मनोज बाजपेयी ने अपने बेमिसाल अभिनय से हर किसी को अपना मुरीद बनाया है. उनकी ज़िंदगी से जुड़ी कई कही-अनकही बातों के बारे में जानते हैं.
- मेरी फिटनेस का राज़ यही है कि मैं क़रीब 14 साल से रात का भोजन नहीं कर रहा. दरअसल, मेरे दादाजी कभी डिनर नहीं करते थे. जब मैंने भी इसकी शुरुआत की, तो शुरूआत में थोड़ी परेशानी हुई, पर बाद में मेरे शरीर को इसकी आदत पड़ गई. इससे न केवल मेरा वज़न कम हुआ, बल्कि मैं काफ़ी एनर्जेटिक भी महसूस करने लगा.
- आज भी मेरे घर पर दोपहर के भोजन के बाद कुछ नहीं पकता. हां, जब बेटी अवा नायला घर पर रहती है, तब ज़रूर उसके अनुसार भोजन बनता है. पहले मैं शराब ख़ूब पीता था, लेकिन सेहत के लिए लंबे समय से इसे भी छोड़ चुका हूं.
- जब हम कॉलेज में थे, तब मेरा दोस्त दिल्ली पढ़ाई के लिए आ रहा था. उसने मुझे भी साथ चलने को कहा. लेकिन मेरे पास ट्रेन के पैसे नहीं थे. उस दौर में उसने मेरी टिकट के पचास रुपए भरे थे, पर मैं लौटा नहीं पाया. तब उसने मुझे ताना मारते हुए कहा कि भिखमंगा कहीं का… जा पंडित है, इसलिए मैंने तुझे दान कर दिया.
- आज भी इन सब बातों के बारे में सोचता हूं, तो अपनी ही मासूमियत पर हंसी आती है कि मुझे इतना भी नहीं पता था कि ट्रेन के लिए टिकट लगेगी. तब गांव में ही पढ़ाई की थी.
- स्कूल के दिनों में मुझे एक लड़की बहुत पसंद थी, तब मेरे दोस्त मुझे ‘फोर्टी फोरवा’ कहकर चिढ़ाते थे. दरअसल, उस लड़की का रोल नंबर 44 था. सच, वो भी क्या दिन थे.
- मुझे अपने गांव बेलवा जाना एक सुखद एहसास से भर देता है. वहां पर भी काफ़ी विकास हो गया है. हाल ही में पत्नी व बेटी के साथ अपने गांव गया था. मैं बेलवा की मिट्टी को हमेशा याद करता हूं. वहां के लोग, गलियां, भुजा और मटन का स्वाद, खेत-खलिहान, नदी, अमोलवा स्टेशन हरेक से प्यारी यादें जुड़ी हुई हैं.
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- मैं देश में रहूं या विदेश में, हर रोज़ कम से कम आधा-पौना घंटे पैदल ज़रूर चलता हूं. परिवार के साथ जब लंदन गया था, तब तो हम क़रीब दस किलोमीटर पैदल रोज़ ही घूम लिया करते थे.
- जब कोई मुझे किसी और नाम से भी पुकारता है, तो मुझे परेशानी नहीं होती, जबकि अन्य सितारे बुरा मान जाते हैं. मुझे तो अक्सर कोई मनोज तिवारी, आशुतोषजी कहकर भी बुलाते हैं और हालचाल पूछने लगते हैं.
- ‘जोरम’ फिल्म की शूटिंग हमने झारखंड में ख़राब मौसम के चलते कठिन परिस्थितियों में की थी, जो आसान नहीं था. इसकी शूटिंग किसी युद्ध से कम न थी. मेरे ख़्याल से शायद यह हिंदी सिनेमा की पहली फिल्म होगी, जिसमें हमने सच में लोहे के खदान में शूटिंग की थी.
- पता नहीं यह कहां से अफ़वाह फैल गई कि मेरे पास 170 करोड़ की मलकियत है. अरे भाई, मैं इतना ज़रूर कमा रहा हूं कि पत्नी के साथ तीसरा पड़ाव सुकून से बिता सकूं और बिटिया को भी पढ़ा-लिखाकर सेटल कर सकूं.
- ऊषा गुप्ता
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