क़यामत बने या 1 हशर वो बला से
हमें क्या, गिरेबान को सी लिया है
बहुत देख ली है फ़रेबों की दुनिया
उठा ले ख़ुदाया, बहुत जी लिया है
निगाहों में 2 वहशत, ज़बां बहकी-बहकी
न जाने ‘कंवल’ ने ये क्या पी लिया है
वेद प्रकाश पाहवा ‘कंवल’
- मुसीबत
- पागलपन
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