Close

कहानी- नीली बिंदी (Short Story- Neeli Bindi)

3
          डॉ. निरुपमा राय
 
समय एक ऐसा मरहम है, जो हर घाव को भर देता है. पर कुछ घाव सदा के लिए अपना निशान छोड़ जाते हैं. मन पर  एक निशान लिए दीपा भी धीरे-धीरे सामान्य होने लगी. बेटी के साथ एक बार फिर जीवन को मुट्ठी में समेटने का यत्न करने लगी. काले-सफेद रंग के अलावा अन्य हल्के रंगों के कपड़े भी पहनने लगी, पर नीले रंग से जैसे सदा के लिए उसका मोहभंग हो गया था.
Hindi Short Story नीले प्लेन सिल्क के सलवार-सूट में वो बेहद सुंदर लग रही थी. वो आईना देखकर बाल संवार रही थी और मैं निर्निमेष दृष्टि से उसे, अपनी छोटी बहन को देख रही थी. उसका चेहरा सौम्य और शांत लग रहा था, पर मेरे मन में भीषण उथल-पुथल मची थी. ‘नीला रंग... अथाह गगन का ही नहीं, बल्कि असीम, विस्तृत प्रेम और उमंग का रंग भी है दीदी! जब भी ये रंग देखती हूं न, मन अपार उत्साह से भर उठता है. जीवन इतना सुंदर लगने लगता है कि मन करता है, सब कुछ आत्मा में समेट लूं. मुझे ही नहीं, समीर को भी ये रंग बहुत पसंद है... वो कहते हैं, मैं नीले रंग के कपड़े पहनकर बहुत सुंदर लगती हूं और जब मैं नीली बिंदी लगाती हूं न, तब अप्सरा लगती हूं...’ कहते-कहते लाज की मीठी-सी आभा उसके सुंदर मुखड़े पर इंद्रधनुषी रंग बिखेर जाया करती थी, मुझे आज भी वो सब कुछ विस्मृत नहीं हुआ है. “क्या हुआ दीदी! चुपचाप क्यों बैठी हो? जाना नहीं है?” दीपा ने पूछा, तो मैं वर्तमान में लौटी. “बस, तुरंत तैयार हो रही हूं.” कहकर मैं कपड़े बदलने भीतर चली गई. हे ईश्‍वर! आज मुझे क्या हो गया है? क्यों फूट-फूटकर रोने का मन कर रहा है? कहीं भी जाने का उत्साह तिरोहित हो गया है. नीले रंग से दीपा का बचपन से ही बेहद जुड़ाव था. मां कई बार चिढ़ जातीं, “दस तो पड़े हैं नीले रंग के ड्रेस, फिर वही ले आई. एक ही रंग है क्या दुनिया में? कभी लाल-हरा भी पहनकर देखो.” “मैं तो अपनी शादी में भी नीला ही लहंगा पहनूंगी.” दीपा चहकते हुए कहती. “हां, हां, तू सिंदूर की जगह नीला रंग ही मांग में भरना... ठीक?” दादी मां खिल खिलाकर हंस पड़तीं. दादी मां की हंसी-हंसी में कही बात न जाने किस श्राप के साथ जुड़कर दीपा के जीवन में घुल-मिल गई, किसी को पता ही नहीं चल पाया और... “दीदी! बहुत दूर जाना है. लौटते-लौटते शाम हो जाएगी. तुम ऐसे क्यों बैठी हो?” दीपा ने कहा, तो मैं संज्ञाशून्य अवस्था से बाहर निकलते हुए बोली, “नीला रंग ख़ूब फब रहा है तुझ पर. बहुत सुंदर लग रही है.” “वो तो मैं हूं ही...” वो हंसी. मेरे मन में फिर कुछ टूटकर बिखर गया. अपनी हृदयगत पीड़ा को छिपाने का असफल प्रयास करते, फीकी हंसी हंसते लोग कितने असहाय लगते हैं. मैंने चुपके से उसका चेहरा निहारा. बड़ी-बड़ी आंखें भीग गई थीं. उसकी सुंदर आंखें... इन्हीं आंखों पर रीझकर समीर और उसके परिवार वाले विवाह के लिए तैयार हुए थे. समीर एक संपन्न परिवार का इकलौता बेटा था. दीपा जैसा पति और परिवार चाहती थी, उसे मिला. उसके सपने पंख लगाकर उड़ने लगे थे. “दीदी, समीर को भी नीला रंग बेहद पसंद है. हमारी पसंद, हमारी सोच, सब कुछ कितना मिलता है. अपनी सगाईवाले दिन मैं नीले शिफॉन का ज़रीदार सूट पहनूंगी. कानों में नीले नग जड़े भारी लंबे झुमके, गले में मैचिंग हार, चूड़ियां, सब कुछ एक ही रंग का और बड़ी-सी नीली बिंदी लगाऊंगी. सच दीदी! मैं हमेशा सपने में ख़ुद को इसी रूप में देखती आई हूं...” उसकी हृदयगत आनंद मिश्रित भावनाएं, उत्ताल तरंगों-सी नाच उठी थीं. कितनी सुंदर लग रही थी वो सगाईवाले दिन. आज भी वो दिन और उसकी लुभावनी छवि आंखों में ़कैद है. उस पर समीर ने भी क्या सरप्राइज़ दिया था उसे... नीले रंग के सुंदर बॉक्स में नीलम जड़ा सोने का सेट और नीली बनारसी साड़ी. वो बेहद ख़ुश थी और उसे ख़ुश देखकर हम सभी संतुष्ट थे. धूमधाम से विवाह संपन्न हो गया. दीपा अपने साकार स्वप्न को आंचल में सहेजकर एक नई दुनिया में खोती चली गई. दिल्ली के एक भव्य अपार्टमेंट में स्थित उसके घर जब मैं पहुंची थी, तो सजावट देखकर दंग रह गई थी. नीला रंग केवल रंग मात्र नहीं, एक सजीव कलात्मक संवेदनाओं से मंडित ख़ूबसूरत एहसास भी है, पहली बार यह महसूस किया. इंसान जो सोचता है, उसे प्रत्यक्ष देखने की कल्पना मात्र उसे सिहरा दिया करती है और दीपा की तो कल्पना साकार हुई थी. हृदय से उसे ढेरों आशीष देकर मैं वापस लौटी थी, पर मन वहीं छूट गया था. सेंटर टेबल पर बिछे गुलाबी मेजपोश के मध्य में सुंदर भरवां कढ़ाई से बने मोर के नीले पंखों में... दीवार पर सजी राधा-कृष्ण की आसमानी पृष्ठभूमिवाली नयनाभिराम तस्वीर में और दीपा के बेडरूम में लगे रैक पर सजी उसकी और समीर की सगाई की ख़ूबसूरत फोटो में... सब कुछ कितना अद्भुत-सा था. समय ख़ुशियों के पंख लगाए उड़ता जा रहा था. विवाह के दूसरे वर्ष एक गुड़िया-सी बेटी की मां बनकर दीपा आनंद के हिंडोले झूल रही थी कि चुपके से... धीमी गति से उसके द्वार पर एक दस्तक हुई. दुर्भाग्य की दस्तक. अच्छा-भला स्वस्थ समीर एक दिन पेट दर्द से कराहता हुआ ऑफिस से लौटा. बस, उसी क्षण से दीपा के सुंदर जीवन में एक झंझावात-सा उठा, जो उसके सारे सुखों को लीलने पर आतुर हो उठा. “मिसेज़ मिश्रा! इन्हें लिवर कैंसर है... वो भी सेकंड स्टेज में... हम अपनी कोशिश करेंगे. आप लोग भी ईश्‍वर से प्रार्थना करें.” डॉ. ने सपाट स्वर में कह दिया था. पूरा परिवार सन्न रह गया था. फिर शुरू हुई अस्पताल से घर और घर से विभिन्न डॉक्टरों के क्लिनिक में दौड़! समीर की सेवा में दीपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी, पर वही होता आया है, जो नियति चाहती है. समीर की स्थिति निरंतर बिगड़ती ही जा रही थी. मैं जब समीर को देखने उसके घर पहुंची, तो दोनों की दशा देखकर मन छलनी हो गया. बिस्तर पर लेटा... निर्निमेष दृष्टि से कभी छत को, तो कभी एकटक दीपा के चेहरे को देखता समीर कितनी मार्मिक वेदना झेल रहा होगा, मैं समझ रही थी. पर ये क्या! आज दीपा लाल साड़ी... लाल चूड़ियों से भरी कलाइयों और लाल बड़ी-सी बिंदी लगाकर मेरे सामने है? “अच्छी लग रही है दीपा... पहली बार तुझे इस रंग में पूर्ण शृंगार के साथ देख रही हूं. ईश्‍वर करे तेरा सौभाग्य सदा बना रहे.” न चाहते हुए भी आंखें भर आई थीं. “दीदी! मांजी कहती हैं कि बीमार पति के सामने लाल वस्त्र पहनकर जाने से उनकी उम्र बढ़ती है. पड़ोस की सुधा दी कहती हैं कि लाल के सिवा किसी दूसरे रंग की बिंदी सुहागिनों को नहीं लगानी चाहिए और दादी भी तो कहती थीं न...” वो फूट-फूटकर रो पड़ी थी. “ऐसा कुछ नहीं है, सब कुछ मन का भ्रम है दीपा. तेरी जो इच्छा, वही पहन...” मेरा अंतर्मन एक भयावह सत्य को देखता... संज्ञाशून्य-सा होता जा रहा था. लाख कोशिशों के बावजूद समीर की हालत में कोई सुधार नहीं हो पा रहा था. दीपा मायूसी के दायरे में ़कैद होती जा रही थी. एक दिन उसने मुझसे कहा, “दीदी! आज दादी की एक कहानी बहुत याद आ रही है. वही नीलपरी की कहानी, जिसे एक राक्षस ने जादू से एक ऊंचे महल में कैद कर रखा था और उसकी जान एक तोते में डाल दी थी. मुझे लगता है आज मैं वही नीलपरी बन गई हूं. मायूसी और दुख के ऊंचे दायरे में कैद नियति के हाथों की कठपुतली, जिसकी जान उसके पति में है. नीलपरी को बचाने सात समंदर और सात पहाड़ लांघकर एक राजकुमार आया था और मेरा राजकुमार तो तिल-तिलकर मृत्यु के मुंह में जा रहा है...” बिलख-बिलखकर रोती अपनी बहन को सांत्वना देने के लिए मेरे पास शब्द ही कहां थे. पांच महीने का दारुण कष्ट भोगकर समीर इस नश्‍वर शरीर को त्यागकर चला गया. दीपा की हंसती-खेलती ज़िंदगी सहसा जड़ होकर ठिठक-सी गई थी. “मैं जीना नहीं चाहती दीदी!” “तुझे गुड़िया के लिए जीना होगा दीपा.” मैं बार-बार समझाती. समीर के स्थान पर ऑफिस में दीपा नौकरी करने लगी. जीवन के कटु यथार्थों से उसका बार-बार सामना होने लगा. एक अकेली स्त्री मानसिक यंत्रणाओं की जिस सूली पर चढ़ती है, उसका दर्द केवल वो ही समझ सकती है. उसकी वेदना उसके शब्दों में मुखर हो उठती थी, “समीर जब असहाय-सा बिस्तर पर पड़ा था न दीदी, तब भी ऐसा लगता था कि मेरे सिर पर उसका हाथ है, मैं अकेली नहीं हूं. जबकि किसी भी विकट परिस्थिति में वो मेरी रक्षा नहीं कर सकता था, फिर भी बहुत बड़ा संबल था. उसके नहीं रहने पर ऐसा लगता है, जैसे भीड़ से भरी अजीब-सी दुनिया में नितांत एकाकी हो गई हूं. सहकर्मियों की दयामिश्रित अजीब-सी दृष्टि और समाज की छिद्रान्वेषी नज़रें मेरी आत्मा को सदा दंश से भरती रहती हैं. मैं क्या कर रही हूं? कहां आती-जाती हूं... मेरे घर पर कौन-कौन आता है? मैं क्या पहनती हूं. हंसती हूं, तो क्यों? समाज की आंखों में कई प्रश्‍न रहते हैं और मैं निरुत्तर-सी, मूक-बधिर सी... पाषाण प्रतिमा में बदल जाती हूं.” समय एक ऐसा मरहम है, जो हर घाव को भर देता है. पर कुछ घाव सदा के लिए अपना निशान छोड़ जाते हैं. मन पर एक निशान लिए दीपा भी धीरे-धीरे सामान्य होने लगी. बेटी के साथ एक बार फिर जीवन को मुट्ठी में समेटने का यत्न करने लगी. काले-स़फेद रंग के अलावा अन्य हल्के रंगों के कपड़े भी पहनने लगी, पर नीले रंग से जैसे सदा के लिए उसका मोहभंग हो गया था. मेरे बार-बार कहने पर भी उसने नीले रंग का कपड़ा नहीं पहना. पर अपनी आलमारी में सहेजकर रखी गई नीले रंग की चीज़ों को वो कई बार चुपके से निहारती ज़रूर थी. एक सुबह दिल्ली से उसका फोन आया कि वो पटना आ रही है और उसके पास मेरे लिए एक सरप्राइज़ भी है. पति टूर पर गए थे, दोनों बच्चे दिल्ली और कोटा में थे. मैं ख़ुश थी कि मेरा अकेलापन उसके आगमन से मुखर हो उठेगा. स्टेशन पर खड़ी मैं दिल्ली पटना राजधानी ट्रेन की प्रतीक्षा कर रही थी. ट्रेन किसी वजह से तीन घंटे लेट थी. बी टू का 7 नं. बर्थ... यही बताया था उसने. ट्रेन प्लेटफॉर्म पर रुकी. मैं उसके उतरने की प्रतीक्षा करने लगी. तभी दरवाज़े पर उसे देखा और एक सुखद आश्‍चर्य मेरे सामने था. नीले प्लेन सिल्क का सूट पहने दीपा सामने थी. मेरा मन खिल उठा. मेरी बहन ने फिर से जीवन का स्पंदन अनुभव करने का एक प्रयास किया था. “तो ये है तेरा सरप्राइज़?” मैंने उसे गले से लगा लिया था. “अभी कहां... अभी तो हम राजगीर चलेंगे. रोप-वे पर चढ़ेंगे. गर्म पानी के कुंड में नहाएंगे. खूब एंजॉय करेंगे हम दोनों बहनें...” वो बेहद ख़ुश थी, मैं भी. “दीदी! आख़िर किस चिंतन में हो?” दीपा के इस प्रश्‍न ने फिर से मुझे वर्तमान में लौटा दिया. तैयार होकर मैंने कत्थई साड़ी से मैच करती बिंदी लगाई और अनायास ही एक नीली बिंदी उठाकर दीपा के माथे पर लगा दी. सब कुछ बस एक पल में घट गया. “दीदी...?” “बस, कुछ मत सोच... एक बिंदी ही तो है. चल... घूम आएं.” हम दोनों बहनें घूमकर लौटीं, तो रात के नौ बज रहे थे. मेरे पड़ोस की कुछ महिलाएं टहलने बाहर निकली थीं. “अरे! दीपा आई है?” सबने ख़ुश होकर पूछा. मैंने देखा दीपा ने तेज़ी से माथे की बिंदी उतारकर हथेली में छिपाकर मुट्ठी भींच ली और मुस्कुराकर उनसे बात करने लगी. एक बार फिर सब कुछ एक पल में ही घट गया था.

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

 

Share this article

https://www.perkemi.org/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Situs Slot Resmi https://htp.ac.id/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor https://pertanian.hsu.go.id/vendor/ https://onlineradio.jatengprov.go.id/media/ slot 777 Gacor https://www.opdagverden.dk/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/info/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/vendor/ https://www.unhasa.ac.id/demoslt/ https://mariposa.tw/ https://archvizone.com/