* ‘एफआईआर’ में मेरे चंद्रमुखी चौटाला के क़िरदार को दर्शकों का भरपूर प्यार मिला, इसके लिए मैं सभी की शुक्रगुज़ार हूं. अब लंबे समय बाद डॉ. भानुमती ऑन ड्यूटी शो में मुझे डॉ. भानुमती, जो एक मिलिट्री डॉक्टर है, के रूप में दमदार रोल मिला है.
* मेरे पिता दिल्ली में डीएसपी व एनकाउंटर स्पेशलिस्ट थे. उसके बाद उनकी पंजाब, बंगाल अलग-अलग जगहों पर पोस्टिंग होती गई और वे कई भाषाओं को जानने लगे. इन सबका मुझे भी फ़ायदा हुआ. एफआईआर में मेरा चंद्रमुखी का क़िरदार पूरी तरह से मेरे पिता से प्रेरित था.
* मैंने अपने पिता से काफ़ी कुछ सीखा-समझा और पुलिस के जीवन को क़रीब से जाना था, इसी कारण मैं नौ साल तक इंस्पेक्टर चंद्रमुखी के रोल को सफलतापूर्वक निभा सकी. हर किसी ने इसे ख़ूब पसंद भी किया.
* जब मैंने ‘डॉ. भानुमती ऑन ड्यूटी’ के राइटर अमित से शो की स्क्रिप्ट सुनी, तब मैं बेतहाशा हंसती ही रही. इसमें राजस्थानी बैकग्राउंड है और मैं यहां के एक राजा की बेटी हूं, जो बिंदास व थोड़ी अक्खड़ भी है.
* भानुमती डॉक्टर के रूप में किस तरह से सभी को ठीक करती है, वो सब बेहद मज़ेदार है. इसमें मेरे अलावा गोपी व दूधनाथ के कैरेक्टर भी बहुत फनी हैं.
* आज की ज़िंदगी में हर तरफ़ स्ट्रेस बहुत है. ऐसे में कॉमेडी शोज़ लोगों को राहत देते हैं. कपिल शर्मा, भारती, कृष्णा सभी अच्छा कर रहे हैं. इसलिए जो भी अच्छी कॉमेडी कर रहे हैं, उन्हें अच्छी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं. मुझे यक़ीन है कि डॉ. भानुमती ऑन ड्यूटी भी लोगों को बहुत पसंद आएगा.
* हर व्यक्ति विशेष में कुछ न कुछ ख़ास बात होती है, इसलिए मेरा कोई आदर्श नहीं है. मैं हर इंसान के यूनीक क्वालिटी को देखती हूं और भरसक अपनाने की कोशिश करती हूं.
* मैं अधिकतर इंडियन प्रोडक्ट्स ही इस्तेमाल करती हूं, ख़ासकर गांव की महिलाओं द्वारा बनाए गए बैग, कुशन, होम डेकोर के सामान, ताकि उनके रोज़गार को बढ़ावा मिल सके.
* फिलोसॉफी सब्जेक्ट में पढ़ाई करने का मुझे मॉडलिंग, एंकरिंग, एक्टिंग आदि करते हुए काफ़ी फ़ायदा हुआ, ख़ासकर लोगों को पहचानने व समझने में.
* यूं तो मैं रिपोर्टर या डायरेक्टर बनना चाहती थी, पर क़िस्मत अभिनय में ले आई. मैंने बालाजी के लिए ऑडिशन दिया था व सिलेक्ट हो गई और यहीं से मेरे अभिनय का सफ़र शुरू हुआ.
* ‘एफआईआर’ की ज़बरदस्त कामयाबी के बाद मुझे बी ग्रेड मूवी के कई ऑफर आए, लेकिन मैंने सभी को मना कर दिया.
* कोई ज़रूरी नहीं कि मैं फिल्में करूं. मुझे टीवी से बहुत प्यार मिला है. केवल एक मीडियम बदलने के लिए फिल्म करूं, यह मुझे ठीक नहीं लगा. और मैं ख़ुद को बहुत रिस्पेक्ट देती हूं, इसलिए मुझे यह गवारा न था.
* मेरे घर में मेरे दो बच्चे हैं, 66 व 75 साल के (हंसते हुए) यानी मेरे माता-पिता. वे ही मेरी ज़िंदगी हैं. यदि वे ख़ुश व सुखी हैं, तो मैं भी मस्त हूं.
- ऊषा गुप्ता
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