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जानें ब्रेन ट्यूमर के स्टेज (Know Different Stages Of Brain Tumor)
जब ट्यूमर ब्रेन में होता है, तब उसे ब्रेन ट्यूमर (Brain Tumor) यानी ब्रेन कैंसर (Brain Cancer) कहते हैं. ब्रेन में ट्यूमर के सेल्स के उपचार के लिए क्लासीफाइड किया जाता है. सेल्स सामान्य दिख रही है या असामान्य इसी के आधार पर ट्यूमर किस स्टेज में है? यह तय किया जाता है. डॉक्टर ट्यूमर की साइज़ के अनुसार ही मरीज़ के इलाज़ की तैयारी करते हैं. ग्रेड यह जानकारी भी देता है कि ट्यूमर कितनी तेज़ी से बढ़ या फैल रहा है..
पहला फेज़
पहला चरण ब्रेन ट्यूमर की वह स्थिति होती है, जब इसका इलाज करके इसे आसानी से ठीक किया जा सकता है. इस स्थिति में सेल्स धीरे-धीरे बढ़ती हैं. पहले चरण में ट्यूमर ब्रेन के दूसरे भागों तक नहीं फैला होता है, इसीलिए आसानी से सर्जरी के ज़रिए खोपड़ी खोलकर ट्यूमर निकाला जा सकता है. इस स्टेज में कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी के ज़रिए भी इलाज किया जा सकता है. सही इलाज मिल जाने से रोगी की उम्र बढ़ जाती है.
दूसरा फेज़
पहले चरण के बाद ट्यूमर फैलने लगता है, इसे दूसरा फेज़ कहते हैं. इस फेज़ में सेल्स थोड़ी असामान्य दिखने लगती हैं, लेकिन बढ़ती धीरे-धीरे ही है. सेल्स ब्रेन के अलावा शरीर के अन्य भागों में फैलने लगती हैं. दूसरे चरण में कैंसर का निदान न करने पर ट्यूमर बढ़ने लगता है. आगे चलकर यह बड़ा घातक हो सकता है. इस स्टेज में कीमोथेरेपी से ट्यूमर का इलाज करना संभव होता है.
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तीसरा फेज़
तीसरे स्टेज तक पहुंचते-पहुंचते सेल्स बहुत घातक हो चुकी होती हैं. सेल्स बहुत ज़्यादा असामान्य नज़र आने लगती हैं और बड़ी तेज़ी से ब्रेन के आसपास के टिश्यूज़ में भी फैलने लगती हैं. तीसरे स्टेज में दिमाग़ ठीक से काम बिल्कुल नहीं कर पाता है. मरीज़ को शरीर का संतुलन बनाने में भी दिक़्क़त आने लगती है. मस्तिष्क में ट्यूमर बढ़ने से बुख़ार और उल्टी होने लगती है. इस स्टेज में रेडिएशन थेरेपी से इलाज संभव रहता है.
चौथा फेज़
कैंसर का यह आख़िरी फेज़ होता है. इसे टर्मिनल स्टेज भी कहा जाता है. सेल्स बहुत तेज़ी से असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं और ये पूरे शरीर में फैल जाती हैं. इस स्टेज में सेल्स शरीर को पूरी तरह डैमेज कर देती हैं. मेडिकल जांच से भी इन सेल्स को पहचानना मुश्किल हो जाता है. इस
स्टेज में कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और लेज़र थेरेपी जैसे उपचार का सुझाव दिया जा सकता है, लेकिन इसका कोई लाभ नहीं होता. अमूमन मरीज़ इस स्टेज में पहुंचने के बाद बचता नहीं है.