद 8-9 महीने में ही बोलने लगती हैं, जबकि लड़के 12-14 महीनों के बाद बोलना सीखते हैं.”

बातचीत का तरीक़ा

स्त्रीः पति-पत्नी के बीच होने वाली बातचीत पर यदि गौर करें, तो पता चलता है कि पत्नियां अपने पति से घुमा-फिराकर बात करती हैं. वो साफ़-साफ़ या सीधे तौर पर कुछ नहीं कहतीं. साथ ही प्रश्‍नवाचक वाक्यों का प्रयोग भी अधिक करती हैं, जैसे, यदि उन्हें सैंडविच खाना है, तो वो अपने पार्टनर से पूछती हैं, “अगर मैं ब्रेकफास्ट में सैंडविच बनाऊं, तो क्या आप खा लेंगे?” “यदि मैं जीन्स पहनूं, तो आपको कोई आपत्ति तो नहीं होगी?” ऐसे सवालों का जवाब पुरुषों को बहुत सोच-समझकर कर देना पड़ता है, क्योंकि परिणाम जो भी हो, इल्ज़ाम उन्हीं के मत्थे आता है. 

पुरुषः बातचीत के मामले में पुरुष पार्टनर पत्नी की अपेक्षा सीधे और सटीक होते हैं. पत्नी की तरह वो अपनी बात को घुमा-फिराकर नहीं कहते. जो भी कहना होता है, वो सीधे-सीधे कह देते हैं- जैसे, “मैं ब्रेकफास्ट में सैंडविच खाना चाहता हूं, बना दो.” “तुम्हारा जीन्स पहनना मुझे पसंद नहीं, मत पहना करो.”

बिल पेमेंट का फंडा

स्त्रीः अपनी महिला सहकर्मी या सहेलियों के साथ हॉटल, रेस्टोरेंट आदि में लंच या डिनर के पश्‍चात् महिलाएं बिल की रक़म अकेले चुकता नहीं करतीं, बल्कि हंसी-ख़ुशी आपस में शेयर करती हैं और अपने-अपने हिस्से की राशि जमा कर कैशियर को दे देती हैं.

पुरुषः जबकि पुरुष दोस्तों और सहकर्मियों के साथ खाए-पिए गए पैसों का हिसाब नहीं रखते. वे बेझिझक बिल भर देते हैं, सहकर्मी या दोस्त के पर्स निकालने का इंतज़ार भी नहीं करते हैं. इस विषय में 25 वर्षीय राजीव कहते हैं, “मेरे मुताबिक, महिलाओं की ये आदत अच्छी होती है. इससे किसी की जेब पर एक्स्ट्रा पैसा बोझ नहीं पड़ता. जबकि पुरुषों के साथ कई बार ऐसा होता है कि न चाहते हुए भी दोस्तों एवं सहकर्मियों की वजह से उन्हें अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है.”

सेल और ख़रीददारी

स्त्रीः महिलाएं ज़रूरत न होने पर भी 1000 रु. की सैंडल 500 रु में ख़रीद लाती हैं, क्योंकि वो सैंडल सेल में लगी होती है.

पुरुषः जबकि पुरुष ़ख़ास जरूरत होने पर 500 रु की शूज़ 1000 रु में ख़रीद लाते हैं, वो इसलिए क्योंकि उन्हें उस चीज़ की सख़्त ज़रूरत होती है.

साइकोलॉजिस्ट्स के अनुसार, “लड़कियों को बचपन से ही बिंदी लगाना, चूड़ी पहनना, सजना-संवरना आदि सिखाया जाता है, इसलिए शॉपिंग महिलाओं के शौक़ में शामिल हो जाता है. नतीजतन महिलाएं परिणाम की चिंता किए बगैर अपने इस शौक़ को पूरा करती हैं, जबकि पुरुष शौक़ की बजाय ज़रूरत को महत्व देते हैं और वही चीज़ ख़रीदते हैं, जिनकी उन्हें ज़रूरत होती है.”

हिदायत की हद

स्त्रीः किसी समस्या का समाधान निकालने के लिए महिलाओं के लिए अपने पति की हिदायत ही काफ़ी नहीं होती, बल्कि वो अपने हर एक प्रियजन से अपनी समस्या शेयर करती हैं और उसका समाधान जानने की कोशिश करती हैं. इतना ही नहीं सबकी सुनने और समझने के बाद भी कोई फैसला नहीं ले पातीं.

पुरुषः जबकि पुरुष किसी भी समस्या का समाधान ख़ुद ही निकालने की कोशिश करते हैं. कुछ मामलों में तो वो अपनी पत्नी की सलाह लेना भी

ज़रूरी नहीं समझते, और तो और पत्नी द्वारा दी गई बिन मांगी सलाह भी वो हज़म नहीं कर पाते. पेशे से शिक्षिका 29 वर्षीया रूपाली वर्मा कहती हैं, “अपने पति को परेशान देखकर मैं उनकी परेशानी जानने की कोशिश करती हूं. उन्हें सही सलाह भी देती हूं, परंतु मेरी सलाह सुनते ही मेरे पति ग़ुस्से से आगबबूला हो जाते हैं. हालांकि कई मामलों में मेरी सलाह सही होती है, लेकिन फिर भी वो मेरी सलाह मानते ही नहीं.” साइकोलोजिस्ट मिनिषा के अनुसार, “पुरुष इगोस्टिक होते हैं, इसलिए दूसरों की सलाह उन्हें मंजूर नहीं होती. उन्हें लगता है कि अपनी समस्या हल करने में वो समक्ष हैं, उन्हें किसी दूसरे की कोई आवश्यकता नहीं है.”

मोबाइल फोन पर बातें

स्त्रीः मोबाइल फोन का इस्तेमाल महिलाएं अपने प्रियजनों से घंटों गप्पे लड़ाने के लिए करती हैं. मज़ेदार बात ये है कि बातें करते हुए वो थकती भी नहीं हैं.

पुरुषः जबकि पुरुषों के लिए मोबाइल फोन महज़ संपर्क का ज़रिया होता है, जिसके ज़रिए वो अपनी बात दूसरों तक पहुंचाते हैं. इतना ही नहीं पुरुष महिलाओं की तरह अपने दोस्तों से फोन पर घंटों बात भी नहीं कर पाते, उनकी बात महज़ 15-20 मिनट में ही सिमट जाती है. इस विषय में 30 वर्षीय अजय सिंह कहते हैं कि “मैं उस वक़्त काफ़ी हैरान हो जाता हूं, जब मेरी पत्नी पंद्रह-बीस दिन मायके रहने के बाद घर लौटती है और लौटते ही घंटों अपनी बहनों से बात करने लगती है. मेरी समझ में नहीं आता कि पंद्रह-बीस दिनों में क्या कहना बाकी रह गया था, जो ये अब कह रही हैं.”

Share this article