या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा देवी की पूजा की जाती है.
देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है.
इनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है,
इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है.
इनके दस हाथ हैं, जो कमल, धनुष-बाण, कमंडल,
त्रिशूल, गदा, खड्ग, अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं.
चंद्रघंटा देवी की सवारी सिंह है.
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पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता
इस दिन सांवली रंगत की महिला को घर बुलाकर पूजा-अर्चना करें.
भोजन में दही-हलवा आदि खिलाएं.
कलश व मंदिर की घंटी भेंट करें.
इनकी आराधना करने से निर्भयता व सौम्यता दोनों ही प्राप्त होती है.
इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों की प्रेतबाधा से रक्षा करती है.
स्त्रोत मंत्र
ध्यान वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम। सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्घ कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम। खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्घ पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम। मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्घ प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम। कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्घ स्तोत्र आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्तिरू शुभा पराम। अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्घ् चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम। धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्घ नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम। सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्घ् कवच रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने। श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्घ बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धरं बिना होमं। स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकमघ कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।
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