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फिल्म समीक्षा: निराश करता ‘शहज़ादा’ (Movie Review: Shehzada)

डेविड धवन के बेटे रोहित धवन ने एक एंटरटेनमेंट मूवी बनाने की पूरी कोशिश की है. भले ही यह फिल्म अल्लू अर्जुन की तेलुगू मूवी 'अला वैकुंठापुरामुलू' की रीमेक है, लेकिन डायरेक्टर रोहित ने अपनी तरफ़ से हिंदी दर्शकों को ध्यान में रखते हुए भरपूर मसाला भरने की कोशिश ज़रूर की है.


कार्तिक के फैंस को 'फ्रैडी' के ज़बरदस्त परफॉर्मेंस को देखते हुए उनके शहज़ादा से बेहद उम्मीद थी, लेकिन न कार्तिक उनके आशाओं पर खरे उतर पाए न हीं निर्देशक.
फिल्म की पब्लिसिटी लंबे समय से की जा रही थी और कार्तिक आर्यन और कृति सेनॉन की केमिस्ट्री को भी लोग काफ़ी पसंद कर रहे थे, किंतु कह सकते हैं कि इस फिल्म में कृति के साथ भी अन्याय हुआ है. इतनी अच्छी अभिनेत्री जिन्होंने 'मिली' में अपनी अभिनय प्रतिभा का लोहा मनवाया था, यहां पर उनसे उस तरह का काम नहीं कराया गया, जितना कि वे डिजर्व करती थीं. ओरिजिनल मूवी में अल्लू अर्जुन के साथ पूजा हेगडे थीं और दोनों के रोमांटिक सीन काफ़ी थे, लेकिन यहां पर कृति के रोल पर कैंची चल गई.

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कहानी ऐसी है कि रोनित रॉय जो एक बड़े बिज़नेसमैन हैं उनकी कंपनी में परेश रावल काम करते हैं. दोनों की ही पत्नियों को एक ही दिन बेटा होता है. लेकिन अपने बेटे को बड़ा आदमी बनाने के ख़्वाब के चलते परेश बच्चों की अदला-बदली कर देते हैं यानी परेश का बेटा रोहित रॉय यहां पलता है और रोनित का असली शहज़ादा परेश के यहां.


बंटू, कार्तिक आर्यन परेश रावल के यहां सेकंड हैंड चीज़ों से जुड़ी ज़िंदगी जी रहे हैं. उनके पिता उसे हर जो चीज़ इस्तेमाल के लिए देते हैं, जो सेकंड हैंड होती है. इस पर भी एक गरीब की आर्थिक स्थिति पर व्यंग्य किया गया है. बंटू की जिंदगी में ख़ुशनुमा पल तब आते हैं, जब उसकी बॉस समारा, कृति ज़िंदगी में आती है. साथ काम करते हुए दोनों एक-दूसरे को पसंद करने चाहने लगते हैं. इसी बीच बंटू को अपने पिता की ग़लत हरकतों का पता चलता है कि कैसे उन्होंने अपने बेटे को अमीर देखने के चक्कर में बच्चों को बदल दिया था.

अब सवाल यह उठता है कि क्या बंटू अपने असली पिता को अपनी पहचान बता पाता है. परेश रावल की हरकतों का पर्दाफाश होता है. यह सब फिल्म देखकर ही जान सकेंगे.
एक मनोरंजक फिल्म बनाने के चक्कर में निर्देशक ने कई फेरबदल किए हैं. इसके बावजूद फिल्म उतना ख़ास इंपैक्ट नहीं दे पाती, जितना कि इससे रिलीज़ से पहले उम्मीद की जा रही थी.


चॉकलेटी हीरो, रोमांटिक एक्टर के रूप मशहूर कार्तिक ने इसमें एक्शन भी ख़ूब किया है. फिर भी कार्तिक आर्यन, कृति सेनॉन, परेश रावल, रोनित रॉय, मनीषा कोइराला, सचिन खेडेकर, राजपाल यादव हर किसी ने अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभाई है. इसके बावजूद फिल्म कमज़ोर कड़ी साबित हुई है.

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कार्तिक-कृति के फैंस भी इस मूवी से थोड़े निराश हुए होंगे. फिल्म की सिनेमैटोग्राफी में सुदीप चटर्जी और संजय एफ. गुप्ता, की मेहनत नज़र आती है. गीत-संगीत ठीक-ठाक है. म्यूज़िक डायरेक्टर प्रीतम अपने नाम के अनुरूप जलवा नहीं दिखा पाए. गणेश आचार्य व बॉस्को सीजर की कोरियोग्राफी में नयापन की कमी खली. इस फिल्म से कार्तिक निर्माता भी बन गए हैं. साथ ही ओरिजिनल फिल्म के निर्माता यानी अल्लू अर्जुन के पिता अल्लू अरविंद भी इस फिल्म के निर्माताओं में से एक हैं. टी सीरीज की संगीत उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाती है.

रेटिंग: 2 **

Photo Courtesy: Instagram

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