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फिल्म समीक्षा: भेड़िया- वीएफएक्स और सिनेमैटोग्राफी का लाजवाब कमाल (Movie Review- Bhediya)

वरुण धवन की फिल्म 'भेड़िया' सभी को ख़ूब पसंद आ रही है. किस तरह से वरुण इंसान से भेड़िया बनते हैं, उनके लुक और वीएफएक्स के इफेक्ट्स दर्शकों को लुभाते हैं. उस पर दीपक डोबरियाल, अभिषेक बनर्जी, पॉलिन कबाक, कृति सेनॉन की मज़ेदार एक्टिंग कहानी को न केवल आगे बढ़ाती है, बल्कि दिलचस्पी भी पैदा करती है.
निर्माता दिनेश विजन की फिल्म भेड़िया में अरुणाचल प्रदेश की ख़ूबसूरती, जंगल, आदिवासियों की जीवनशैली एक अलग ही समां बांधती है. फिल्म की कहानी बस इतनी सी है कि भास्कर जिसकी भूमिका वरुण धवन कर रहे हैं, रोड़ कॉन्ट्रेक्टर हैं और अपने बॉस बग्गा, सौरभ शुक्ला के कहने पर अरुणाचल प्रदेश के ज़ीरो इलाके में रोड बनाने के लिए आते हैं. उनका साथ देने चचेरा भाई जनार्दन, जो अभिषेक बनर्जी हैं भी होते हैं. लेकिन वहां जंगल के आदिवासी और स्थानीय लोग नहीं चाहते कि जंगल के पेड़ों को काटकर कुछ बनाया जाए. इसमें भास्कर को कितनी ही परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

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भास्कर की इच्छा पैसा-नाम कमाने, बड़ा आदमी बनने की है. इस राह पर वह कुछ भी करने के लिए तैयार रहता है. उसका यह भी मानना है कि पैसे से कुछ भी किया जा सकता है. आदिवासी और स्थानीय लोगों को राज़ी करने के लिए वह भाई, दोस्त की मदद लेता है. तीनों वहां के ट्राइबल और लोकल लोगों को समझाने की कोशिश करते हैं कि रोड बनने से उन्हें काफ़ी फ़ायदा होगा और रोज़गार भी मिलेंगे. लेकिन इसी बीच एक हादसा हो जाता है और भास्कर को जंगल में भेड़िया काट लेता है, जिससे वह इच्छाधारी भेड़िया, ख़ासकर पूनम की रात को इंसान से भेड़िया बनने लगता है. इस पर कहानी कई दिलचस्प मोड़ लेती है.


कृति सेनॉन फिल्म में जानवर की डॉक्टर बनी हैं. वहां पर कोई हॉस्पिटल और डॉक्टर न होने की वजह से वरुण धवन को भेड़िया काटने पर इलाज के लिए दोस्त कृति के पास लाते हैं. और आगे कई मज़ेदार प्रसंग भी देखने मिलते हैं, ख़ासकर कृति से जुड़ा राज़ जानकर लोग ताज्जुब में आ जाते हैं.
भास्कर के प्रोजेक्ट में रोड़ा लगाने या अवरोध पैदा करनेवाले लोगों की भेड़िए के ज़रिए मौत होने लगती है, जिससे वहां की पुलिस और लोगों के बीच डर व बेचैनी का माहौल बन जाता है. क्या वे इससे उबर पाते हैं या भास्कर इच्छाधारी भेड़िए की अपने रूप से निकल पाता या बच पाता है..? फिल्म देखने पर ही इस दिलचस्प पहलू को जान पाएंगे.


फिल्म में कई बातों पर व्यंग्य और ध्यान भी आकर्षित करने की कोशिश की गई है, विशेषकर नॉर्थ ईस्ट इंडिया के लोगों को चाइनीज़, बाहरी लोग कहने की बात हो या फिर पर्यावरण पर संदेश. फिल्म की सिनेमैटोग्राफी क़ाबिल-ए-तारीफ़ है, जो जिष्णु भट्टाचार्जी सारा क्रेडिट ले जाते हैं. उन्होंने अरुणाचल प्रदेश की ख़ूबसूरती को अपने कैमरे से बख़ूबी उकेरा है.
सचिन-जिगर और अमिताभ भट्टाचार्य के गीत-संगीत उतना कमाल नहीं दिखा पाते हैं. अरिजीत सिंह के गाए गीत भी अपना प्रभाव नहीं दिखाते. लेकिन ठुमकेश्वरी… गाना आकर्षण बनाए रखती है. क्लाइमेक्स में राजकुमार राव, अपारशक्ति खुराना और 'स्त्री' फिल्म के कनेक्शन को दिलचस्प ढंग से जोड़ा गया है, क्योंकि उस और इस फिल्म के निर्देशक अमर कौशिक ही हैं. उन्हें हॉरर के साथ कॉमेडी पेश करने में महारत हासिल है, जिसकी बानगी 'स्त्री' फिल्म में देखने मिली थी.

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निरेन भट्ट ने अपनी लेखनी से फिल्म में नयापन देने की काफ़ी कोशिश की, लेकिन बहुत साल पहले महेश भट्ट की आई फिल्म 'जुनून' जिसमें राहुल रॉय ने भी ऐसे इंसान से जानवर बनने का रोल किया था की कमज़ोर कोशिश लगती है, ऐसा कई देखनेवालों का कहना है.
अभिनय की बात करें, तो फिल्म की पूरी वाहवाही वरुण धवन ले जाते हैं. कॉमेडी के साथ-साथ गंभीर भूमिका में भी वे दमखम रखते हैं उन्होंने इस फिल्म से साबित किया है. उनका साथ अभिषेक बनर्जी, दीपक डोबरियाल, पॉलिन कबाक और कृति सेनॉन ने बख़ूबी दिया है.

रेटिंग: 3 ***

Photo Courtesy: Instagram

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