पहला अफेयर: वो बेपरवाह से तुम...! (Pahla Affair: Wo Beparwaah Se Tum)
पहले प्यार (FirstLove) का एहसास होता है बेहद ख़ास, अपने फर्स्ट अफेयर (Affair) की अनुभूति को जगाने के लिए पढ़ें रोमांस से भरपूर पहला अफेयर
आज मन अजीब-सी दुविधा से जूझ रहा है... समझ में नहीं आ रहा क्या कहूं तुम्हें और उसको क्या कहूं, जिसकी तरफ़ कुछ दिनों से मन अंजानी डोर-सा खिंचता चला जा रहा है... जानती हूं तुम मेरे बहुत अच्छे दोस्त हो, अच्छे इंसान हो और सबसे बड़ी बात तुम्हारे साथ मुझे वो सारी सुख-सुविधाएं मिलेंगी, वो सम्मान मिलेगा, जो हर लड़की चाहती है... फिर ये दुविधा कैसी?
हालांकि कुछ दिनों से मुझे अंदाज़ा हो रहा था कि तुम्हारे मन में कुछ चल रहा है... तुम्हारा वो मुझे चोरी-चोरी देखना और फिर मेरे देख लेने पर यह जताना कि तुम तो कुछ देख ही नहीं रहे थे... तुम्हारी बातों से भी एहसास हो रहा था कि शायद पहले प्यार की ख़ुशबू ने तुम्हें छू लिया है... मेरी तरफ़ वो अलग-सा आकर्षण तुम्हारा... समझ रही थी मैं... यहां मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही था... मेरे मन में भी पहली मुहब्बत ने दस्तक दे दी थी शायद... वो अंजाना-सा लड़का अच्छा लगने लगा था... हां, तुम्हारी तरह न वो सुलझा हुआ था, न वो ज़िम्मेदार था, न उसमें सलीका था, न परिपक्वता, न वो सोफिस्टिकेशन, जो तुम में है... पर दिल की धड़कनें तो उसी को देखकर बेकाबू हो रही थीं...
उसका वो बेपरवाह अंदाज़, वो लापरवाह-सा रहना... न सली़के से वो बात करता था, न ज़िंदगी को लेकर इतना गंभीर... शायद उसकी यही बातें मुझे आकर्षित कर रही थीं... और एक दिन उससे मेरी नज़रें मिलीं... दिल वहीं खो गया... उसने भी मुहब्बत का इज़हार किया... और मैं भी ना नहीं कह सकी... कहती भी कैसे, मैं तो न जाने कब से इसी बात का इंतज़ार कर रही थी.
उसका नाम विक्रांत था. मैं अक्सर विक्रांत को कहती कि इतने बेपरवाह क्यों रहते हो, ज़िंदगी में तुम्हें कुछ बनना नहीं है क्या? और वो कहता नहीं, कुछ नहीं बनना, बस तुमसे प्यार करना है... मुझे हंसी आ जाती उसकी बातों पर...
“लेकिन प्यार से पेट नहीं भरता विक्रांत...”
“प्यार के बिना भी तो ज़िंदगी बेमानी है... अब तुमने मुझसे प्यार किया है, तो मुझे ऐसे ही अपनाओ... मैं तो यूं ही रहूंगा हमेशा...”
कभी-कभी तो लगता कि कितना अजीब है ये लड़का... फिर सोचती उसकी यही बातें तो मुझे अच्छी लगती थीं, पर रिलेशनशिप में आने के बाद मैं प्रैक्टिकली सोच रही थी.
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तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे सागर... और आज तुमने भी जब अपने मन की बात मेरे सामने रखी, तो मन उलझ गया... किसे छोड़ूं, किसे अपनाऊं?... तुमसे लगाव था, पर प्यार नहीं... विक्रांत से प्यार था, पर उसका वो बेपरवाह जीवन...
ख़ैर, सोच रही हूं कि इस उलझन को जल्द ही ख़त्म करूं...
“विक्रांत, हम शादी कब करेंगे?”
“जब तुम कहो बेबी... मैं तो कब से कह रहा हूं...”
“कह रहे हो, पर तुम न कोई काम करते हो, न अपने करियर को लेकर सीरियस हो... शादी के बाद क्या करोगे? कैसे गुज़ारा करेंगे हम?”
“सब हो जाएगा दिव्या, तुम बस मुझ पर भरोसा तो करो...”
“यार तुम्हारी यही बातें मुझे बेचैन करती हैं, तुम सीरियस तो हो न मुझे लेकर?”
“तुम्हें क्या लगता है? आज़माकर देख लो... जान दे सकता हूं...”
“मुझे सागर ने कहा है कि वो भी मुझसे प्यार करता है... क्या करूं तुम ही बताओ?”
“मैं क्या बताऊं? तुम क्या सोचती हो उसके बारे में?”
“वो अच्छा लड़का है, उसे हर्ट नहीं करना चाहती...”
“हा, हा, हा... तो हां कह दो...” तुमने हंसते हुए लापरवाही से कहा...
“तुम सच में पागल हो... मुझे तुमसे शेयर ही नहीं करनी चाहिए बातें...”
“अरे यार, ग़लत समझ रही हो, वो तुम्हारा दोस्त है, तुम उसको हर्ट भी नहीं करना चाहती, तो तुम बेहतर जानती हो कि उसे कैसे टैकल करना है... कैसे ना कहना है... कल अगर मैं तुमसे कहूं कि मेरी फ्रेंड ने मुझे प्रपोज़ किया है, तो तुम्हारा क्या रिएक्शन होगा... तुम मेरी जगह ख़ुद को रखकर सोचो...
मैं जानता हूं, तुम मुझे बहुत लापरवाह समझती हो, तुम्हें लगता है कि मैं सीरियस नहीं हूं, पर मेरा विश्वास करो, जब तक सांस है, तुमसे प्यार करूंगा, तुम्हारा इंतज़ार करूंगा... जब तक तुम्हारा हाथ मांगने लायक नहीं हो जाता, तब तक तो तुम इंतज़ार करोगी न मेरा... इतना व़क्त दोगी न...?
मुझे पता है दुनिया बहुत प्रैक्टिकल है, मैं नहीं हूं वैसा, मैं बस ज़िंदगी को जीना चाहता हूं तुम्हारे साथ... ज़्यादा कुछ सोचता नहीं, पर इसका ये मतलब नहीं कि मुझे फ़िक्र नहीं या मैं अपने रिश्ते को लेकर गंभीर नहीं.”
आज तुम्हें पहली बार मैंने इतनी गंभीरता से बात करते देखा... तुम्हारी आंखें भर आईं थीं... तुम भले ही बेपरवाह नज़र आते हो, पर परिस्थितियों को मुझसे बेहतर तरी़के व परिवक्वता से समझने की क्षमता है तुम में... कितना भरोसा करते हो तुम मुझ पर, न कभी ओवर पज़ेसिव होते हो, न कभी मुझे बेवजह रोकते-टोकते हो...
अक्सर ऐसे मौ़के भी आए, जब मुझे किसी ने कुछ ग़लत कहा हो, तुमने ऐसी नौबत कभी नहीं आने दी कि मुझे किसी को जवाब देने की ज़रूरत पड़ी हो... हालांकि मैं एक इंडिपेंडेंट लड़की हूं, लेकिन जब-जब तुम मुझे प्रोटेक्ट करते हो, मुझे अच्छा लगता है... जब-जब तुम बच्चों की तरह ज़िद करके मुझे आईलवयू टु कहलवाने की ज़िद करते हो, मुझे अच्छा लगता है, जब कभी तुम इमोशनल होकर किसी छोटी-सी घटना पर भी यह कहते हो कि आज मन बहुत दुखी है, तुम्हारी ज़रूरत है... मुझे अच्छा लगता है... अच्छा लगता है तुम्हें सुनना, तुम्हारा मुझे हर व़क्त छेड़ना, मुझे ग़ुस्सा दिलाना और फिर कहना मज़ाक कर रहा हूं डफर...
मन की सारी दुविधाएं दूर हो गई थीं. तुमसे प्यार है, तो तुम्हारे साथ ही ज़िंदगी गुज़ारूंगी... फिर भले ही उसमें संघर्ष हो... इस संघर्ष का नाम ही तो ज़िंदगी है और ज़िंदगी का दूसरा नाम मेरे लिए तुम हो...
- गीता शर्मा
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