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लो आ गई बैसाखी… बैसाखी स्पेशल: जानें कुछ दिलचस्प बातें (Happy Baisakhi)

बैसाखी देश के अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से बौसाखी मनाई जाती है. लो आ गई बैसाखी, जिसका इंतज़ार हर किसान को बेसब्री से रहता है. बैसाखी, दरअसल सिख धर्म की स्थापना और फसल पकने के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है. इस महीने फसल पूरी तरह से पककर तैयार हो जाती है और पकी हुई फसल को काटने की शुरुआत भी हो जाती है. ऐसे में किसान खरीफ की फसल पकने की खुशी में यह त्यौहार मनाते हैं. क्या है ऐतिहासिक कहानी? सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में वर्ष 1699 में खालसा पंथ की नींव रखी थी. गुरु गोविन्द सिंह ने इसी दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी, इसलिए बैसाखी का पर्व सूर्य की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा. खालसा-पंथ की स्थापना के पीछे गुरु गोविन्द सिंह का मुख्य लक्ष्य लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त कर उनके धार्मिक, नैतिक और व्यावहारिक जीवन को श्रेष्ठ बनाना था. बैसाखी किसानों की ख़ुशी ज़ाहिर करने का दिन बैसाखी पंजाब के किसानों के मुख्य पर्व है. इस पर्व को वो बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं. इस समय गेंहू की फसल तैयार हो जाती है. किसानों के लिए गेंहू सोने के समान होता है. इस त्योहार से किसान अपने खेतों में गेंहू की कटाई शुरू कर देते हैं. फसल अच्छी हुई, तो किसानों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता. इस दिन किसान सुबह-सुबह मंदिरों और गुरुद्वारों में जाकर ईश्‍वर की आराधना करते हैं और फिर इसी दिन से फसलों की कटाई का काम शुरू करते हैं. बैसाखी के त्योहार से बॉलीवुड की फिल्में भी अछूती नहीं रही हैं. कई फिल्मों में भी बैसाखी को भव्य अंदाज़ में दिखाया गया है. फिल्मों में गेंहू के खेतों में किसानों को नाचते-गाते दिखाया जाता है.

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