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चोट लगने पर नहीं रुक रहा ख़ून, अपनाएं ये तरीक़े ( guide to first aid for bleeding)

कई बार चोट लग जाने की वजह से या किसी एक्सीडेंट की वजह से शरीर से ब्लीडिंग ज़्यादा होने लगती है. शरीर से बहते हुए रक्त को रोकना बेहद ज़रूरी है. अगर समय रहते रक्त को रोका नहीं गया, तो जान भी जा सकती है. ऐसी इमर्जेंसी में अक्सर कुछ सूझता नहीं है. लेकिन अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए, तो न केवल रक्त को रोका जा सकता है, बल्कि पीड़ित की जान भी बचाई जा सकती है. first aid for bleeding 1. ब्लड को कंट्रोल करें - ब्लड को कंट्रोल करने के लिए सबसे पहले उस जगह को खोले, जहां चोट लगी है. अगर चोट कपड़े से ढंकी है, तो कपड़े को कट करके हटा दें और चोट को ध्यान से देखें. - चोट या कट की जगह को स्टेराइल ड्रेसिंग पट्टी या फिर क्लीन पैड से कवर करें. अगर आपके पास साफ़ पट्टी न हो तो अपने हाथों से ही कवर कर लें. - घाव को 10 मिनट तक या अगर पॉसिबल हो, तो उससे ज़्यादा देर तक ज़ोर से दबाकर रखें. घाव को तब तक दबाकर रखें, जब तक ख़ून रुक न जाए. अगर हो सके तो डिस्पोज़ेबल ग्लोव्स को इस्तेमाल करें. - अगर संभल हो तो चोट लगे हिस्से को पीड़ित के हृदय लेवल के ऊपर तक उठाए. लेकिन अगर फ्रैक्चर हुआ है तो बेहद ही आराम और ध्यान से ये काम करें. 2. पीड़ित को लेटा दें - अगर ब्लीडिंग न रुके, तो पीड़ित को प्लेन ज़मीन पर लेटा दें. लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि ज़ख्मी हिस्सा ऊपर की ओर ही हो. - पीड़ित ने अगर टाइट कपड़े पहने हैं, तो उसे लूज़ कर दें. ये भी पढ़ेंः क्यों ज़रूरी है कैल्शियम ? 3. ड्रेसिंग - घाव पर बैंडेज लगाएं. - बैंडेज को ज़्यादा टाइट न बांधे. ध्यान रखें कि ब्लड सर्कुलेशन पर असर न पड़े. अगर पट्टी टाइट है तो उसे लूज़ कर दें. - अगर ड्रेसिंग के बाद भी ब्लड रिसने लगे, तो ऊपर से दूसरी ड्रेसिंग करें. अगर फिर भी ख़ून रिसने लगे, तो पट्टी को खोलकर दोबारा नई ड्रेसिंग करें. 4. अस्पताल में या डॉक्टर को फ़ोन करें - ड्रेसिंग के बाद डॉक्टर या अस्पताल को फोन करके एंबुलेंस की मदद लें. 5. पीड़ित को मॉनिटर करते रहें. - जब तक मदद पहुंच नहीं जाती, तब तक मरीज़ को हर 10 मिनट में मॉनिटर करें. - उसकी नब्ज़ चेक करते रहें. ध्यान रखें कि कहीं उसकी नब्ज़ तेज़ या कमज़ोर तो नहीं हो गई है. - नब्ज़ चेक करने के लिए अपने हाथों की दो उंगलियों को पीड़ित की कलाई पर रखें. अंगुठे के ठीक नीचे कलाई पर उसकी पल्स बीट को गिने. बड़ों की पल्स रेट प्रति मिनट 72 बीट्स होनी चाहिए. - शिशु की पल्स रेट चेक करने के लिए दो उंगलियों को उसके आर्म के अंदर रखें या आर्मपिट और एलबो के बीच में रखें. 140 बीट प्रति मिनट शिशु के लिए नॉर्मल है, जबकि बड़े बच्चे के लिए 100 बीट्स प्रति मिनट नॉर्मल है. - स्कीन का रंग ग्रे या नीला तो नहीं हो रहा. - कमज़ोरी या चक्कर तो नहीं आ रहा. - पीड़ित को पसीना या ज़्यादा ठंड तो नहीं लग रही है. ये भी पढ़ेंः जब आ जाए मोच ज़रूरी बातें - डिस्पोज़ेबल हैंड ग्लोव्स का इस्तेमाल करें या अपने हाथों को अच्छी तरह से धोएं. - अगर पीड़ित बेहोश हो जाए, तो सबसे पहले इस बात की जांच करें कि वो सांस ले रहा है या नहीं. - सांस चेक करने लिए चेस्ट मूवमेंट पर ध्यान दें और देखें वो कितनी बार सांस ले रहा है. एक मिनट में 12-15 बार सांस लेना नॉर्मल हैं. - बच्चे के लिए ब्रीदिंग रेट प्रति मिनट अलग होगा. 2 महीने से कम उम्र के बच्चे के लिए प्रति मिनट में मैक्सिमम 60, 2-11 महीने के बच्चे के लिए प्रति मिनट में मैक्सिमम 50, 1 से 5 साल के बच्चे के लिए मैक्सिमम 40 और 5 साल से बड़े बच्चे के लिए मैक्सिमम 30 बार सांस लेना नॉर्मल है. - यह भी ध्यान रखें कि पीड़ित सांस धीरे ले रहा है या ज़ोर से. - अगर पीड़ित बेहोश हो रहा है तो उसके कंधों को हिलाते रहें. - अगर पीड़ित बच्चा है, तो उसके कंधों को न हिलाएं. इसकी बजाय उसके कंधे पर धीरे से टैप करें या तलुओं पर हल्के हाथ से टच करें. ये भी पढ़ेंः बचें ऐसी दवाओं से जो दे सकती है आपको मोटापा

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