'उलझ' मूवी अपने नाम के अनुकूल उलझी हुई सी है. जाह्नवी कपूर के पास फिल्म में काफ़ी स्पेस था, बहुत कुछ कर दिखाने और अपने को साबित करने का, लेकिन यहां पर वे चूक गईं.
निर्देशक सुधांशु सरिया की फिल्म उलझ यूं तो उत्सुकता पैदा करने के साथ दिलचस्पी भी कई जगह पर महसूस कराती है, लेकिन कमज़ोर पटकथा के कारण फिल्म ख़ास बन नहीं पाती.
अपनी बुद्धिमानी और समझदारी की वजह से सुहाना भाटिया, जाह्नवी कपूर कम उम्र में ही प्रमोशन पाकर लंदन में राजदूत में अपनी महत्वपूर्ण पोजीशंस बनाती हैं. उनके परिवार का इतिहास रहा है देश की सेवा करने के मामले में, उनके दादा-पिता सभी इससे जुड़े रहे हैं और इसी कड़ी को आगे बढ़ा रही हैं सुहाना.
लेकिन सुहाना की उपलब्धियों से उनके पिता वनराज भाटिया, आदिल हुसैन ख़ास प्रभावित नहीं होते, जबकि सुहाना की शिद्दत से यह ख़्वाहिश रहती है कि वह अपने पिता को प्रभावित कर पाए. उन्हें अपनी काबिलियत साबित कर पाए.
लंदन में सुहाना नकुल बने गुलशन दैवया के साजिश का शिकार हो जाती हैं और जब तक उन्हें असलियत पता चलता है, तब तक काफ़ी देर हो चुकी होती है. अब सुहाना के पास दो ही रास्ते हैं, एक तो ख़ुद को ब्लैकमेलिंग के चुंगल से दूसरे अपने पिता-दादा व परिवार की साख को गिरने से बचाना. क्या सुहाना ऐसा कर पाती है?.. यह तो फिल्म देखने पर ही आप जान पाएंगे.
निर्देशन की बात करें तो कई जगह पर कमज़ोर सी हो जाती है. इसके पहले सुधांशु ने लव, सना.. इन फिल्मों के निर्देशन किए हैं. क़िरदारों को यूं तो अच्छी तरह से सेट किया गया है, फिर भी कमी रह ही जाती है. वरना इस तरह की सस्पेंस और जासूसी से भरी फिल्में दर्शक पसंद करते ही हैं और उन्हें बांधे भी रखती है. लेकिन यह कमाल उलझ में दिखाई नहीं देता. अंत में आकर तो ऐसा लगता है कहीं अपनी कहानी के शीर्षक को जस्टिफाई करने के लिए तो नहीं निर्देशक ने उलझने का मकड़जाल फैलाया.
फिल्म के अधिकतर सीन्स लंदन में हुए हैं, तो वहां की ख़ूबसूरती देखते ही बनती है. श्रेया देव दुबे की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है. कुमार के गाने ठीक-ठाक हैं. शाश्वत सचदेव का म्यूज़िक भी कई जगह पर सुनने में अच्छा लगता है.
कलाकारों के अभिनय की बात करें, तो जाह्नवी कपूर गुलशन देवैया, रोशन मैथ्यू , मेयांग चांग, राजेश तेलंग, आदिल शाह, जितेंद्र जोशी, जैमिनी पाठक, शिव पंडित, अली खान, राजेंद्र गुप्ता, साक्षी तंवर… हर किसी ने अपने क़िरदार के साथ न्याय करने की कोशिश ज़रूर की है, किंतु कामयाबी कुछ को ही हाथ लगी. फिल्म के अंत में इसके सेकंड पार्ट होने के संकेत भी दिए गए हैं, अब उसका तो अल्लाह ही मालिक है.
फिल्म की कहानी सुधांशु सरिया ने परवेज शेख और अतिका चौहान के साथ मिलकर लिखी है. डायलॉग कहीं पर अच्छे बन पड़े हैं, तो कहीं पर खीझ भी होती है. फिल्म के निर्माता विनीत जैन हैं.
यदि अपने दिलोदिमाग़ को उलझाए रखना चाहते हैं और कुछ सस्पेंस अलहदा तरीक़े से देखने की इच्छा रखते हैं, तो आपका इस फिल्म में स्वागत है.
- ऊषा गुप्ता
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