फिल्मः तानाजीकलाकारः अजय देवगन, सैफ अली खान, शरद केलकर, ल्यूक केनीनिर्देशकः ओम राउतस्टारः 3.5
ऐतिहासिक विषय पर फिल्में बनाना आसान नहीं है. इसके लिए डीप रिसर्च बहुत ज़रूरी है. संजय लीला भंसाली व आशुतोष गोवारिकर की ऐतिहासिक फिल्में आपने कई बार देखी है इस बार ये कठिन कदम उठाया है निर्देशक ओम राउत ने. ओम् को हॉन्टेड और लोकमान्य: एक युगपुरुष जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है. इस बार उन्होंने अजय देवगन को लेकर ‘तानाजी- द अनसंग वॉरियर’ बनाई है. ऐक्शन फिल्मों के शौकीनों के किसी यह फिल्म किसी विजुअल ट्रीट से कम नहीं है.
कहानीः ये कहानी 4 फरवरी 1670 में हुए सिन्हागढ़, जिसे तब कोणढाना के नाम से जाना जाता था, के युद्ध के बारे में है. इस युद्ध में तानाजी (अजय देवगन) और मराठा योद्धाओं ने छत्रपति शिवाजी महाराज (शरद केलकर) के लिए औरंगजेब (ल्यूक केनी) और उसके खास आदमी उदयभान राठौड़ (सैफ अली खान) के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. औरंगजेब पूरे हिंदुस्तान पर कब्जा करना चाहता है और शिवाजी के खास तानाजी उसे रोकने के लिए अपनी जान दांव पर लगा चुके हैं. क्या होगा उदयभान और तानाजी की लड़ाई का अंजाम? यही आप फिल्म में देखेंगे.
निर्देशनः तानाजी: द अनसंग वॉरियर को डायरेक्टर ओम राउत ने बनाया है. उनका काम अच्छा है, डायरेक्शन और एडिटिंग भी अच्छी है. लोकमान्य एक युग पुरुष जैसी ऐतिहासिक फिल्म में बेस्ट डायरेक्टर का फिल्फेयर अवॉर्ड जीत चुके ओम राउत ने फिल्म की कहानी के साथ वीएफएक्स पर भी खूब मेहनत की है. फिल्म ग्रिपिंग है. 3डी के अंतर्गत युद्ध के दृश्यों को देखना किसी विजुअल ट्रीट से कम नहीं है. जर्मनी के एक्शन डायरेक्टर रमाजान ने मराठा की छापमार युद्ध तकनीक को ध्यान में रखते हुए उस दौर के वॉर सीन्स को डिजाइन किया, जो काफी रोचक और थ्रिलिंग बन पड़े हैं. तलवारबाजी के तरीकेकार भी दर्शनीय बन पड़े हैं. किलों और घाटी को विजुअल इफेक्ट्स से अच्छी तरह सजाया गया है.
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एक्टिंगः अभिनय की बात करें तो तानाजी के रोल में अजय देवगन का काम क़ाबिले तारीफ़ है, अपने हाव भाव और अभिनय के अलावा बेहतरीन संवादशैली से वो ताली बटोरने में कामयाब हुए हैं। उदयभान के रोल में सैफ़ अली खान ने अच्छा काम किया है जिस तरह से वो मुस्कुराते हैं और कुटिल हंसी हंसते हैं वो एक विलेन को परदे में उतारने में सफल रहे हैं. काजोल ने अपनी भूमिका को ईमानदारी से निभाया है. उन्हें और ज्यादा स्क्रीनस्पेस दिया जाना चाहिए था. शिवाजी के रूप में भले शरद केलकर की कदकाठी मैच न खाती हो, मगर अपने बॉडी लैंग्वेज और भाव-भंगिमा से उन्होंने इस किरदार को संस्मरणीय बनाया है.
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