आख़िर ऐसी फिल्में बनती ही क्यों है?.. जिसमें वही पुरानी घीसी-पीटी कहानी और बिखरता अंदाज़, जहां पैसे व समय की बर्बादी के अलावा कुछ हाथ नहीं आता. ऐसा नहीं है कि हमारे यहां टैलेंट, कहानी या अच्छे निर्देशकों की कमी है. किंतु कलाकार से लेकर डायरेक्टर तक इस ग़लती को बार-बार दोहराएं, तो हम कर ही क्या सकते हैं सिवाय फिल्म को ना देखने के. मनोज बाजपेई की 'भैया जी' उनकी सौंवी फिल्म कहीं जा रही है, जिसमें सच्चाई कम मुफ़्त का हल्ला-गुल्ला अधिक लग रहा है. लेकिन बेहतर होता कि इससे अच्छी कोई फिल्म उनके १०० के आंकड़े में आती.
बिहार के राम चरण, मनोज बाजपेई से उनका पूरा इलाका खौफ़ खाता है. रॉबिन हुड वाले अंदाज़ में उनके दहशत और फावड़े से न जाने कितने ज़ुल्मी भगवान को प्यारे हो गए. लेकिन अपने मास्टर पिता को दिए वचन के कारण वे मार-पिटाई छोड़कर अपनी सौतेली मां और भाई के साथ शांतिपूर्ण आम जीवन जीते हैं. परंतु कहानी में तब भूचाल आता है, जब उनके भाई को मार दिया जाता है. उसी का प्रतिशोध लेने एक बार फिर वे अपने पुराने एक्शन में लौट आते हैं. फिर शुरू हो जाती है सांप-छुछुंदर वाली स्थिति और विलेन अपने बेटे को राम चरण से बचाने के लिए इधर-उधर भागते फिरते हैं.
फिल्म का एक्शन कुछ अलग अंदाज़ में है, पर कहानी-पटकथा बेदम होने के कारण सवा दो घंटे की फिल्म घंटे भर में ही उबाऊ सी लगने लगती है. दर्शक शुरुआत में ही समझ जाते हैं कि कहानी क्या मोड़ लेने वाली है और आगे चलते-चलते थोड़ी देर में ही अंदाज़ा हो जाता है कि फिल्म का अंत क्या होनेवाला है. कहानी-निर्देशन में कोई नयापन न होने के कारण फिल्म मात खा जाती है. निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की, जिन्होंने मनोज बाजपेई के साथ 'सिर्फ़ एक बंदा काफी है' बनाई थी, जो एक बढ़िया और सार्थक फिल्म रही थी. लेकिन वही करिश्मा इस फिल्म में यह जोड़ी नहीं दिखा पाई.
मनोज बाजपेई की पत्नी शबाना फिल्म की निर्माता भी है. एक तरह से मनोज की ख़ुद की फिल्म में वह कमाल नहीं दिखा पाए, जो अब तक बैंटिट क्वीन से लेकर फैमिली मैन तक में अपने सशक्त अभिनय का लोहा मनवाते रहे हैं.
अन्य कलाकारों में सुविंदर विकी, जतिन गोस्वामी, भगीरथ बाई, अमरेंद्र शर्मा, विपिन शर्मा, जोया हुसैन, रमा शर्मा सभी का काम ठीक-ठाक ही रहा. संदीप चौटा का बैकग्राउंड स्कोर और मनोज तिवारी का गाया गाना बाघ का करेजा… ठीक है.
अपूर्व सिंह ने दीपक किंगरानी के साथ मिलकर फिल्म की कहानी लिखी है, पर क्या उन्हें ज़रूरी नहीं लगा कि इसमें कुछ नयापन भी दिया जाए. शैल ओसवाल और शबाना रजा बाजपेई फिल्म के निर्माता हैं.
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