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महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की बर्थ एनिवर्सरी पर पढ़ें उनकी लाजवाब शायरी… (Remembering Mirza Ghalib)

महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब (mirza ghalib) की बर्थ एनिवर्सरी पर पढ़ें उनकी लाजवाब शायरी...
mirza ghalib 27 दिसंबर 1796 को आगरा में जन्मे मिर्ज़ा ग़ालिब महान शायर के रूप में आज भी हम सबके बीच अपना एक अलग मुक़ाम बनाए हुए हैं. 19वीं शताब्दी के वो सबसे बड़े शायर माने जाते थे. उन्हें न स़िर्फ उर्दू का एक महान शायर माना जाता है, बल्कि फारसी कविता को भारत में लोकप्रिय करवाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है. 15 फरवरी 1869 को उनका निधन हो गया था. उनके जन्मदिवस पर पढ़ते हैं उनकी कुछ लाजवाब शायरी... हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है तुम ही कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया वरना आदमी तो हम भी बड़े काम के थे इस सादगी पे कौन न मर जाए ए ख़ुदा लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं आया है बे-कसी-ए-इश्क पे रोना ग़ालिब, किसके घर जायेगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले इश्क़ पर ज़ोर नहीं ये वो आतिश है ग़ालिब जो लगाए न लगे और बुझाए न बुझे दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है आख़िर इस दर्द की दवा क्या है हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन दिल के ख़ुश रखने को ’ग़ालिब’ ये ख़्याल अच्छा है इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले

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