रेटिंगः ***
लंबे अरसे के बाद पहली बार तीन महिलाओं पर केंद्रित मनोरंजन से भरपूर कुछ अलग तरह की फिल्म देखने मिली क्रू के रूप में. वैसे भी क्यों न हो, जब निर्माता के रूप में एकता कपूर, रिया कपूर के साथ अनिल कपूर भी जुड़े हुए हों.
तीनों ही अभिनेत्रियां तब्बू, करीना कपूर और कृति सेनॉन अपने अभिनय, कॉमेडी, फनी डायलॉग्स के साथ कभी-कभी थोड़ी ओवरएक्टिंग के बावजूद मुस्कुराने और गुदगुदाने में सफल रहीं. हवाई जहाज में काम करेनवाले कर्मचारियों का दस्ता क्रू की ये तीनों एयर होस्टेस हैं. तीनों के अपने-अपने सपने, मजबूरियां व संघर्ष हैं.
जहां तब्बू पति कपिल शर्मा के साथ गोवा में अपना ख़ुद का एक होटल खोल सैटल होने के जोड़-तोड़ में लगी है. वहीं करीना पैरेंट्स के तलाक़ होने पर अपने नाना कुलभूषण खरबंदा के साथ बचपन से रहते हुए ख़ुद की कंपनी, ख़ासकर परफ्यूम खोलने और उसे ऊंचाइयों तक ले जाने का ख़्वाब देख रही है.
कृति सेनॉन का ड्रीम तो पायलट बनने का था, पर क़िस्मत ने एयरहोस्टेस बनने पर मजबूर कर दिया. हां, घर से तो वो मगन ड्रेसवाला के भाड़े के पायलट के यूनिफॉर्म में ही निकलती है. क्या करें बेचारी ने घर में झूठ जो बोला है कि वो पायलट है.
ये तीनों जिस कोहिनूर एयरलाइन्स में काम करती हैं, उसके मालिक विजय वालिया, अपनी एयरलाइन्स की आड़ में सोने की तस्करी करने का गोरखधंधा करते हुए बेशुमार पैसे कमा रहे. लेकिन अपने हज़ारों कर्मचारियों को छह महीने से तनख़्वाह नहीं दिया है. यहां पर असल ज़िंदगी में किंगफिशर के मालिक विजय मालिया ने जो किया उसी पर तंज कसा गया है. साथ ही हवाई जहाज से जुड़े उन तमाम कर्मचारियों की घर-बाहर की स्थिति, आर्थिक परेशानियां, ज़रूरतें, ख़्वाहिशों को भी दिखाने की सराहनीय कोशिश की गई है.
कहानी में दिलचस्प मोड़ तब आता है, जब स्ट्रगल कर रही दिव्या, गीता, जैस्मीन यानी करीना, कृति, तब्बू के हाथ पैसे कमाने का एक शॉर्टकट, पर ख़तरनाक ज़रिया सामने आता है. हां.. हां.. ना.. ना.. करते-करते आख़िरकार तीनों देवियां इस जोख़िम भरे सफ़र पर निकल ही पड़ती हैं.
प्लेन में मौत, सोने की तस्करी, कलीग्स के लालच, पैसों की बरसात, रिश्तों की उलझन, प्यार का दर्द, सहेलियों का साथ और साहस… निर्देशक राजेश ए. कृष्णन ने दो घंटे की फिल्म में सब कुछ कॉमेडी और रोमांच के साथ दिखाने का दुस्साहस किया है, जिसमें वे कामयाब रहे.
कस्टम अफसर की भूमिका में दिलजीत दोसांज ठीक ही रहे. कृति सेनॉन के साथ उनकी जोड़ी फ्रेश और ख़ूबसूरत लगती है. उनके द्वारा गाया गाना नैना… सुमधुर है. लेकिन कपिल शर्मा को उनकी इमेज के अनुकूल कॉमेडी के कई पंचेस दिए गए होते, तो अच्छा होता. पति और खानसामा के रूप में वे अनफिट से लगते हैं. उन पर गंभीर भाव-भंगिमाएं जंचती भी तो नहीं है.
अन्य कलाकारों में राजेश शर्मा, तृप्ति खामकर, पूजा भमराह, शाश्वत चटर्जी, कुलभूषण खरबंदा ने अपनी-अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है. लेकिन पूरी फिल्म में तब्बू, करीना कपूर और कृति सेनॉन छायी रहती हैं. उनकी अदाएं, ग्लैमर, चुलबुलापन, बेवकूफ़ियां सब कुछ लाजवाब है.
अनुज राकेश धवन की सिनमैटोग्राफी बेहतरीन है. देश हो या विदेश ख़ूबसूरत लोकेशन को बढ़िया ढंग से प्रस्तुत किया गया है. टिप्स कंपनी को संगीत को लेकर थोड़ा इम्पूवमेंट करना था. बादशाह और विशाल मिश्रा का संगीत, गायकों की भरमार है, पर रस कम, शोर अधिक लगता है. भला हो इला अरूण जी का जो उनका चोली के पीछे क्या है… घाघरो जो घूमियो… गाना दिलोदिमाग़ में तरोताज़गी लाने के साथ मनोरंजन भी बेहद करता है. इस पर तीनों हीरोइन्स की डांस और मस्ती लाजवाब माहौल बना देती है. हां, सोना कितना सोना है… गाने को भी क्या ख़ूब इस्तेमाल किया गया है फिल्म में. जॉन स्टीवर्ट एडरी का बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है.
फिल्म की कहानी निधि मेहरा के साथ मेहुल सूरी ने मिलकर लिखी है. वे कहानी में थोड़ा और ट्विस्ट लाते, तो और भी मज़ा आता. बालाजी मोशन पिक्चर्स और अनिल कपूर फिल्म एंड कम्यूनिकेशन नेटवर्क प्रा. लि. के बैनर तले बनी क्रू कम समय में बहुत अधिक मनोरंजन करती है. साथ ही यह भी साबित करती है कि वुमन पावर अपने पर आ जाए, तो कुछ भी कर सकती हैं, फिर चाहे वो विदेश में जाकर लूटना ही क्यों न हो.
निर्देशक राजेश ए. कृष्णन ने लॉकडाउन के समय कुणाल खेमू को लेकर ‘लूटकेस’ बनाई थी, जो ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज़ हुई थी, जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया था. अब थिएटर में उनकी ‘क्रू’ की कोशिश कैसी रही, यह तो जनता-जर्नादन ही बता पाएगी. फ़िलहाल कृति, करीना, तब्बू की तिकड़ी ने तो कमाल दिखा ही दिया है, जहां पर साथी कलाकारों ने भी उनका भरपूर साथ दिया.
- ऊषा गुप्ता
Photo Courtesy: Social Media