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कहानी- आलू के परांठे (Short Story- Aalo Ke Parathe)

मध्यम आंच पर कुछ सुनहरे गुलाबी से सिंकते परांठे कितने मनमोहक दिखते हैं और उनसे उठती ख़ुशबू… उसका तो कहना ही क्या…
ओह! मैं ख़ुशबू को कितने क़रीब से महसूस कर पा रही हूं… ऐसा लग रहा है यह ख़ुशबू नथुनों से जाकर मेरे अंतस को तृप्त कर रही है.

रमाजी जीवन के सात दशक पूरे कर चुकी हैं… नियमित और संयमित दिनचर्या के चलते स्वयं को स्वस्थ रखने का भरसक प्रयास करती हैं, फिर भी उम्र के हिसाब से अब शरीर ढलने लगा है. पहले जैसी बात नहीं रही, ख़ासतौर से पाचन शक्ति. ज़रा भी कुछ गरिष्ठ या मसालेदार खा लेती हैं, तो हाजमा ख़राब हो जाता है! गैस, बदहजमी परेशान करके रख देते हैं. फिर शुरू होता है सिलसिला तरह-तरह के घरेलू नुस्ख़ों का. कभी हींग-अजवाइन वाला चूरन, तो कभी सौंफ! इससे भी बात नहीं बनती, तो ईनो, दवाइयां. रमाजी की परेशानी से सारा घर परेशान हो जाता है.
रमाजी हमेशा से ही खाने-पीने की बेहद शौकीन रही है. अपने स्वास्थ्य के मद्देनजर अब वह हल्का और सुपाच्य भोजन करना ही उचित समझती हैं लेकिन फिर भी कभी तो मन कर ही आता है ना… कुछ मसालेदार खाने का.
पिछले महीने की ही तो बात है, बेटे रमन का जन्मदिन था और बहू रोहिणी ने बहुत मन से छोले भटूरे बनाए. रमाजी ने पेट भर छोले-भटूरे खाएं. उनकी स्वाद इंद्रियां अभी आस्वादन कर ही रही थी कि छोलों ने आंतों के साथ लड़ना शुरू कर दिया! बेचारी बूढ़ी आंते कब तक मुक़ाबला करतीं. जल्द ही हार मान गईं. छोलों ने कोहराम मचा दिया.

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रमाजी पेटदर्द से दोहरी हुई जा रही थीं. बेटा, बहू, पति रमेशजी सब तरह-तरह के नुस्ख़े अपना रहे थे, लेकिन कोई फ़र्क़ नहीं. पास खड़ा नन्हा वासु भी दादी की बिगड़ती तबीयत को देख सहम रहा था.
स्थिति नियंत्रण से बाहर होने लगी, तो रमन मां को ले डॉक्टर के यहां भागा. डॉक्टर ने इंजेक्शन दिया. तब जाकर रमाजी को थोड़ा सा आराम मिला.
घर लौट बिस्तर पर लेटी ही थीं कि रमेशजी ग़ुस्से से बलबला उठे, "ज़रूरत क्या है यह सब खाने की? जीभ पर काबू नहीं रख सकती हो क्या?..
ख़बरदार रोहिणी, आज के बाद रमा को कुछ भी गरिष्ठ और मसालेदार खाने को दिया तो!" ग़ुस्से से चिल्लाते रमेशजी कमरे से बाहर चले गए.
उस वक़्त रमाजी को बहुत दुख हुआ कि उनके कारण उनका पूरा परिवार परेशान हो रहा है. बस वादा कर लिया ख़ुद से… चाहे जो हो जाए कोई ऐसी-वैसी चीज़ नहीं खाऊंगी.
कुकर की सीटी से रमाजी की तंद्रा टूटी. घड़ी की तरफ़ देखा सुबह के आठ बज रहे थे. हाथ में पकड़ा चाय का प्याला मेज पर रखा ही था कि रसोई से आती आवाज़ों ने फिर से अपने पाश में बांधने का प्रयास शुरू कर दिया.
आज वासु ने सुबह उठते ही फ़रमाइश कर दी थी, "मम्मा, आज आलू के परांठे बना दो ना!"
आलू के परांठे!.. रमाजी की बचपन से ही आलू के परांठे में जान बसती थी. मन को मचलने से रोकती रमाजी अपने कमरे में जा बैठी. जैसे कोई तपस्वी अपनी साधना भंग होने डर रहा हो.

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जानती थी बहू उनके लिए नाश्ते में ओट्स बनाएगी. कहां आलू के परांठे और कहां ओट्स…
तभी परेशान पति और बच्चों के चेहरे नज़र के सामने घूम गए… नहीं! मैं बिल्कुल विचलित नहीं होउंगी.
मन ही मन अपने इरादे को मज़बूत करती रमाजी कुर्सी पर सिर टिका बैठ गई.
बहू ने आलू में प्याज़ और हरी मिर्च तो डाले ही होंगे… हरे धनिए की नींबू डालकर लाजवाब चटनी बनाती है रोहिणी आलू के परांठे के साथ. मैंने ही तो सिखाई है... सोचते हुए मंद मुस्कान तैर गई होंठों पर. आटे की लोई से दुगने आलू भर हल्के हाथों से बेलते हुए परांठे को गोलाकार किया होगा… फिर जब उसे गर्म तवे पर डाला होगा. उसके बाद शुरू हुआ होगा परांठे के सिकने का सिलसिला… मध्यम आंच पर कुछ सुनहरे गुलाबी से सिंकते परांठे कितने मनमोहक दिखते हैं और उनसे उठती ख़ुशबू… उसका तो कहना ही क्या…
ओह! मैं ख़ुशबू को कितने क़रीब से महसूस कर पा रही हूं… ऐसा लग रहा है यह ख़ुशबू नथुनों से जाकर मेरे अंतस को तृप्त कर रही है.
"रमा..!" रमेशजी की आवाज़ सुन रमाजी ने आंखें खोलीं, तो सामने प्लेट में आलू का परांठा, चटनी और दही लिए रमेशजी खड़े थे. उनके पीछे रमन, रोहिणी और वासु थे. रमाजी अचकचा गईं, मानो कोई चोरी पकड़ी गई हो!
"यह लो नाश्ता…" प्लेट बढ़ाते हुए रमेशजी बोले.
"मगर… नहीं!.. फिर से वही परेशानी होगी." रमाजी भयभीत हो गईं.
रमन ने आगे बढ़ मां के हाथ को पकड़ लिया, "नहीं होगा. सिर्फ़ एक ही परांठा खाना आप… चूरन भी तो लाया हूं साथ में."

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"मां, मैंने ओट्स भी बनाए हैं.. थोड़े ओट्स खाना थोड़ा परांठा… पेट भी भर जाएगा और मन भी."  रोहिणी बोली.
रमाजी ने सवालिया नज़रों से रमेशजी को देखा. रमेशजी ने आलू के परांठे का टुकड़ा तोड़ रमाजी को खिला दिया. रमाजी उसके स्वाद में खो संतुष्ट हो गई.

संयुक्ता त्यागी

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