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पंचतंत्र की कहानी: वंश की रक्षा (Panchtantra Ki Kahani: Frogs That Rode A Snake)

आज के हाईटेक युग में जब बच्चों को हर जानकारी कंप्यूटर/इंटरनेट पर ही मिल रही है, उनका पैरेंट्स से जुड़ाव कम हो रहा है. साथ ही उन्हें मोरल वैल्यूज़ (Moral Values) भी पता नहीं चल पाती, ऐसे में बेड टाइम स्टोरीज़ (Bed Time Stories) जैसे- पंचतंत्र (Panchtantra) की सीख देने वाली पॉप्युलर कहानियों के ज़रिए न स़िर्फ आपकी बच्चे से बॉन्डिंग स्ट्रॉन्ग होगी, बल्कि उन्हें अच्छी बातें भी पता चलती हैं. Panchtantra Ki Kahani
पंचतंत्र की कहानी: वंश की रक्षा (Panchtantra Ki Kahani: Frogs That Rode A Snake)
एक पर्वत प्रदेश में मन्दविष नाम का एक बूढ़ा सांप रहता था. एक दिन वह विचार करने लगा कि ऐसा क्या उपाय हो सकता है, जिससे बिना परिश्रम किए ही उसकी आजीविका चलती रहे. उसने बहुत सोचा और उसके मन में एक विचार आया. वह पास के मेंढकों से भरे तालाब के पास चला गया. वहां पहुंचकर वह बड़ी बेचैनी से इधर-उधर घूमने लगा. उसे घूमते देखकर तालाब के किनारे एक पत्थर पर बैठे मेंढक को आश्‍चर्य हुआ तो उसने पूछा, “आज क्या बात है मामा? शाम हो गई है, पर तुम भोजन-पानी की व्यवस्था नहीं कर रहे हो?” Panchtantra Ki Kahani सांप बड़े दुखी मन से कहने लगा, “क्या करूं बेटा, अब मैं बूढ़ा हो चला हूं. मुझे तो अब भोजन की अभिलाषा ही नहीं रह गई है. आज सवेरे ही मैं भोजन की खोज में निकल पड़ा था. एक सरोवर के तट पर मैंने एक मेंढक को देखा. मैं उसको पकड़ने की सोच ही रहा था कि उसने मुझे देख लिया. पास ही कुछ ब्राह्मण तपस्या में लीन थे, वह उनके बीच जाकर कहीं छिप गया. उसको तो मैंने फिर देखा नहीं, पर उसके भ्रम में मैंने एक ब्राह्मण के पुत्र को काट लिया, जिससे उसकी तत्काल मृत्यु हो गई. उसके पिता को इसका बड़ा दुख हुआ और उस शोकाकुल पिता ने मुझे शाप देते हुए कहा, “दुष्ट सांप! तुमने मेरे पुत्र को बिना किसी अपराध के काटा है, अपने इस अपराध के कारण तुमको मेंढकों का वाहन बनना पड़ेगा.” Panchtantra Ki Kahani मैं बस अपने पाप का प्रायश्‍चित करना चाहता हूं और तुम लोगों के वाहन बनने के उद्देश्य से ही मैं यहां तुम लोगों के पास आया हूं. मेंढक सांप से यह बात सुनकर अपने परिजनों के पास गया और उनको भी उसने सांप की वह बात बता दी. इस तरह से यह बात सब मेढकों तक पहुंच गई. Panchtantra Ki Kahani उनके राजा जलपाद को भी इसकी ख़बर लगी. उसको यह सुनकर बड़ा आश्‍चर्य हुआ. सबसे पहले वही सांप के पास जाकर उसके फन पर चढ़कर बैठ गया. उसे चढ़ा हुआ देखकर अन्य सभी मेंढक उसकी पीठ पर चढ़ गए. सांप ने किसी को कुछ नहीं कहा. Panchtantra Ki Kahani यह भी पढ़ें: पंचतंत्र की कहानी: दो सांपों की कहानी  मन्दविष ने उन्हें तरह-तरह के करतब दिखाए. सांप की कोमल त्वचा का स्पर्श पाकर जलपाद तो बहुत ही प्रसन्न हुआ. इस प्रकार एक दिन निकल गया. Panchtantra Ki Kahani दूसरे दिन जब वह उनको बैठाकर चला, तो उससे चला नहीं गया.  उसको देखकर जलपाद ने पूछा, “क्या बात है, आज आप चल नहीं पा रहे हैं?” “हां, मैं आज भूखा हूं और इस उम्र में कमज़ोरी भी बहुत हो जाती है, इसलिए चलने में कठिनाई हो रही है.” जलपाद बोला, “अगर ऐसी बात है, तो आप परेशना न हों. आप आराम से साधारण कोटि के छोटे-मोटे मेंढकों को खा लिया कीजिए और अपनी भूख मिटा लिया कीजिए.” Panchtantra Ki Kahani इस प्रकार वह सांप अब रोज़ बिना किसी परिश्रम के अपना भोजन करने लगा. किन्तु वह जलपाद यह भी नहीं समझ पाया कि अपने क्षणिक सुख के लिए वह अपने वंश का नाश करने का भागी बन रहा है. धीरे-धीरे सांप ने अपनी चालाकी से सभी मेंढकों को खा लिया और उसके बाद एक दिन जलपाद को भी खा गया. इस तरह मेंढकों का पूरा वंश ही नष्ट हो गया.   सीख: अपने हितैषियों की रक्षा करने से हमारी भी रक्षा होती है. यह भी पढ़ें: पंचतंत्र की कहानी: लालची कुत्ता

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