बाकी थी तमन्नाएं हसरत अधूरी थी
चाहतें तड़पती थीं और दुआ अधूरी थी
फिर तेरी आंख से जीने का उजाला मांगा
उम्र तो मिली थी मुझे रोशनी ज़रूरी थी
व़क्त तो कट जाता ज़ुल्फ़ों की छांव में
पर ज़िंदगी गुज़रने को धूप भी ज़रूरी थी
धूल तेरे पांव की चंदन सी महकी थी
ख़ुशबू बदन की तेरी सांस में ज़रूरी थी
ऩज़रें बदलती रहीं हालात देख कर
एक निगाह ऐसे में तेरी ज़रूरी थी...
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
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