हंसने-रोने की तरह ही डरना भी बच्चों के विकास का अहम् हिस्सा है, लेकिन यही डर कभी-कभी बच्चों के कोमल मन पर गहरी छाप छोड़ देता है. आमतौर पर ये डर उनकी काल्पनिक दुनिया से उपजते हैं, लेकिन इनका प्रभाव उनके वास्तविक जीवन पर पड़ता है. किस तरह के होते हैं ये डर और इन्हें कैसे दूर किया जा सकता है? बता रहे हैं अमजद हुसैन अंसारी.
अलग-अलग उम्र में बच्चों के डरने की वजहें अलग होती हैं. उनका डरना बिल्कुल सामान्य है. हां, यदि ये डर हर व़क़्त बच्चों के साथ रहे तो इसे हल्के में न लेते हुए डर के बुख़ार को दूर करने की कोशिश ज़रूर करें. आइए, बच्चों के डर के कारण और उन्हें दूर करने के उपायों के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं. नन्हें बच्चों के छोटे-छोटे डर 2 से 3 साल की उम्र तक के बच्चे उन्हीं जगहों पर सहज महसूस करते हैं जिनसे वे परिचित होते हैं. किसी भी तरह की नई आवाज़, अनज़ान चेहरा या किसी जानवर के बेहद क़रीब आ जाने पर वे तुरंत डर जाते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चे घर के वातावरण से वाकिफ़ होते हैं, लेकिन वहां हो रही हर चीज़ को समझ पाना उनके लिए थोड़ा मुश्किल होता है. यही वजह है कि बच्चे मिक्सी या वैक्यूम क्लीनर की आवाज़ से भी डर जाते हैं. उन्हें यह पता होता है कि वैक्यूम क्लीनर धूल खींचता है, लेकिन साथ ही यह डर भी लगा रहता है कि कहीं यह उन्हें भी न खींच ले. कुछ बच्चों का डर उनके किसी बुरे अनुभव की वजह से होता है, जैसे- यदि बर्थ डे पार्टी में कान के आस पास अचानक गुब्बारा फूट जाए, तो बच्चे को दूसरे गुब्बारों से भी डर लगने लगता है. कुछ बच्चे अपने पैरेंट्स की सभी ऐक्टिविटीज़ को देखते हैं और उन्हीं चीज़ों से डरते हैं जिनसे उनके पैरेंट्स डरते हैं. पैरेंट्स को डरता देख बच्चे भी स्वाभाविक रूप से उनकी नकल करते हैं. ऐसे डर से लड़ने की क्या हो स्ट्रैटेजी? इस उम्र के बच्चे पैरेंट्स को अपने डर का कारण नहीं बता पाते. वे ये तो समझते हैं कि वे असहज महसूस कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अपने डर का कारण नहीं पता होता. इस बारे में 3 वर्षीय लड़के की मां आशा चौहान अपने अनुभव शेयर करते हुए बताती हैं कि उनका बेटा मानक कई बार कपड़े बदलते व़क़्त डर जाता था और उन्हें उसके डर का कारण समझ में नहीं आ रहा था. थोड़े दिनों तक कपड़े बदलते समय मानक की गतिविधियों पर ध्यान देने पर उन्हें समझ में आया कि मानक को स़िर्फ बटन वाले कपड़ों से डर लगता था. आशा ने अनुमान लगाया कि शायद मानक को बटन वाले कपड़ों में बंधा-बंधा सा महसूस होता है और वह घुटन महसूस करता है. ऐसा ही कोई अनजाना डर आपके बच्चे के मन में भी हो तो उसके बारे में पता लगाकर डर को दूर भगाने की कोशिश ज़रूर करें. इसके लिए बच्चे का डर दूर करने का तरीक़ा ढूंढ़ते रहें. बदलें बच्चे का नज़रिया अगर बच्चा कीड़े-मकौड़ों से डरता है, तो उसे इनके बारे में अच्छी बातें बताएं. उसे इन कीड़े-मकौड़ों का स्केच दिखाएं ताकि बच्चे का डर कम हो और वह दुबारा इनका सामना आसानी से कर सके. सही जानकारी दें कुछ बच्चे बाल कटवाने से बहुत डरते हैं. उन्हें लगता है कि बाल कटवाने पर बालों से ख़ून निकलेगा, दर्द होगा या फिर नाई की कैंची से उनके कान भी कट सकते हैं. इस स्थिति में बच्चे का डर दूर करने के लिए उसे बताएं कि बाल काटने से ऐसा कुछ भी नहीं होता. जब कभी आप बाल कटवाने जाएं तो बच्चे को भी साथ ले जाकर उसे दिखाएं कि सभी बाल कटवाते हैं. अपना डर जाहिर न होने दें अगर आपको ख़ुद छिपकली या चूहे से डर लगता है, तो बच्चे के सामने अपने इस डर को कभी उजागर न होने दें. जब कभी बच्चा पास हो और छिपकली या चूहा दिख जाए, तो उसे घर से बाहर भगाने की ऐक्टिंग करें. उम्र के साथ बड़े होते डर 4-5 साल की उम्र में बच्चे जब स्कूल जाना शुरू करते हैं तो उनकी कल्पना का दायरा भी बढ़ जाता है और यही वजह है कि उनके डर भी पहले से अधिक जटिल हो जाते हैं. इस उम्र में उनकी कल्पनाशक्ति भी अपने चरम पर होती है. वे उन चीज़ों से तो डरते ही हैं जो उन्हें दिखती हैं, लेकिन जिन चीज़ों को वे देख नहीं पाते उनकी कल्पना करके वे उनसे भी डरते हैं, जैसे- अगर मम्मी-पापा साथ नहीं सोएंगे तो क्या होगा? या अंधेरे में कहीं कोई आ जाएगा इत्यादि. ऐसे डर से लड़ने की क्या हो स्ट्रैटेजी? बच्चे की जिज्ञासा शांत करने की कोशिश करें. उससे डर का कारण पूछते हुए उसकी ग़लतफ़हमी या मन का डर दूर करने की कोशिश करें, जैसे- अगर बच्चा अचानक पड़ोसी के कुत्ते के सामने आने पर, उसके भौंकने या सूंघने से डर जाता है, तो उसे बताएं कि कुत्ता उसे पहचानने के लिए सूंघ रहा है व उसके पूंछ हिलाने का मतलब है कि आप उसे अच्छे लगे. ऐसी और भी सिचुएशन्स हैं जो अचानक बच्चे के सामने आ जाती हैं और वह आपसे जवाब चाहता है. अत: सवाल-जवाब के लिए ख़ुद को तैयार रखें. बार-बार बात न करें अगर बच्चा किसी बुरे सपने से डर गया हो तो उसके पास बैठकर पूछें कि उसने क्या देखा? सपना देखने के बाद यदि बच्चा अकेला न रहना चाहे तो उसके साथ ही सोएं, लेकिन दूसरे दिन इस स्वप्न के बारे में जिक्र न करें. ऐसा करने से बच्चा भी इस बात को गंभीरता से नहीं लेगा और धीरे-धीरे अपने इस डर को भूल जाएगा. दूसरे बच्चों का उदाहरण दें कई बार बच्चों के मन में सड़क पार करते व़क़्त दुर्घटना घटने या मैदान में खेलते हुए गिरने जैसा डर बैठ जाता है. कुछ बच्चे फ़ील्ड में खेलना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें जानवरों से डर लगता है. ऐसी स्थिति में बच्चे को दूसरे बच्चों का या उसके ही बड़े भाई-बहनों का उदाहरण दें और बताएं कि जिन बातों से वो डर रहा है वे महज कल्पना है. बताएं डर का वैज्ञानिक पहलू बच्चा अगर किसी चीज़ से डर रहा है तो उसका डर निकालने के लिए उसे उस चीज़ का सामना जबरदस्ती न कराएं. उसके मन से डर निकालने के लिए घटना का मुख्य कारण बताएं, जैसे- अगर बच्चा तेज़ हवा और बारिश से डर रहा है तो उसे तेज़ हवा और बारिश का वैज्ञानिक कारण बताएं. इस उम्र में बच्चे विज्ञान से जुड़ी सतही बातें समझने लगते हैं. रखें हॉरर शोज़ से दूर बच्चे को टीवी पर डरावने कार्यक्रम न देखने दें. इन कार्यक्रमों में कई अलग-अलग तरह की आवाज़ों व डरावनी तस्वीरों का इस्तेमाल होता है, जिससे बच्चे डरते हैं और एकांत में भी इनकी कल्पना करते हैं. बड़े बच्चों के डर बड़े बच्चे ये बात बख़ूबी समझते हैं कि कभी-कभी कुछ अनचाहा घट सकता है. स्कूल व ट्यूशन या कई बार घर के बड़ों को वे ऐसी घटनाएं, जैसे- चोरी, डकैती आदि के बारे में बात करते हुए सुनते हैं, लेकिन उन्हें इसके बारे में और कुछ पता नहीं होता. यह सब जानने-सुनने के बाद उनके मन में डर बैठ जाता है कि ऐसी कोई घटना उनके साथ घट जाए तो वे उससे कैसे निपटेंगे? ऐसे डर से लड़ने की क्या हो स्ट्रैटेजी? उन्हें रिलैक्स रहना सिखाएं. बड़े बच्चों के डर को मैनेज करना अपेक्षाकृत आसान होता है. उनके मन से डर निकालने के लिए उन्हें रिलैक्स करने वाली तकनीक, जैसे- मेडिटेशन या योग आदि सिखाएं, ताकि वे समझ सकें कि यदि उन्हें घबराहट हो रही है तो उन्हें सहज महसूस करने के लिए क्या करना चाहिए? मीडिया के अत्यधिक एक्सपोज़र से बचाएं बच्चों की नज़र में दुनिया बहुत सीमित होती है. मीडिया का ़ज़्यादा एक्सपोज़र उनके दिमाग़ पर बुरा प्रभाव डाल सकता है और उनके मन में डर पैदा कर सकता है. ऐसा प्रभाव मार-काट वाले विडियो गेम्स या कार्टून शोज़ से भी होता है. अत: उन्हें मार-काट वाले या हॉरर प्रोग्राम न देखने दें. जीवन-मृत्यु की बातें भी करें थोड़े बड़े बच्चे ज़िंदगी-मौत को लेकर भी सवाल कर सकते हैं, जैसे- उसका छोटा भाई या बहन कैसे पैदा हुई? आपकी मौत कब होगी? अत: बच्चों के ऐसे सवालों के जवाब के लिए ख़ुद को तैयार रखें. आकस्मिक दुर्घटना के बारे में बताएं इन दिनों बाढ़, अकाल, दंगा-फसाद, आतंकवाद जैसे मुद्दों पर चर्चा होना आम बात है. जाहिर है कि इन बातों से बच्चों को दूर रखना बेहद मुश्किल है. ऐसी बातें सुनकर या देखकर उनके मन में सवाल उभरना भी सामान्य है. ऐसे मौक़ों पर बच्चों से इस बारे में बातचीत करें और उन्हें बताएं कि ऐसी घटनाएं कभी-कभार ही होती है और ऐसी घटनाओं से सबको सुरक्षित रखने के लिए सरकार और समाज के पास कई उपाय हैं और आपने भी उनकी सुरक्षा के लिए इंतज़ाम कर रखा है.
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