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कहानी- दूध फैक्स-रबड़ी फैक्स (Short Story- Doodh Fax-Rabdi Fax)

Sanjiv Jaiswal Sanjay
संजीव जायसवाल 'संजय'

“तू काहे झूठ बोल रहा है.” तभी जाट ने वहां आ मोटा लट्ठ पटकते हुए कहा, “जब फैक्सवा से दूध-रबड़ी की हांडी छोरे के पास शहर जा सकती है, तो छोरा शहर क्यूं नहीं जा सकता.”
बड़े बाबू समझ गए कि उन दोनों की पोल खुल गई है. उन्होंने जाट को समझाने की कोशिश की, तो वह भड़कते हुए बोला, “अगर तूने छोरे को फोकस नहीं किया, तो मैं तुझे अपने लट्ठ पर बिठा कर सीधे ऊपर फोकस कर दूंगा.”

21 वीं शताब्दी में संचार क्रांति गांव-गांव तक पहुंच गयी थी. सरकार ने बड़े-बड़े गांवों के डाक घरों में साइबर कैफे खोलना शुरू कर दिया था. इससे गांव वालों को भी फैक्स और इंटरनेट जैसी सुविधाओं का लाभ मिलने लगा था.
एक दिन एक जाट साइबर कैफे पहुंचा. उसने डाक बाबू से पूछा, “भैया, क्या फोकस मशीन से सचमुच पलक झपकते ही चीज़ें यहां से वहां पहुंच जाती हैं.”
“हां ताऊ, लेकिन उसे फोकस मशीन नहीं फैक्स मशीन कहते हैं.” डाक बाबू हंसते हुए बोला.
“कछू कहते हों. मशीन के नाम मां का रखा है. हमें तो उसके काम से मतलब.” डाक बाबू की हंसी सुन जाट झल्ला उठा.
“लेकिन तुम्हें उससे क्या भेजना है?” डाक बाबू ने जाट को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए पूछा.
“म्हारा छोरा शहर में पढ़े है. उसकी अम्मा ने ताज़ी रबड़ी बनायी है. क्या यह फोकस से चली जाएगी.” जाट ने झोले से एक हांडी निकालते हुए पूछा.
डाक बाबू समझ गया कि जाट सीधा-सादा है. उसने रबड़ी हड़पने की सोची. अत: मुस्कुराते हुए बोला, “फैक्स से तो बड़ी-बड़ी फाइलें चली जाती हैं. यह हांडी तो बहुत छोटी है. फौरन पहुंच जाएगी.”
“पैसे कित्ते लगेंगे?” जाट ने जानना चाहा.
“अरे ताऊ, तुमसे पैसे की क्या बात.” डाक बाबू ने जाट के कंधे पर हाथ रखा और मीठे स्वर में बोला, “तुम्हारे घर में तो दूध-दही की नदियां बहती होंगी. एक हांडी माल हम लोगों के लिए ले आया करो, दूसरी हांडी हम मुफ़्त में तुम्हारे बेटे को भेज दिया करेंगे.”
मुफ़्त की बात सुनकर जाट ख़ुश हो गया. किन्तु अपना शक मिटाने के लिए बोला, “लेकिन हमें कैसे पता चलेगा कि रबड़ी छोरे तक पहुंच गयी है.”
डाक बाबू सोच में पड़ गया. थोड़ी दूर बैठे बड़े बाबू दोनों की बातें सुन रहे थे. उन्होंने मोर्चा संभालते हुए पूछा, “छोरे के पास मोबाइल है?”
“हां है, बढ़िया वाला.” जाट ने गर्व से बताया.
“तब क्या. शाम को आना. उससे बात करा दूंगा. ख़ुद ही पूछ लेना कि हांडी पहुंची कि नहीं.” बड़े बाबू ने समझाया.
जाट संतुष्ट होकर जाने लगा, तो बड़े बाबू ने फिर समझाया, “पढ़ाई-लिखाई में दिमाग़ बहुत ख़र्च होता है. तुम अपने बेटे को रोज़ ताज़ा दूध-दही भेज दिया करो. खाएगा-पिएगा, तो सेहत भी बनी रहेगी और दिमाग़ भी दुरूस्त रहेगा."
“ठीक कहते हो. शहर में शुद्ध चीज़ें तो मिलती नहीं. मैं रोज़ भेजवा दिया करूंगा.” जाट हामी भरते हुए चला गया.
उसके जाने के बाद दोनों ने मिलकर पूरी हांडी रबड़ी साफ़ कर दी.
“शाम को जब वह मूर्ख फोन करने आएगा तब क्या करिएगा?” डाक बाबू ने उंगलिया चाटते हुए पूछा.
“उसका इंतजाम है मेरे पास." बड़े बाबू मुस्कुराए , फिर अपने घर का नंबर मिलाने लगे.
उनका घर उसी शहर में था, जिसमें जाट का बेटा पढ़ता था. उन्होंने अपने नौकर से कह दिया कि वह रोज़ एक खाली हांडी उसके लड़के को हास्टल में दे आया करें.
शाम को जब जाट आया, तो बड़े बाबू ने समझाया, “फोन बहुत मंहगा होता है इसलिए केवल मतलब की बात पूछना. फ़ालतू में पैसा मत बर्बाद करना."
जाट बहुत कंजूस था. उसे बात समझ में आ गयी. डाक बाबू ने उसके बेटे का नंबर मिलाया और फोन का स्पीकर आ₹ऑन कर दिया.

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“बेटा, हांडी भेजी थी, मिली कि नहीं?” जाट ने पूछा.
“एक मिली है…” बेटे ने उलझन भरे स्वर में कहा.
"कैसी लगी?"
“हांडी तो अच्छी है लेकिन…”
बड़े बाबू ने फौरन फोन काट दिया और शेखी बधारते हुए बोले, “देखा पहुंच गयी न रबडी की हांडी."
"लेकिन फोन काहे काट दिया. छोरा कुछ कहना चाहे था.” जाट ग़ुस्से से बोला.
“मैंने तो फोन काट कर तुम्हारे पैसे बचाए हैं और तुम उल्टा नाराज़ हो रहे हो…” बड़े बाबू ग़ुस्से से भड़क उठे.
“लेकिन छोरा कुछ परेशान मालूम पड़ रहा था.” जाट अपेक्षाकृत नरम स्वर में बोला.
“परेशान तो होगा ही, क्योंकि बात ही परेशानी वाली है…” तभी डाक बाबू ने मोर्चा संभाला.
“काहे की परेशानी?” जाट अचकचा उठा.
“वो ठहरा इतने बड़े गांव के चौधरी का छोरा और तुमने एक हांडी रबड़ी भेजवा दी. सोचा चोरी-छुपे खा लेगा. यह भी नहीं सोचा कि इससे यार-दोस्तों के बीच छोरे की क्या इज्ज़त रह जाएगी. कम से कम दो हांडी रबड़ी भेजते. एक छोरा ख़ुद खाता, दूसरी यार-दोस्तों को खिलाता. तुम्हारी भी इज्ज़त बन जाती और उसकी भी, पर तुमने सब चौपट कर डाला.” डाक बाबू ने डांट लगायी.
बात जाट की समझ में आ गयी. अगले दिन से वह तीन हांडी लाने लगा. दो बेटे को फैक्स करने के लिए और 1 बाबुओं के लिए. हांडियों में कभी रबड़ी होती, तो कभी दूध, तो कभी दही. दोनों एक हांडी का माल खा-पी जाते और 2 हांडी बेच लेते.
दो महीने बाद जाट का बेटा छुट्टियों में घर आया. उसकी कमज़ोर सेहत देख जाट ने पूछा, “अरे छोरे, तू इतना दुबला कैसे हो गया?”
“शहर में ढंग का दूध-दही तो मिलता नहीं. हॉस्टल का सड़ियल खाना खाकर दुबला नहीं तो क्या मोटा होऊंगा.” बेटे ने कहा.
“जानता हूं… जानता हूं… तभी तो दो हांडी माल रोज़ भेजता था, लेकिन वह भी तेरे शरीर को नहीं लगा. कहो तो एक हांडी और भेज दिया करूं.“ जाट ने बेटे को प्यार से देखते हुए कहा.
“बस बापू बस.” रोज़ खाली हांडी भेज-भेज कर तुमने पहले ही मेरी नाक कटवा दी है. अब और मत भेजना.“ बेटा मुंह बनाते हुए बोला.”
“क्यूं मज़ाक करता है. मैं तो हांडी में रोज़ ताज़ा दूध-दही और रबड़ी भेजता था.” जाट ने बताया.
“जी नहीं, खाली हांडी आती थी. मैंने दो-तीन पोस्टकार्ड भी लिखे कि खाली हांडी मत भेजा करो. दोस्त मज़ाक उड़ाते हैं, लेकिन तू माना ही नहीं.” बेटे ने तेज़ स्वर में कहा.
“बेटा, मैं तो भर हांडी माल भेजता था, लेकिन लगता है रास्ते में गिर जाता था.” जाट ने अफ़सोस जताया.
बेटे को लगा कि मामला कुछ गड़बड़ है. उसने पूछा, “तुम हांडी कैसे भेजते थे.”
“फैक्स्वा से. अपने गांव मां भी साइबेरिया काफ़ी खुल गया है.” जाट ने अकड़ते हुए बताया.
बेटा समझ गया कि किसी ने उसके पिता को मूर्ख बनाया है. उसने बताया कि फैक्स से केवल काग़ज़ की फोटो जाती है और कुछ नहीं. यह सुन जाट का ग़ुस्सा भड़क उठा. अपनी लाठी उठा वह डाक बाबू और बड़े बाबू की खोपड़ी फोड़ने चल पड़ा.
बेटा समझदार था जानता था कि सरकारी कर्मचारियों से मारपीट करना ठीक नहीं है. उसने जाट को रोककर अपनी योजना समझायी.

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थोड़ी देर बाद बेटा डाक घर पहुंचा और झट से वहां रखी फैक्स-मशीन पर बैठ गया.
“अबे पागल, नीचे उतर वरना मशीन टूट जाएगी.“ डाक बाबू ने ज़ोर से डपटा.
“बाबूजी, मुझे फ़ौरन शहर पहुंचना है. जितने पैसे कहोगे दे दूंगा, लेकिन मुझे जल्दी से फैक्स कर दो.” जाट के बेटे ने हाथ जोड़ते हुए कहा.
“अरे मूर्ख, फैक्स से केवल काग़ज़ की फोटो जा सकती है और कुछ नहीं.” बड़े बाबू ने डांट लगायी.
“तू काहे झूठ बोल रहा है.” तभी जाट ने वहां आ मोटा लट्ठ पटकते हुए कहा, “जब फैक्सवा से दूध-रबड़ी की हांडी छोरे के पास शहर जा सकती है, तो छोरा शहर क्यूं नहीं जा सकता.”
बड़े बाबू समझ गए कि उन दोनों की पोल खुल गई है. उन्होंने जाट को समझाने की कोशिश की, तो वह भड़कते हुए बोला, “अगर तूने छोरे को फोकस नहीं किया, तो मैं तुझे अपने लट्ठ पर बिठा कर सीधे ऊपर फोकस कर दूंगा.”
अब तो बड़े बाबू की हालत ख़राब हो गयी. वे हाथ जोड़ते हुए बोले, “चौधरी साहब, हमें माफ़ कर दीजिए. लालच में अंधे हो कर हम दोनों दूध-रबड़ी हजम कर जाते थे और आपको बता देते थे कि उसे फैक्स कर दिया है, जबकि वह फैक्स हो ही नहीं सकती."
“तो तुम दोनों अपना गुनाह क़बूल करते हो.”
“हां, हमसे ग़लती हो गयी. छोटा समझ कर माफ़ कर दीजिए.” डाक बाबू ने भी हाथ जोड़े.
“तुम्हारी बातें हमने मोबाइल में रिकॉर्ड कर ली हैं. अब माफ़ी देना या न देना तुम्हारे अफ़सरों के हाथ में है.” जाट के बेटे ने जेब से मोबाइल निकाल कर उसका स्विच ऑन कर दिया.
अपनी आवाज़ सुन दोनों बाबुओं के होश उड़ गए. नौकरी ख़तरे में जान दोनों ज़ुर्माना भरने को राज़ी हो गए. जाट के बेटे ने हिसाब लगा कर ब्याज़ सहित ज़ुर्माना वसूल कर लिया और जाट से चलने को कहा.
जाट को इतने में तसल्ली नहीं हुई थी. वह उन दोनों को तबीयत से सबक सिखाना चाहता था, अत: अपना लट्ठ बड़े बाबू के गर्दन में अड़ाता हुआ बोला, “तू हम जाटों की खोपड़ी को उल्टा मानता है न!”
“हां, नहीं… नहीं…” डर के कारण बड़े बाबू की घिघ्घी बंध गयी और वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सके.
“हां, नहीं दोनों बोल रहा है. हमें मूरख समझता है. चल आज तुझे अपनी उल्टी खोपड़ी का कमाल दिखा ही देता हूं.” जाट ने अपनी मूंछों को ऐंठते हुए पल भर के लिए कुछ सोचा फिर डपटते हुए बोला, “चल दोनों में से एक खोपड़ी के बल खड़े हो जा और दूसरा फटाफट मुर्गा बन जा.”
दोनों कांप कर रह गए. उन्हें खड़ा देख जाट लट्ठ पटकते हुए चीखा, “जल्दी कर वरना टांगे तोड़ दूंगा." मरता क्या न करता. दोपहर का समय था. आसपास कोई ग्राहक न था. दोनों ने जाट की बात मानने में ही भलाई समझी. बड़े बाबू उल्टे खड़े हो गए और डाक बाबू मुर्गा बन गए.
“छोटे, अब जल्दी से इनकी फोटो खींच कर इंटरनेशनलवा में घुसेड़ दे.” जाट ने बेटे को आज्ञा दी.
“इंटरनेशनलवा क्या होता है?” बेटे ने पूछा.
“वही जिसमें तू बता रहा था कि फोटो घुसेड़ दो, तो सर्र-सर्र पूरी दुनिया में पहुंच जाती है. फिर जिसकी मर्जी हो फोकट में देख ले.” जाट ने बताया.
“अरे बापू, उसे इंटरनेशनलवा नहीं इंटरनेट कहते हैं.” बेटा हंस पड़ा.
“जो भी कहते हों. बस तू फटाफट दोनों की फोटो उसमें घुसेड़ दे.” जाट झल्ला उठा.
बेटे ने मोबाइल से दोनों की फोटो खींची और बोला, “आज के बाद अगर पता चला कि तुम दोनों ने किसी गांव वाले को मूर्ख बनाया है, तो मैं इस एम.एम.एस. को वेबसाइट पर डाउनलोड कर दूंगा."
“अरे तू आज के आज कर.” जाट ने बेटे को डपटा.
“बस बापू, इतनी सज़ा काफ़ी है. दोनों को मतलब भर का सबक मिल चुका है. अब इन्हें छोड़ दो.” बेटे ने समझाया.
“छोड़ दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है.” जाट ने कहा.
“कैसी शर्त?”
“इन दोनों ने मुफ़्त में मेरा बहुत माल खाया है. आज ये दोनों दुकान पर चल कर मुझे पेट भर रबड़ी खिलाएं, तब हिसाब बराबर होगा.” जाट ने शर्त बताई.
मरता क्या न करता. दोनों जाट को लेकर हलवाई की दुकान पर पहुंचे. जाट बिना डकार लिए पांच किलो रबड़ी डकार गया. वह तो अभी पांच किलो रबड़ी और खाना चाहता था, लेकिन अफ़सोस दुकानदार के पास और रबड़ी नहीं बची थी.

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Photo Courtesy: Freepik

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