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कहानी- छुटकी भई बड़की (Short Story- Chutki Bhai Badki)

“लो देखो. मैं ग़लत नहीं कहती हूं. नौकरी करने लगी है, पर इस लड़की का हाल अब भी वही है. अपने लिए कपड़े तक ख़ुद सिलेक्ट नहीं कर सकती और आप कहते हैं चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा. अरे, कब ठीक हो जाएगा? देख लेना, एक दिन ऐसे ही वॉट्सएप पर तीन लड़कों के फोटो आएंगे- यह पहले वाला दिखने में सबसे अच्छा है, दूसरा सबसे ज़्यादा क्वालिफाइड है और तीसरा सबसे ज़्यादा पैकेज वाला है. अब समझ नहीं आ रहा शादी किससे करूं?”

 
“छुटकी, तेरे लिए नाश्ते में सैंडविच बना दूं?”
“नहीं मम्मी, कल ही तो खाई थी.”
“तो परांठा-ऑमलेट?”
“हूं, कुछ और ऑप्शन दो.”
“तू ख़ुद ही बता दे तुझे क्या खाना है?” नाम्या ने दो मिनट सोचा और फिर आत्मसमर्पण की मुद्रा में गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, “मुझे नहीं पता, आप ही बता दो.”
“ठीक है, कटलेट्स बना लेती हूं.”
“हां, यह सही है.” नाम्या ने ख़ुशी-ख़ुशी सहमति में सिर हिलाया, तो मम्मी बड़बड़ाती हुई रसोई की ओर बढ़ गईं. “जाने यह लड़की कब बड़ी होगी? इंजीनियरिंग कर रही है, पर हरक़तें प्राइमरी के बच्चों जैसी हैं.” मम्मी की बड़बड़ाहट की परवाह न करते हुए नाम्या पापा की ओर लपक ली, जो ऑफिस के लिए निकल ही रहे थे.
“पापा, आपकी एलटीसी का क्या हुआ?” पापा कुछ जवाब दें उससे पूर्व ही मम्मी नाराज़ होते हुए आ गईं. “तुझे कितनी बार समझाया है बाहर जाते आदमी को पीछे से न टोका कर.”
“अरे, कोई बात नहीं, बच्ची है. हां, तो बेटे एलटीसी तो मिल जाएगी. तुम पहले प्लेस तो फाइनल करो कि हमें जाना कहां है?”
“वही तो पापा, बहुत कंफ्यूज़ हो रही हूं.”
“इसमें नई बात क्या है? तू तो हमेशा ही कंफ्यूज़ रहती है. मैं जा रही हूं किचन में, जल्दी आ जाना, वरना कटलेट्स ठंडे हो जाएंगे.”
“जाओ, तुम नाश्ता करो और 3-4 प्लेसेज़ नेट पर सर्च करके रखना. मैं शाम को ऑफिस से लौटूंगा तब बैठकर फाइनल कर लेंगे.” नाम्या नाश्ता करने लगी, तो मम्मी अपनी बहन से फोन पर बात करने में व्यस्त हो गईं.
“हो आए तुम लोग? कैसी रही ट्रिप?”
“अरे कहां, हमारा तो अभी प्लेस ही फाइनल नहीं हो पाया है. यह छुटकी कुछ डिसाइड ही कहां कर पाती है? याद है, इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए भी इसने कितना परेशान किया था? डिसाइड ही नहीं कर पा रही थी कि कौन से कॉलेज में प्रवेश लेना है? सारी फ्रेंड्स इस कॉलेज में जा रही हैं, नज़दीक वो कॉलेज पड़ेगा, कंप्यूटर साइंस इस कॉलेज की अच्छी है… आख़िर हमें ही दो-चार अनुभवी लोगों से पूछकर यहीं का एक कॉलेज फाइनल करना पड़ा था. जाने क्या होगा इस लड़की का?”
शुक्र है, नाम्या ने इयरफोन लगा रखे थे, इसलिए उसे दोनों बहनों की वार्तालाप सुनाई नहीं दी, वरना मां-बेटी के बीच वाक्युद्ध फिर से आरंभ हो जाता.
नाम्या की इंजीनियरिंग अब लगभग पूरी हो चुकी थी. कॉलेज में कैंपस इंटरव्यू के लिए नामचीन कंपनियां आनी आरंभ हो गई थीं. प्रतिभाशाली नाम्या का तीन कंपनियों में सिलेक्शन हो गया था. तीनों बराबर ही पैकेज दे रही थीं, पर समस्या फिर वही थी, किसी एक के चयन की.

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नाम्या को जो कंपनी पसंद आ रही थी वह पांच साल का बॉन्ड भरवा रही थी. दूसरी कंपनी में उसे भविष्य के लिए अच्छा स्कोप नहीं दिख रहा था. तीसरी स्टार्टअप कंपनी थी, जिसका अभी ज़्यादा नाम नहीं था. काफ़ी पूछताछ और तीनों कंपनियों के बारे में आवश्यक जानकारी जुटाकर आख़िरकार यह निर्णय भी जल्दी ही लेना पड़ा. मम्मी तब भी बहुत झुंझलाई थीं.
“सब बच्चों ने हाथोंहाथ निर्णय ले लिया कि उन्हें कौन सी कंपनी ज्वाइन करनी है. बस, एक यही निर्णय नहीं ले पाती. इससे तो वे बच्चे ज़्यादा अच्छे रहे, जिनका एक ही कंपनी में सिलेक्शन हुआ. सोचने-विचारने में वक़्त नहीं बर्बाद करना पड़ा.”
शीघ्र ही नाम्या को पोस्टिंग भी मिल गई और उसने नई नौकरी ज्वाइन कर ली. नाम्या के जाते ही चहचहाता घर सूना-सूना हो गया था. मम्मी को लगने लगा था कि उनके पास कुछ काम ही नहीं है. नाम्या के लिए कुछ बनाना-खिलाना इतना बड़ा काम नहीं था, जितना कि डिसाइड करना.
“अब वहां कैसे क्या करती होगी? यह लड़की सिर्फ़ उम्र में बड़ी हो रही है, अक्ल में तो अभी भी बच्ची ही है. और सबसे बड़ी बात ख़ुद कुछ निर्णय लेने का आत्मविश्‍वास अभी नहीं आया है इसमें.” मम्मी जब भी अपनी चिंता पापा के सामने ज़ाहिर करतीं पापा धैर्य बंधाने लगते.
“समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. कोई भी बच्चा मां के पेट से सब सीखकर नहीं आता. वक़्त और अनुभव सब सिखा देता है.” दोनों के मध्य वार्तालाप चल ही रही थी कि मम्मी के वॉट्सएप पर नाम्या का मैसेज आ गया. तीन इमेजेस भेजी थी. साथ में टेक्स्ट था- “मॉल में हूं. इन टॉप्स में से कौन सा लूं?”
“लो देखो. मैं ग़लत नहीं कहती हूं. नौकरी करने लगी है, पर इस लड़की का हाल अब भी वही है. अपने लिए कपड़े तक ख़ुद सिलेक्ट नहीं कर सकती और आप कहते हैं चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा. अरे, कब ठीक हो जाएगा? देख लेना, एक दिन ऐसे ही वॉट्सएप पर तीन लड़कों के फोटो आएंगे- यह पहले वाला दिखने में सबसे अच्छा है, दूसरा सबसे ज़्यादा क्वालिफाइड है और तीसरा सबसे ज़्यादा पैकेज वाला है. अब समझ नहीं आ रहा शादी किससे करूं?” तभी नाम्या का कॉल आ गया.
“मम्मी, इमेजेस देख ली हैं ना? तो फिर जल्दी फाइनल करो ना कौन सा लूं?”
“क्या छुटकी, तू अपने लिए कपड़े भी सिलेक्ट नहीं कर सकती?”
“अब इतने सारे कपड़ों में से ये तीन टॉप्स मैंने ही तो सिलेक्ट किए हैं. देखो, यह पिंक वाला इसका कलर बहुत प्यारा है. मैंने तीनों की ट्रायल ले ली है. वो दूसरा स्लीवलेस वाला, इसकी फिटिंग बहुत अच्छी है, पर मैं सोच रही हूं कि यह तीसरा ब्लू वाला ले लूं. पिछले वीक जो दो नई जींस ली थीं ना उन पर यह जम जाएगा.”
“ठीक है, फिर ब्लू ही ले ले. अब मैं चाय बनाने जा रही हूं. तेरे पापा से बात कर ले.” मम्मी ग़ुस्से में बड़बड़ाती हुई रसोई की ओर बढ़ गईं.
“क्या हुआ मम्मी को?”
“अभी तेरी ही बातें हो रही थीं. अच्छा सुन, अभी मम्मी क्या कह रही थीं तेरे लिए…” बाप-बेटी की फुसफुसाहट देर तक चलती रही और साथ ही दबी-दबी हंसी भी गूंजती रही. मम्मी रसोई से झांक-झांककर देखती रहीं और उबलती चाय के साथ-साथ ख़ुद भी कुढ़ती रहीं. बातचीत समाप्त होने तक चाय की ट्रे आ चुकी थी. “आप भी ना बच्चों के साथ बच्चेे बन जाते हैं.”
“मान गई ना तुम भी कि वह अभी बच्ची है?”
“माना हमारे लिए बच्ची है और हमेशा बच्ची ही रहेगी, लेकिन ज़माने के लिए तो बड़ी हो गई है, इसलिए ज़माना देखते हुए अब उसे गंभीर और आत्मविश्‍वासी हो जाना चाहिए.”
“वह गंभीर थी, इसीलिए तो मैं उसे हंसाने का प्रयास कर रहा था. उसकी कंपनी जल्दी ही कर्मचारियों की छंटनी करने वाली है.”
“क्यों? इसे तो नहीं निकाल रही ना?” मम्मी एकदम चिंतित हो उठी थीं. यद्यपि इस बार चिंता का कारण दूसरा था.
“आर्थिक मंदी तो चल ही रही है. फिर आजकल मैनुअल वर्क की डिमांड कम होती जा रही है. सारा काम कंप्यूटराइज़्ड हो रहा है, तो कर्मचारियों की छंटनी तो करनी पड़ेगी ना?”
“ओह! फिर?”
“फिर क्या, दूसरी जॉब ढूंढ़ रही है, मिल जाएगी. वैसे तो उसकी कर्मठता को देखते हुए उसे वहां भी कोई ख़तरा नहीं है, पर दो साल हो गए हैं, तो वह ख़ुद ही चेंज करना चाहती है.”
“हूं, ख़ुद ही ढूंढ़ रही है?”
“यह तो ख़ुद ही करना पड़ेगा. आजकल बहुत सारी वेबसाइट्स पर जॉब रिक्वायरमेंट्स निकलती रहती हैं.” जल्द ही नाम्या के दूसरी कंपनी में सलेक्शन की ख़बर भी आ गई और भी अच्छे पैकेज पर.
“इंटरव्यू के पूरे 8 राउंड हुए थे मम्मी. सब एक ही दिन में. अब दो महीने बाद ज्वाइन करना है.”
“वे इतनी सैलरी के लिए मान गए?”
“काफ़ी नेगोशिएट करना पड़ा मम्मी. फिर मेरे पास तो एक और कंपनी का ऑफर लेटर भी था, तो डर की कोई बात नहीं थी, इसलिए मैंने खुलकर बात की. पैनल के सारे मेंबर्स मुझसे बहुत प्रभावित नज़र आ रहे थे. घंटी बजी है, लगता है खाना आ गया है.”

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“आ गया है से क्या मतलब? खाना तो बाई बनाकर गई
होगी ना?”
“अरे नहीं, उसे तो पिछले वीक ही हटा दिया था. बहुत ही बकवास खाना बनाने लगी थी. अभी सामने वाली मेस से मंगवाना शुरू किया है.”
“अच्छा, बताया नहीं तूने?”
“छोटी-छोटी समस्याएं बताकर परेशान नहीं करना चाहती मैं आपको. यूं तो मैंने कल घर में पेस्ट कंट्रोल भी करवाया है. इधर थोड़ा मलेरिया फैल रहा है इसलिए.”
“हाय राम! यह भी नहीं बताया तूने? तू तो ठीक है ना?”
“इसीलिए नहीं बताया था. आप बेकार चिंता करने लग जाती हैं. अच्छा अब एक अच्छी ख़बर, मैं अगले महीने घर आने का प्लान बना रही हूं. छुट्टियों का कॉम्बिनेशन देखकर फ्लाइट बुक करवाती हूं, फिर आपको बताती हूं.”
“हां-हां, जल्दी बताना और हो सके तो होली पर आने की कोशिश करना.” फोन बंद करते हुए मां सोच में डूब गई थीं.
क्या वाक़ई अभी छुटकी से ही बात हो रही थी? कितनी आत्मविश्‍वास भरी आवाज़ थी? होली पर आ जाए, तो अच्छा रहेगा. उसे रंगों से खेलना बहुत पसंद है. गुझिया, पपड़ी भी तो कितने चाव से खाती है.
मां की सलाह का ख़्याल रखते हुए नाम्या ने होली के टाइम का टिकट बुक करवाकर मां को सूचित कर दिया. उत्साह से लबरेज मां अपनी वही ख़ुुशी बहन के साथ शेयर करने लगीं.
“छुटकी होली पर आ रही है. कम से कम चार-पांच दिन पहले तो लगना ही पड़ेगा मुझे, तब उसकी पसंद के सारे पकवान तैयार कर पाऊंगी. लड्डू, मठरी अलग से बनाऊंगी. वैसे उसे वहां खाने की कोई प्रॉब्लम नहीं है. ऑफिस में सब मिलता है. लंच, जूस, स्नैक्स… मैं तो ऐसे ही अपनी संतुष्टि के लिए भेज देती हूं.”
“रितु के लिए कहना है.”
“हां, बोल दूंगी. चाहे तो रितु ख़ुद ही बात कर ले उससे या उससे आकर मिल ले. होली पर आ तो रही है.”
“हां, वह गाइड कर देगी इसे कि कहां अप्लाई करना चाहिए, कैसे तैयारी करनी चाहिए… ठीक है.”
कुछ दिनों बाद फ़ुर्सत में बैठे मम्मी-पापा के बीच हमेशा की तरह बेटी की चर्चा चल पड़ी.
“मेरे ऑफिस वाले जैन साहब का बेटा इंजीनियरिंग फाइनल ईयर में है. छुटकी के आने पर वह आएगा उससे मिलने. उसे छुटकी से कैंपस इंटरव्यू के कुछ टिप्स लेने थे.”
“लो, नंदा दीदी भी तो रितु को इसीलिए भेज रही हैं. छुटकी को बताऊंगी तो गर्व से फूल उठेगी वह कि अभी आने की बस डेट तय हुई है और उससे मिलने आने वालों की लाइन लगनी शुरू हो गई.”
“बेटी तो बाद में फूलेगी, अभी तो मां फूल रही है.” पापा ने चुटकी ली.
“लो, छुटकी का फोन है. शैतान को याद किया और शैतान हाज़िर. हां, बोल बेटा, क्या..? ओह, पर क्यों? देख ले, जैसा तू ठीक समझे. हूं… अब मैं क्या बताऊं? ठीक है.” पापा ने निराशा में फोन बंद कर दिया.
“क्या हुआ जी?”
“छुटकी ने टिकट करवा ली थी, पर अब उसे छुट्टी नहीं मिल रही है. कह रही है, पहले तो हां-हां कर रहे थे कि दे देंगे. अब कह रहे हैं अगले वीक चली जाना अभी काम बहुत है. सारा तो तुम ही संभालती हो.”
“यह क्या बात हुई? कोई काम संभाले तो उसे रिवॉर्ड देना चाहिए या छुट्टी रोककर पनिश्मेंट? अब वह क्या करेगी?”
“कह रही है आप चिंता मत करो, मैं देख लूंगी. एक-दो दिन बाद फिर बात करती हूं. नहीं तो अगले वीक आ जाऊंगी.”
“यह क्या बात हुई जी? होली तो अभी है. मैंने उसकी पसंद के सब पकवान भी बनाने आरंभ कर दिए हैं. अब टिकट कैंसल करवाना पड़ेगा क्या?” मां की चिंता कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी.
“वह कह रही है तो कर लेगी मैनेज. प्राइवेट जॉब में ये सब नॉर्मल बातें होती हैं. हमारे परेशान होने से कुछ नहीं होगा.” पापा के समझाने के बाद भी मां की चिंता कहां कम होने वाली थी. पूरे दिन उनका काम में मन नहीं लगा. ताज़ा गुझिया तैयार करनी थी, पर मां ने मावा आदि उठाकर फ्रिज में रख दिया.
“जिसके लिए बना रही थी वही नहीं आ रही. अब आएगी तब देखेंगे.” पर अगले ही दिन सब फ्रिज से निकालना पड़ा. नाम्या का फोन आ गया था.

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“मेरी छुट्टी अप्रूव हो गई है. कल देर तक बैठकर मैंने सारा काम एडवांस में ही निपटा दिया था. बॉस काफ़ी ख़ुश हैं. मुझे एक नए प्रोजेक्ट की ज़िम्मेदारी भी दे रहे हैं.” उस दिन मां को सांस लेने की भी फ़ुर्सत नहीं थी. ढेर सारी गुझिया बनाई. अब इतने लोग नाम्या से मिलने भी तो आएंगे. दो तरह के शकरपारे भी तैयार कर लिए. शाम को नाम्या के पापा आए तब कहीं जाकर उनके साथ फ़ुर्सत से चाय का कप लेकर बैठने का मौक़ा मिला. तब ही मोबाइल भी चेक किया तो चौंक उठी. “अरे, छुटकी ने वॉट्सएप पर ये किन तीन लड़कों के फोटो भेजे हैं? देखिए तो, कौन हैं ये?” मम्मी का चाय का कप हाथ में ही रह गया था.
“अब मुझे क्या पता? तुम मां-बेटी के बीच क्या खिचड़ी पकती रहती है? पूछ लो उसी से. वैसे देखो, शायद आगे कुछ लिखा भी हो.”
“हां, देखती हूंं. अं… हां, यह रहा… मम्मी, ये तीनों मेरे
नए प्रोजेक्ट के टीममेट हैं. मुझे असिस्ट करेंगे. हूं… तो ये बात है!”
“तो तुम क्या समझी थी?” पापा दबी-दबी हंसी हंस रहे थे.
“तो यह आप बाप-बेटी की मिलीभगत है.” कृत्रिम ग़ुस्सा दर्शाते हुए मां ने चाय का कप होंठों से लगा लिया.
“मेरी तो सारी चाय ठंडी कर दी.” कहते हुए उनके होंठों पर मुस्कान पसर गई थी. 

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