अजय देवगन एक्शन किंग है, इसमें कोई दो राय नहीं और अपने इसी जलवे को उन्होंने अभिनेता-निर्माता-निर्देशक के रूप में उनकी फिल्म 'भोला' में दिखाया है. तमिल फिल्म 'कैथी' की रीमेक है भोला मूवी. फिल्म की कहानी बस इतनी सी है भोला, अजय देवगन दस साल की जेल की सज़ा काटकर बाहर आते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि उनकी एक बेटी है, जो लखनऊ के अनाथालय में है. वह अपनी बेटी को मिलने के लिए बेताब हो जाते हैं.
इसी बीच एसपी डायना, तब्बू 1000 करोड़ के हिरोइन ड्रग्स गुंडों से जब्त करती हैं और उसे लालगंज के थाने में छुपा दिया जाता है, ताकि अदालत की कस्टडी से पहले इतनी बड़ी नशीले पदार्थों की खेप अपराधियों के हाथ न लग जाए.
तब्बू के बॉस किरण कुमार के यहां हुई पार्टी में पुलिसकर्मियों को धोखे से ड्रिंक्स में नशा का मिलाकर बेहोश कर दिया जाता है. इन सब की जान बचाने की ज़िम्मेदारी तब्बू पर आ जाती है, वो इसके लिए भोला की मदद लेती है. 40 पुलिसकर्मियों से लदे ट्रक को अपराधियों से बचाता हुआ तब्बू के साथ अजय देवगन निकलते हैं. दरअसल, माफिया डॉन अश्वत्थामा, दीपक डोबरियाल के ड्रग्स को तब्बू ने ही पकड़वाया है. इसका बदला लेने और पाने के लिए वो तब्बू को मारने के लिए करोड़ों का ईनाम रखता है. ईनाम पाने की लालच में इस कारण सभी अपराधी गुटों के लोग तब्बू के पीछे पड़ जाते हैं. तब शुरू होता है चोर-पुलिस के लुका-छिपी का खेल.
तब्बू एक्शन और इमोशन दोनों में लाजवाब लगी हैं. वैसे भी उन पर पुलिस इंस्पेक्टर की वर्दी और क़िरदार दोनों ही ख़ूब फबते हैं. उनके साथ एक हादसा भी हो चुका है, जहां कोख में उनके बच्चे को मार दिया गया था. अजय देवगन भी अपनी बेटी से जुदाई के दर्द को उनके साथ शेयर करते हैं.
अजय देवगन और तब्बू दोनों के साथ के एक्शन और इमोशंस के सीन अच्छे बन पड़े हैं. फिल्म में गेस्ट अपीयरेंस में अमला पॉल भी हैं. उनके साथ अजय देवगन का रोमांटिक गाना देखने-सुनने में अच्छा लगता है. साउथ की इस एक्ट्रेस में दीपिका पादुकोण की हल्की झलक दिखाई देती है.
बाकी कलाकारों में संजय मिश्रा, किरण कुमार, विनीत सिंह, गजराज राव, राहुल देव, अमीर खान सभी ने अपने भूमिकाओं के साथ न्याय किया है. कई जगहों पर भ्रष्टाचारी पुलिस के रूप में गजराज की भूमिका चकित करती है. अमीर ने भी कड़छी के रूप में बढ़िया कॉमेडी की है.
सिनेमैटोग्राफर असीम बजाज ने हर फ्रेम पर बारीकी से काम किया है, ख़ासकर बनारस में आरती का सीन याद रह जाता है.
क्या तब्बू अपने 40 बेहोश पुलिसकर्मियों की जान बचाने में सफल होती हैं..? क्या अजय देवगन अपनी बेटी से मिल पाते हैं?.. अश्वत्थामा अपना बदला ले पाता है… यह सब तो फिल्म देखने पर ही जान पाएंगे. लेकिन एक्शन से भरपूर यह फिल्म शुरू से अंत तक मारधाड़ के कई रोंगटे खड़े कर देने वाले रोमांचक दृश्यों से रूबरू कराती है. एक्शन प्रेमी लोगों को यह फिल्म ज़रूर पसंद आएगी और अजय देवगन व तब्बू के फैंस को तो आएगी ही.
सारा अली खान एक के बाद एक ओटीटी पर फ्लॉप फिल्में ही लेकर आ रही हैं. यह उनकी तीसरी फिल्म है, जो असफल होने का इशारा कर रही है. इसके पहले उनकी कुली नंबर वन व अतरंगी रे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ही रिलीज हुई थी. डिज़्नी हॉटस्टार के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर गैसलाइट की चमक फीकी ही साबित हुई है. एक कामयाब थ्रिलर सस्पेंस मूवी बनाते-बनाते चूक गए निर्देशक पवन कृपलानी. इसके पहले उनकी 'भूत पुलिस' भी कुछ ख़ास कमाल नहीं दिखा पाई थी. इसमें सारा अली खान के पिता सैफ अली खान थे. यूं लगता है खान परिवार के साथ कुछ ख़ास ही रिश्ता है फिल्ममेकर का. टिप्स के बैनर तले बनी दोनों ही मूवी लोगों का मनोरंजन नहीं कर पाई.
गुजरात के मोरबी गांव के क़रीब के रियासत की राजकुमारी है मीशा, सारा अली खान. उनका अपने पिता के साथ अनबन हो गया था, जिसके चलते बरसों से पिता से अलग रह रही थीं. लेकिन पिता के बुलावे पर अपने राजमहल में आती हैं. तब उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता कि पिता तो है नहीं. उनकी सौतेली मां चित्रांगदा सिंह की हरकतें में सारा को बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती हैं. सारा को रात में कभी अपने पिता दिखाई देते हैं, कभी उनकी परछाई दिखाई देती हैं.
महल में काम करने वाले विक्रांत मैसी सारा को बताते हैं कि उनकी सौतेली मां अपने पुलिस अफसर दोस्तों, डॉक्टर के साथ मिलकर उनके पिता की संपत्ति को हड़पना चाहती हैं. सारा अपने पिता के गुम होने की शिकायत पुलिस थाने में करती हैं. उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश करती हैं. इसी कड़ी में उन्हें कई दिल दहलाने वाले और रोंगटे खड़े कर देने वाले हादसों से दो-चार होना पड़ता है.
अब गौर करने वाली यह भी बात है कि सारा विकलांग है. एक एक्सीडेंट में उनका पैर के नीचे का हिस्सा बेजान हो चुका है, जिसके चलते व्हील चेयर पर हैं. व्हीलचेयर पर रहते हुए अपने पिता खोजबीन कर रही हैं. अब सारा की पिता से मुलाक़ात हो पाती है कि नहीं, उनकी सौतेली मां उनके जायदाद को हड़प पाती है कि नहीं… यह तो फिल्म देख कर ही समझ पाएंगे. लेकिन फिल्म उतना हॉरर या डर नहीं पैदा कर पाती है, जितना कि एक सस्पेंस थ्रिलर मूवी से उम्मीद की जाती है.
सारा अली खान, विक्रांत मैसी, चित्रांगदा सिंह सभी के अभिनय ठीक-ठाक ही हैं. फिल्म को बांधे रखने वाला आकर्षण गायब है, जो सारा, थोड़ी-बहुत सस्पेंस का शौक रखते हैं, वे फिल्म देख सकते हैं.
फिल्म का गैसलाइट नाम इस बात के लिए संकेत करता है कि जैसे पुराने ज़माने में जब गांव-कस्बों में बिजली नहीं रहती थी, तो लालटेन का इस्तेमाल किया जाता था. जिसमें मिट्टी का तेल भर के कपड़े के बाती से रोशनी की जाती थी. दूसरा अंग्रेज़ी में गैसलाइट का मतलब किसी को किसी झूठी बात पर यक़ीन दिलाने को गैसलाइट करना कहा जाता है. फिल्म में थोड़ा कंफ्यूजन पैदा होता है कि यहां पर निर्देशक क्या कहना चाह रहे हैं.
भोला और गैसलाइट दोनों ही फिल्में अपनी-अपनी जगह पर ख़ास का दम रखती हैं, पर कहीं कलाकार इसकी कसौटी पर खरे नहीं उतरते, तो कहीं कहानी-पटकथा मार खा जाती है, तो कलाकारों की ओवरएक्टिंग.
फिर भी भोला के एक्शन और मारधाड़ और वीएफएस के कमाल के आगे गैसलाइट की चमक फीकी ही है. जहां पर हैरतअंगेज फाइट सीन्स की भरमार है, वहीं गैसलाइट कमजोर पड़ जाती है. भोला में एक रात की पूरी कहानी है, तो वही गैसलाइट में भी काफी अंधेरे के सीन्स हैं, जो रोशनी कम ही दे पाते हैं.
रेटिंग: 2 **
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