ऑलराउंडर अक्षय कुमार अपनी फिल्मों और तर्कसंगत बयानों को लेकर हमेशा ही चर्चा में रहते हैं. उनकी हर फिल्म में मनोरंजन के साथ-साथ संदेश भी ज़रूर रहता है. आइए, उनसे जुड़ी कुछ कही-अनकही बातों को जानते हैं.
- अपने फिल्मी करियर में मुझे कई तरह की महत्वपूर्ण भूमिकाएं मिलीं. मैं ख़ुद को ख़ुशनसीब समझता हूं कि मैंने इस तरह के ख़ास क़िरदार निभाए. सच, चांदनी चौक के परांठे गली से शुरू हुआ फिल्मी सफ़र आज देखो किस मुक़ाम तक मुझे ले आया है.
- मनोरंजन की दुनिया में ख़ासकर कॉमेडी में मुझे लाने का श्रेय निर्देशक प्रियदर्शन को जाता है. राजकुमार संतोषी, तनुजा चंद्रा, सुनील दर्शन जैसे निर्देशकों की वजह से मेरे करियर में काफ़ी बदलाव आया. हां, लेखक नीरज वोरा का भी काफ़ी बड़ा हाथ रहा है मुझे इस मुक़ाम तक पहुंचाने में. ‘संघर्ष’ 'जानवर' कुछ ऐसी फिल्में थीं, जो मेरे अभिनय सफ़र की टर्निंग प्वॉइंट रही.
- फिल्म इंडस्ट्री में मैं पैसे कमाने के लिए आया था, लेकिन धीरे-धीरे फिल्म करते हुए मुझे इसे लेकर एक जुनून सा हो गया. फिर पैसे कमाने को छोड़ मैंने अच्छी व सार्थक फिल्में करने की ठानी. कई तरह की जोख़िम भरी भूमिकाएं स्वीकारी. मेरी इच्छा थी कि मैं वैरायटी वाले रोल्स करूं. कुछ अलग-थलग चीज़ें करूं, लेकिन तब पैसे नहीं थे. लेकिन जब ऊपरवाले की मेहरबानी से इस क़ाबिल बना, तब स्पेशल 26, ओ माय गॉड, टॉयलेट- एक प्रेम कथा, एयरलिफ्ट, बेबी, रक्षाबंधन, रामसेतु जैसी फिल्में बनाईं.
- मुझे 'सम्राट पृथ्वीराज' के बारे में इस फिल्म के निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी से बहुत कुछ बताया कि वे नारी के अधिकार व सम्मान का कितना ख़्याल रखते थे. अत्याचार के विरुद्ध उनकी लड़ाई, वीरता प्रशंसनीय है. वैसे अक्सर ऐतिहासिक चरित्र को लेकर बहुत सी कहानियां होती हैं, लेकिन कई बार उनमें उतनी सच्चाई भी नहीं होती.
- मुझे इस फिल्म के कारण महाराणा प्रताप के बारे में धीरे-धीरे बहुत कुछ जानने को मिला. कुछ इसी तरह से मेरी फिल्म 'एयरलिफ्ट' भी थी, जिसके बारे में मीडिया को बहुत कम जानकारी थी. आपको बता दूं कि इस अभियान में 1,70,000 लोगों को बचा कर भारत वापस लाया गया था.
- ‘रामसेतु’ जैसी फिल्में बननी चाहिए, ताकि आनेवाली पीढ़ी हमारी संस्कृति व इतिहास को भलीभांति समझ सके. हमारे इतिहास के बारे में इतनी ढेर सारी सच्ची कहानियां हैं, जिसे जानकर मैं हैरान रह गया था.
- इतिहास के बारे में हमें क्या पढ़ाया गया इसके बारे में मैं नहीं जाना चाहूंगा, लेकिन आप देखेंगे कि आज की तारीख़ में कोई भी न्यूज़ चैनल ऑन करो सब जगह पर समस्याओं का ही ज़िक्र होता है. कोई हल के बारे में नहीं बता रहा है. मैं चाहता हूं कि कोई ऐसा चैनल शुरू हो, जो सॉल्यूशन पर अधिक फोकस करें. वाक़ई में इस तरह का चैनल काफ़ी चलेगा. एक बार ऐसी शुरुआत तो की जाए.
- व्यक्तिगत तौर पर बात करें तो मैं कभी भी फिल्म निर्देशक नहीं बनना चाहूंगा, क्योंकि मैं अपने अभिनय से ही बहुत ख़ुश हूं. मैं जानता हूं कि एक डायरेक्टर के लिए फिल्म बनाना कितना मेहनत और टेंशन वाला काम होता है. साल-डेढ़ साल लग जाते हैं फिल्म बनने में, जबकि मैं छह महीने में एक फिल्म करता हूं और एक फिल्म पूरी करके फिर दूसरी फिल्म शुरू कर देता हूं.
- मुझे अपने परिवार के साथ घर बैठकर समय बिताने में बहुत सुकून मिलता है. आप देखेंगे कि मेरा ऑफिस भी मेरे घर में ही है. घर से ही मैं मुंबई के ख़ूबसूरत नज़ारों का भी लुत्फ उठा लेता हूं. अपनी बेटी के साथ विष अमृत, पकड़ा पकड़ी वाले खेल खेलने में बहुत मज़ा आता है. मेरी यही ख़्वाहिश है कि पैरों में इतनी जान बनी रहे कि अपने बच्चों के साथ खेल सकूं और ये ना सुनने को मिले कि पापा आप दौड़ नहीं सकते.
Photo Courtesy: Instagram
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