आख़िर रोता हुआ बूढ़ा, हीरो के पैरों पर गिर पड़ा. "साब, प्लीज़ एक शाॅट और दे दीजिए, मेरी नौकरी का सवाल है. अब ग़लती नहीं होगी." आंखों के आंसू चांटे खाए लाल-लाल गाल पर लुढ़कने लगे. हीरो को दया आ गई. आख़िर वे मान ही गए.
"देखिए हीरो साब, पहले आप इस बूढ़े एक्स्ट्रा को खींचकर एक थप्पड़ मारेंगे.
चार सेकेंड तक थप्पड़ की गूंज सुनाई देगी, फिर आप अपना डायलॉग कहेंगे. यह थप्पड़ वाला सीन पूरी फिल्म की जान है."
हीरो को शाॅट समझाते हुए डायरेक्टर ने कहा.
"ऐसी बात है तो हीरो आज ख़ुद स्टंट करेगा.
सिर्फ़ तमाचा मारने की एक्टिंग नहीं, बल्कि सच में तमाचा मारूंगा, तभी सीन में रियलिटी आएगी."
हीरो के इस सहयोग पर पूरी यूनिट ख़ुशी से उछल पड़ी.
वह बूढ़ा एक्स्ट्रा चांटा खाने से पहले ही अपना गाल सहलाने लगा.
निर्माता ने हंसते हुए उससे कहा, "अबे, डरता क्या है. हीरो का चांटा खाकर तेरा भी कल्याण हो जाएगा, घबरा मत. चांटे के हर शाॅट पर तुझे सौ रुपए एक्स्ट्रा मिलेंगे."
शाॅट की तैयारी होने लगी.
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"कैमरा, लाइट, साइलेंस, यस; एक्शन..."
हीरो ने खींचकर बूढ़े के गाल पर चांटा मारा और अपना डायलॉग बोला.
"कट..." डायरेक्टर ने कहा.
"देखिए हीरो साब, आपको चार सेकेंड रुककर डायलॉग बोलना है, ये सीन फिर से लेते हैं." इतने से शाॅट के लिए री-टेक करवाना हीरो को अपमानजनक लगा. फिर भी वह मान गया. फिर से वही तैयारी और वैसा ही "कट..."
"देखिए हीरो साब, इस बार आप ज़्यादा रुक गए.
प्लीज़, एक बार और."
डायरेक्टर ने हीरो को पुनः समझाया.
"नहीं-नहीं, बस अब पैक-अप, मेरे हाथ थक गए हैं.अब मूड नहीं है."
हीरो के इस जवाब से सारी यूनिट उदास हो गई.
सभी ने हीरो को समझाना शुरू किया.
"मान जाइए ना, आज यह शाॅट लेना बहुत जरूरी है...
आपने शाॅट बहुत ही अच्छा दिया. बस थोड़ा टाइमिंग हो जाए तो यह एक सीन पूरी फिल्म पर छा जाएगा...
बस, सिर्फ़ एक री-टेक और प्लीज़..."
कहते हुए निर्माता हाथ-पैर जोड़ने लगा. एक असिस्टेंट हीरो के हाथ पर क्रीम मलने लगा.
ना-नुकुर कर आख़िर हीरो मान ही गया. एक नए जोश के साथ शाॅट की तैयारी शुरू हो गई.
"देखिए, अब कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए."
"ओके, यस रेडी... एक्शन... और "कट..!"
इस बार बूढ़े एक्स्ट्रा ने शाॅट बिगाड़ दिया था. सारी यूनिट उस पर टूट पड़ी."
"कौन है ये एक्स्ट्रा? कौन लाया इसे? इतना-सा सीन ठीक से नहीं कर सका..."
"निकाल दो इसे, कल से दूसरा एक्स्ट्रा आएगा."
"बड़ी मुश्किल से तो हीरो जी राजी हुए थे, अब कौन मनाएगा उन्हें."
आख़िर रोता हुआ बूढ़ा, हीरो के पैरों पर गिर पड़ा.
"साब, प्लीज़ एक शाॅट और दे दीजिए, मेरी नौकरी का सवाल है. अब ग़लती नहीं होगी."
आंखों के आंसू चांटे खाए लाल-लाल गाल पर लुढ़कने लगे. हीरो को दया आ गई. आख़िर वे मान ही गए.
हीरो के मानते ही यूनिट का ग़ुस्सा बूढ़े के प्रति जाता रहा और इस बार शाॅट ओके हो गया.
हीरो को अच्छा शाॅट देने पर सभी बधाइयां देने लगे.
चांटा मारनेवाले हाथ को सहलाने लगे.
पूरी यूनिट ख़ुश थी कि चलो आज का काम निपट गया.
एक्स्ट्राओं का पेमेंट होने लगा.
बूढ़े को चार बार चांटा खाने के चार सौ अतिरिक्त मिले. एक कोने में खड़े बूढ़े से लाइनमैन ने पूछा, "तुम्हें तो बीस साल हो गए एक्स्ट्रा का रोल करते हुए, फिर आज तुमसे ग़लती कैसे हुई?"
"दरअसल, मैं लालच में आ गया था. प्रोड्यूसर ने हर री-टेक पर सौ रुपए ज़्यादा देने को कहा था.
जब दो बार हीरो की ग़लती से री-टेक हुआ तो मैंने सोचा एक री-टेक मैं भी जान-बूझकर कर दूं तो चौथा शाॅट तो लेना ही पड़ेगा. मुझे आज बेटी की परीक्षा फीस चार सौ जो भरनी थी."
यह कहकर वह ख़ुशी-ख़ुशी अपने लाल हुए गालों को थपथपाते हुए ख़ुद ही ख़ुद को बधाई देने लगा. इस री-टेक में उसने अपनी ज़िंदगी का बेहतरीन शाॅट जो दिया था.
- डी. आर. पाठक
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