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जिन्हें अपने भी छूने से डरते हैं उन्हें अब्दुल भाई देते हैं सम्मानजनक अंतिम विदाई, ना मज़हब आड़े आता है, ना कोरोना का ख़ौफ़! (Abdul Malabari: The Man Giving Dignified Burial To COVID 19 Victims)

लोग ना जाने ऊपर वाले को कहां-कहां ढूंढ़ते हैं, जबकि वो किसी नेक बंदे के रूप में हमारे सामने ही होता है. एक ऐसा काम जिसे कोई करना नहीं चाहता, एक ऐसी दिशा जिस तरफ़ जाना आसान नहीं था, एक ऐसा रास्ता जिस पर चलना मुश्किलों भरा था अब्दुल मालाबरी ने वो ही राह चुनी क्योंकि ऊपरवाले ने इसी बंदे को चुना था लोगों की मदद करने के लिए

ऐसे ही नेक बंदे से हमारी बात हुई और हमने जानने की कोशिश की कि उन्हें इसकी प्रेरणा कहां से मिली और कहां से मिला ये हौसला!

कोरोना का यह काल, यह युग ऐसा है जिसने वो सारे मंज़र दिखा दिए जो इंसान कभी देखना नहीं चाहता था. जिसकी कल्पना तक से रूह कांप जाती है वो समय हमारे सामने है. ना अपनों से गले मिल सकते हैं और ना उन्हें जी भर के देख सकते हैं, ऐसे में सूरत के अब्दुल भाई मदद की दिशा में आगे आए और वो काम कर रहे हैं जिसे कोई नहीं करना चाहता.

Abdul Malabari

दरअसल कोरोना से मर चुके लोगों के अंतिम संस्कार के लिए उनके परिवार के लोग भी आगे नहीं आते, इस बीमारी का ख़ौफ़ इतना ज़्यादा है कि उनके मृत शरीर से अपने भी दूर ही रहना चाहते हैं, ऐसे में प्रशासन के सामने भी बड़ा संकट था और उन्होंने इस काम के लिए अब्दुल भाई से संपर्क किया और अब्दुल ने फ़ौरन हां कर दी.

अब सवाल यह है कि सूरत नगर निगम ने अब्दुल को ही क्यों चुना?

इसके जवाब में अब्दुल भाई ने बताया- दरअसल मैं पिछले 33 सालों से लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार का काम करता आ रहा हूं. कभी किसी भिखारी की मौत हो जाए या कभी किसी के मरने के बाद कोई अंतिम क्रिया के लिए आगे ना आए तो ऐसे मृत लोगों को उनके धर्म के अनुसार सम्मानपूर्वक अंतिम विदाई हम देते हैं.
प्राकृतिक आपदा के समय भी हम प्रशासन की सहायता करते हैं.

Abdul Malabari

हमारा ट्रस्ट है- एकता ट्रस्ट और हमारी टीम इस काम में जुटी है. सूरत नगर निगम ने मुझ से संपर्क किया कि क्या मैं covid से मरने वाले लोगों का अंतिम संस्कार करने का काम करुंगा, तो मैंने सीधे सीधे हां कर दी. उसके लिए हमें सारे नियमों की जानकारी व प्रशिक्षण दिया गया.

हम नियमों के अनुसार पूरी सुरक्षा का ख़याल रखते हुए यह काम कर रहे हैं. प्रशासन ने मुझसे इसलिए सम्पर्क किया क्योंकि मैं पहले से इस तरह के काम में लगा हुआ हूं.

Abdul Malabari

इस काम को करने की प्रेरणा कब और कैसे मिली?

इसके जवाब में अब्दुल ने बताया कि इसकी शुरुआत कई साल पहले हुई थी जब एक मुस्लिम महिला की मौत की खबर आई थी और उसकी बॉडी को क्लेम करने कोई नहीं आया था. इंतज़ार में कई दिन बीत गए और उसका शरीर सड़ने लगा था, शरीर में कीड़े तक पड़ने लगे थे. मैंने यह निर्णय लिया कि अब मुझे इस काम को करना चाहिए, मैंने उस महिला के शरीर को डिस इनफ़ेक्ट करने का प्रयास किया और उसका अंतिम संस्कार किया.

Abdul Malabari

मुझे ख़्वाब में वो महिला दिखाई दी कि वो मुस्कुरा रही थी. मैंने अपने धर्म गुरुओं से संपर्क किया और उन्होंने बताया कि उसकी रूह को सुकून मिला, मुक्ति मिली इसलिए वो इस तरह वो आपने आ कर तुम्हें प्रेरणा दे रही है, बस तभी से मैंने यह काम शुरू कर दिया.

Abdul Malabari

आप मुस्लिम हो और आप सभी धर्मों से जुड़े लोगों का अंतिम संस्कार करते हो, ऐसे में धर्म आड़े नहीं आता?

आप किसी भी धर्म का धार्मिक ग्रंथ पढ़ लो, सभी में मानवता को सर्वोपरी माना है. इंसानियत से बड़ा भला कौन सा धर्म हो सकता है? मरने वाला सबसे पहले तो एक इंसान होता है उसके बाद ही वो किसी धर्म से जुड़ा होता है. हमारे पास सभी धर्मों से सम्बंधित सामग्री है, जैसे हिंदू भाइयों ने हमें गंगाजल वग़ैरह भी दान में दिया हुआ है तो हम उसी के अनुसार क्रियाएँ करते हैं.

Abdul Malabari

माना यह काम बहुत नेक है लेकिन कोरोना के समय एक ख़ौफ़ का वातावरण भी बना हुआ है, तो आपके मन में यह बात नहीं आती?

माना कि इस बीमारी ने ख़ौफ़ का अलग ही वातावरण बना रखा है लेकिन हम यह काम सालों से यूं भी कर रहे हैं ऐसे में जब प्रशासन ने हम पर भरोसा जताया तो इस काम को ना कहने का सवाल ही नहीं उठता. यूं भी आप अपने देश के लिए कुछ करना चाहते हो, तो यह एक मौक़ा है अपने वतन के लिए किसी तरह किसी रूप में कुछ योगदान देने का. मुझे तो ख़ुशी है कि मुझपर सरकार ने विश्वास जताया और यह अवसर दिया. डरने की बात वैसे भी नहीं है क्योंकि हम who की गाइडलाइन्स का पालन करते हैं और हमें ppe किट भी मिले हैं. हम अपना काम कर रहे हैं, इसी के ज़रिए लोगों की मदद भी हो रही है और देश की सेवा भी.

अब्दुल भाई से बात करके और उनके काम के बारे में जानकर दिल से उनके लिए दुआ निकलती है और उनके जज़्बे को हम सलाम करते हैं.

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