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काव्य- खाली हाशिया (Poetry- Khali Hashiya)

तुम्हारी ज़िंदगी की किताब के

भरे पूरे पृष्ठ का

खाली हाशिया हूं मैं

सूना और वीरान

शब्दों की भीड़ के पास

छोड़ दिया गया

अतिरिक्त स्थान

भूली बिसरी सी कोई बात

कभी इस पर जगह पा ले

हो सकता है..

इक उम्र गुज़र जाने के बाद

तुम्हें मेरा ख़्याल आ जाए

हो सकता है..

हर राह मंज़िल तक ले जाए

ज़रूरी तो नहीं

हर राही मंज़िल पा ही ले

ज़रूरी यह भी नहीं

सौ बरस की तुम्हारी ज़िंदगी में

हो एक शाम मेरे नाम

बस एक ही शाम

ज़रूरी यह भी नहीं

फिर क्यों?

बैठी हूं इंतज़ार में

अकेली और चुपचाप

इस खाली हाशिए पर?

- उषा वधवा

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Photo Courtesy: Freepik

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