'कुत्ते' से वफ़ादारी की उम्मीद दर्शकों द्वारा लगाई गई, पर निराशा ही हाथ लगी. जी हां, हम बात कर रहे हैं 'कुत्ते' फिल्म की, जिसे दर्शकों ने नकार दिया. आसमान भारद्वाज, जो फिल्ममेकर विशाल भारद्वाज के सुपुत्र हैं ने एक्शन, ड्रामा, डार्क कॉमेडी से भरपूर थ्रिलर फिल्म बनाने की कोशिश की है, जिसमें वे थोड़े कामयाब भी रहे हैं. मल्टीस्टारर अर्जुन कपूर, तब्बू, कुमुद मिश्रा, कोंकणा सेन, राधिका मदान, शार्दुल भारद्वाज, नसीरुद्दीन शाह, अनुराग कश्यप तमाम मंजे हुए कलाकार होने के बावजूद फिल्म अपने मक़सद से भटकती नज़र आती है.
गोपाल, अर्जुन कपूर और पाजी, कुमुद मिश्रा दोनों भ्रष्ट पुलिस ऑफिसर की भूमिका में न्याय तो करते हैं, लेकिन उनका लालच उन्हें ऐसे चुंगल में फंसा देता है, जिससे निकलने के लिए रक्षक को ही भक्षक बनना पड़ता है यानी उन्हें ख़ुद भी क्राइम करने की ज़रूरत पड़ जाती है. दरअसल, नसीरुद्दीन शाह, जो ड्रग माफिया भाऊ उर्फ नारायण खोबरे बने हैं इन दोनों को अपने प्रतिद्वंदी को मारने का काम देते हैं. लेकिन दोनों स्मार्टनेस दिखाते हुए मारने के बाद वहां मौजूद ड्रग्स को ले भागने की जुगाड़ में रहते हैं कि पकड़े जाने पर सस्पेंड करने के साथ उन पर कार्यवाही होती है.
अब इससे बचने के लिए दोनों पम्मी यानी तब्बू की शरण में जाते हैं, जो सीनियर पुलिस ऑफिसर है. वो इसके लिए दो करोड़ की मांग करती है. अब पैसे को पाने के लिए दोनों एटीएम के पैसों से भरे वैन को लूटने की प्लानिंग करते हैं. पर वे अकेले ही नहीं है, इस लूट में और भी लोग तिकड़म लड़ा रहे हैं, जैसे भाऊ की बेटी लवली, राधिका मदान जो पिता के गैंग के ही एक बंदे दानिश, शार्दुल भारद्वाज से प्यार करती है. लवली की शादी कहीं और तय हो गई है. वह पैसों से भरी वैन को लूटकर अपने प्रेमी के साथ विदेश भाग जाने की प्लानिंग करती हे. वही एक और क़िरदार लक्ष्मी, कोंकणा सेन जो नक्सलवादी बनी हैं भी लूट की योजना बना रही है. अब किस तरह से ये तीनों टीम लूट को अंजाम देते हैं वो देखने काबिल है.
फिल्म में बैकग्राउंड म्यूज़िक में विशाल भारद्वाज की फिल्म 'कमीने' का ढैन टैनान… अलग ही माहौल क्रिएट करता है. फिल्म में रात के काफ़ी सीन्स हैं, पर सिनेमैटोग्राफर फरहाद अहमद देहिवि कहीं भी इसे अंधेरे में खोने नहीं देते. वे अपने लाजवाब छायांकन के साथ दर्शकों की उत्सुकता बनाए रखते हैं.
गीत विशाल भारद्वाज के फेवरेट गुलज़ार साहब ने लिखे हैं. गायन और संगीत, विशाल और रेखा भारद्वाज ने अपने बेटे के लिए इसकी कमान संभाली है. वैसे कोई भी गाना याद नहीं रह जाता. नसीरुद्दीन शाह और अनुराग कश्यप छोटे से रोल में हैं, उन्हें और स्पेस दिया जाना चाहिए था. फिल्म में गाली-गलौज की भी भरमार है, जो आजकल के अधिकतर वेब सीरीज़ का ट्रेंड बन गया है, वहीं से इसे ख़ूबसूरती से चुराया है आसमान भारद्वाज ने भी.
बेटे आसमान को प्रमोट करने के लिए फिल्म के निर्माता सूची में भी विशाल भारद्वाज शामिल हैं. वह कहानी से लेकर संवाद, गीत, संगीत हर जगह पर मौजूद हैं. उनके साथ भूषण कुमार, लव रंजन व कृष्ण कुमार ने भी निर्माता की बागडोर संभाली है.
आसमान ब्रिटिश डायरेक्टर गाय रिची को अपना आदर्श मानते हैं और उनसे प्रेरित होने का दावा करते हैं, लेकिन पिता विशाल की शैली निर्देशन में देखने को मिलती है.
एडिटर ए श्रीकर प्रसाद के हम शुक्रगुज़ार हैं, जिन्होंने फिल्म को दो घंटे से कम समय में बांध दिया, वरना इंटरवल तक तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि कितने और क़िरदार हैं और किन-किन के बारे में विस्तार से जानना है. इंटरवल के बाद फिल्म की कहानी रफ़्तार पकड़ती है. सब पैसों से भरी वैन को लूटने की जद्दोज़ेहद में लगे हुए दिखाई देते हैं.
यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनी टी सीरीज़ संगीत से लयबद्ध कुत्ते के टाइटल को लेकर भी कंफ़्यूजन बनी रहती है कि आख़िर इसमें कोई भी क़िरदार वफ़ादार तो नहीं दिखा रहा है, तो इस शीर्षक से निर्माता-निर्देशक क्या साबित करना चाहते थे. हां अगर पैसे को हड्डी के सिंबॉलिक दिया गया है, तो कुछ बात बनती नज़र आती है. फिल्म की कहानी पिता-पुत्र, विशाल और आसमान ने मिलकर लिखी है. पूरी फिल्म और निर्देशन में विशाल की छाप नज़र आती है. पिता के साये से अलग नहीं हो पाए आसमान, लेकिन फिर भी उनकी पहली कोशिश ठीक-ठाक है.
रेटिंग: 2 **
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