"चुप रहो! बी टेक कर रही हो और बातें देखो! जो ख़ुद छुपती है सबसे उससे क्या डरना? छिपकली बहुत डरपोक होती है, बस हट हट करो, भाग जाती है!.."
"दो साल में काफ़ी बदल गई हो शुभि! स्मार्ट, ब्यूटीफुल एंड काॅन्फिडेंट...याद है उमा, ये पहले कीड़े-मकौड़े देखकर कैसे डर जाती थी, चिल्लाने लगती थी." फूफाजी ये कहते हुए हंसने लगे.

"डर नहीं फूफाजी, मुझे घिन आती थी. और पता है बुआ! अभी भी ना छिपकली को देखकर वैसा ही होता है... फोबिया है. आंखें बंद होने लगती हैं. गंदा सा लगने लगता है... बहुत पसीना आता है..." मैं बोलते हुए भी घबरा गई.
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बुआ ने मुझे डांटा, "चुप रहो! बी टेक कर रही हो और बातें देखो! जो ख़ुद छुपती है सबसे उससे क्या डरना? छिपकली बहुत डरपोक होती है, बस हट हट करो, भाग जाती है! अच्छा, मुझे अस्पताल जाना है, एक इमरजेंसी डिलीवरी है. सुबह मिलते हैं, कल दिल्ली घूमेंगे. तुम्हें तो परसों वापस जाना है ना!"
आधी रात को लगा मेरे बिस्तर पर कोई है! मैं हड़बड़ाकर बैठ गई, "आप? यहां..."
फूफाजी नशे में धुत्त थे. उनकी आवाज़ लड़खड़ा रही थी, "मैंने सोचा, तुम अकेले सोने में डर रही होगी... प्लीज़..."
मुझे घिन आ रही थी. पसीने से तर-बतर, आंखें बंद हो रही थीं... पूरी ताकत इकट्ठा करके मैं चिल्लाई, "निकलिए कमरे से.. तुरंत, अभी... हट हट.. हट.." वो जा चुके थे. मैंने फटाक से चिटकनी लगाई.
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बुआ ने ग़लत नहीं कहा था; छिपकली बहुत डरपोक होती है!

लकी राजीव
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