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काव्य- यक़ीनन हम प्रेम में हैं! (Poem- Yakinan Hum Prem Mein Hain!)

यहां
कोई भी व्याकरण नहीं होती
बारिश के गिरने की
न ही
कोयल की कूक का कोई राग
हवाओं के बहने का कोई नियम नहीं होता
पानी स्वतंत्र है
बिना किसी अनुबंध के
कोई आकार भी कहां सुनिश्चित है
आसमानी इंद्रधनुषों के लिए..

इसीलिए हमने
तमाम अधजगी रातों से चुराए
अपने-अपने हिस्से के
कुछ पल सुकून के

हर ठिठकी सुबह में
अकेली करवटों के साथ
एक कप
गर्म चाय को चुना
बेबाक़ सूरज के ख़िलाफ़
अपने-अपने दिन की शुरुआत हेतु

दिन भर की
जद्दोज़ेहद में उलझते वक़्त भी
अपने-अपने मौन को धता बताते हुए
हर अनकहे को कहने के लिए
लिखते रहे एक कविता
सिर्फ़ हम दोनों के लिए ही

इसीलिए आज
बरसों की बेबसी और छटपटाहट को
अपनी ही ज़िम्मेदारियों के सुपुर्द कर
हम सौंप रहे हैं एक प्रेम की पौध
आगामी पीढ़ियों को..
हां यक़ीनन हम प्रेम में हैं!

- नमिता गुप्ता 'मनसी'


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Photo Courtesy: Freepik

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