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कहानी- कड़वी मिठाई… (Short Story- Kadvi Mithai)

नन्हे-नन्हे गुलाबी रंगत वाले दो प्यारे जुड़वां शिशुओं को देखकर ईशा का मन प्रसन्न हो गया. वैसे भी शिशु तो होते ही हैं प्रसन्नता के सूचक. मां को बधाई देकर और बच्चों को प्यार से निहारकर वह जच्चा के कमरे से बाहर आ गई.

"यह लो मुंह मीठा करो." मनीषा दीदी ने एक प्लेट में चार-छह तरह की मिठाइयां सामने रख दीं. शहर की सबसे महंगी दुकान की मिठाइयां प्लेटों में सजी थीं.

"बड़े प्यारे बच्चे हैं. ख़ूब बधाई आपको भी दादी बनने की." ईशा ने अपनी पड़ोसन मनीषा दीदी को बधाई दी.

दादी बनने की अपार ख़ुशी लहक रही थी उनके चेहरे पर. प्लेट उठाकर उन्होंने ड्रायफ्रूट्स की बर्फी ईशा को थमाते हुए कहा, "पहली सोनोग्राफी में जब हर्ष ने बताया कि जुड़वां बच्चे हैं तब मैं तो घबरा ही गई थी. दबी ज़ुबान से उसे कहा भी था कि अगली सोनोग्राफी के बाद चाहो तो बहू का अबॉर्शन करवा देना. हर्ष तो थोड़ा नाराज़ भी हो गया था सुनकर."

"आजकल तो मेडिकल साइंस इतना एडवांस हो चुका है. मेडिकल फैसिलिटी भी इतनी बढ़िया है. जुड़वां बच्चों की डिलीवरी में कोई दिक्क़त नहीं होती. कितने लोगों को होते हैं जुड़वा बच्चे. उसमें क्या घबराना दीदी." ईशा ने बर्फी का एक टुकड़ा खाते हुए कहा.

"मैं तो हर बार सोनोग्राफी के बाद उन दोनों से पूछती थी कि बच्चे लड़कियां हैं या लड़के. लेकिन दोनों ही कह देते की नहीं पता चलता. अब बताओ बहू ख़ुद डॉक्टर है क्या उसे भी समझ नहीं आ गया होगा. लेकिन मुझे नहीं बताया दोनों ने ही." मनीषा दीदी अपनी रौ में बोलती रहीं.

बर्फी खाते हुए ईशा का हाथ अचानक ठिठक गया.

"लेकिन मैं समझ गई थी. पक्का हो गया था मुझे. जब अगली सोनोग्राफी के बाद भी उन्होंने बच्चों को रखा न, तभी मैं समझ गई थी कि ज़रूर बेटे ही होंगे..." उन्होंने ख़ुशी से चहकते हुए अपनी समझदारी का कसीदा काढा.

लेकिन उनके कहने का आशय समझकर दुख और क्षोभ से ईशा के मुंह में मिठाई का स्वाद अचानक बेहद कड़वा हो गया.

- विनीता राहुरीकर

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