रेटिंग: ३ ***
कुछ फिल्में और उनका निर्देशन कुछ ऐसा होता है कि उसके दर्शक वर्ग भी ख़ास और अलग होते हैं. यही कहानी अजय देवगन व तब्बू की नीरज पांडे निर्देशित फिल्म 'औरों में कहां दम था' में भी देखने मिलती है. फिल्म का विषय, कलाकारों का अभिनय से लेकर निर्देशन तक नब्बे के दशक की फिल्मों की याद दिला देती है. जब अजय-तब्बू की जोड़ी का सुर्ख़ियों में थी, जिसका उदाहरण 'विजयपथ' फिल्म थी.
औरों में… एक ख़ूबसूरत सी प्रेम कहानी है. जहां पर कृष्णा, अजय देवगन बेइंतहा प्यार करता है वसुधा, तब्बू कोे. दोनों मुंबई की चॉल नुमा बिल्डिंग में रहते हैं. यंग कृष्णा के रूप में शांतनु माहेश्वरी और वसुधा की भूमिका में सई मांजरेकर की जोड़ी भली सी लगती है. बचपन में माता-पिता को खो चुका कृष्णा बिहार से दिल्ली फिर मुंबई तक का सफ़र संघर्ष करते हुए कंप्यूटर हार्डवेयर के तौर पर अच्छे जॉब पर है. और अब मेहनत और लगन के बलबूते आगे बढ़ते हुए दो साल के लिए जर्मनी जाने और कामयाब होने का मौक़ा भी मिल जाता है. लेकिन जाने से पहले अपनी वसु के साथ एक यादगार शाम वो बिताना चाहता है. पर क़िस्मत को तो कुछ और ही मंज़ूर था. उसे नहीं पता था ज़िंदगी उसे दो साल की जुदाई नहीं, बल्कि पच्चीस साल के अलगाव का ज़ख़्म दे जाएगी.
वसुधा को भी ख़ूब काम करना, नाम कमाना और आगे बढ़ना है. उस पर माता-पिता और छोटे भाई-बहन की ज़िम्मेदारी भी है. इन सब के साथ उसने पूरी ज़िंदगी कृष्णा के साथ बिताने के ख़्वाब भी देखे हैं. लेकिन एक काली रात में इन प्रेमी जोड़ों के सपने और ज़िंदगी पूरी तरह से बदल जाती है. काश! कृष्णा ने वसु की बात न मानी होती और उसे रात में घर तक छोड़ आता, तो शायद दोनों के चार कदम जुदा होते ही वो भयानक हादसा ना होता.
नीरज पांडे अपने जिस निर्देशन के लिए मशहूर हैं, जो कमाल उन्होंने ए वेडनेसडे, स्पेशल छब्बीस, बेबी, अय्यारी, एम एस धोनी-, द अनटोल्ड स्टोरी जैसी फिल्मों में दिखाई है, उससे बिल्कुल हटकर रही यह फिल्म. यहां उनका एक अलग ही डायरेक्शन देखने मिलता है.
अजय देवगन, तब्बू, शांतनु माहेश्वरी, सई मांजरेकर से लेकर हार्दिक सोनी, जिमी शेरगिल, सयाजी शिंदे तक सभी ने लाजवाब काम किया है. गीत-संगीत मधुर हैं. मनोज मुंतशिर के गीत दिल को छूते हैं. एम. एम. कीरावणी का संगीत भी कभी मधुर, तो कभी धूम-धड़ाके से भरपूर हो जाता है.
दो घंटे चौबीस मिनट की फिल्म शुरुआत से जो धीमी गति से चलती है, तो अंत में आकर बहुत कुछ दिखा भी जाती है. कहानी में एक राज़ भी है, जिसका पता अंत में चलता है, जो अद्भुत प्यार को परिभाषित अपने ढंग से करते हुए प्रेमियों को कुछ सोचने पर भी मजबूर करता है.
फिल्म के निर्देशन के अलावा कहानी भी नीरज पांडे ने ही लिखी है. शीतल भाटिया, नरेंद्र हीरावत, संगीता अहीर और कुमार मंगत पाठक निर्माताओं के तौर पर जुड़े हैं.
- ऊषा गुप्ता
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