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कहानी- जो बीत गई सो बात गई… (Short Story- Jo Beet Gayi So Baat Gayi…)

“यह जानकर कि वह तुम्हारा प्रेमी था, मुझे कोई फ़र्क़नहीं पड़ता, बस यही जानना चाहता हूं कि तुम स्वेच्छा से मुझसे शादी कर रही हो या किसी दबाव में.” पवन ने पूछा.
“विराट से मेरी शादी हो नहीं सकती. किसी से शादी तो करना है. मेरे घरवालों ने यह शादी तय की है और मैं इसके लिए बिल्कुल तैयार हूं.”

आज तुम्हारे प्रेमी विराट का फोन आया था.” पवन ने घर में घुसते ही रमा से कहा.
सन्न रह गई रमा. क्या कहे कुछ समझ नहीं पाई.
अपना बैकपैक सेंटर टेबल पर रखकर पवन बोला, “वह चाहता है कि मैं तुमसे अलग हो जाऊं, ताकि वह तुमसे शादी करके तुम्हारे साथ ख़ुशी-ख़ुशी रह सके.” अपनी बात की प्रतिक्रिया जानने के लिए पवन रमा को देखता रहा.
“उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है. जब उसे मेरे साथ रहने का मौक़ा मिला था, तब तो वह भाग खड़ा हुआ था. अब यह संभव नहीं है. मैं उससे बात करूंगी.” रमा ने कहा.
“देख लो, अगर तुम उसके साथ रहना चाहती हो, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है.” पवन ने कहा.
“कैसी बातें करते हो, एक सिरफिरे की बात को इतना गंभीरतापूर्वक ले रहे हो?” रमा ने आवेश में कहा.
“सिरफिरा तुम्हारा प्रेमी ही तो है, कैसे उसकी बातों को गंभीरता से न लूं?” पवन ने कहा.
रमा भी थोड़ी देर पहले ही ऑफिस से आई थी. इस बीच रमा चाय बना चुकी थी. उसने चाय और स्नैक्स लाकर टेबल पर रख दिया. पवन भी हाथ-मुंह धोकर कपड़े बदलकर ड्रॉइंगरूम में आ गया. हमेशा की तरह टीवी ऑन कर समाचार देखने लगा. उसके चेहरे पर तनाव साफ़ झलक रहा था और यह स्वाभाविक भी था.
रमा रसोई में आ गई. शाम का खाना प्रायः वही बनाया करती थी. पवन कभी कभार सहायता कर दिया करता था. सुबह बाई आ जाती थी.
रमा रसोई में काम करते हुए बीते दिनों के ख़्याल में खो गई. विराट और वह एक ही कॉलेज में पढ़ते थे और संयोग से एक ही कंपनी में उन्हें काम भी मिला था. साथ-साथ काम करते हुए न जाने कब वे सहपाठी से अच्छे दोस्त बन गए. फिर सहकर्मी और उसके बाद प्रेमी.
दोनों एक-दूसरे को दिलोजान से चाहते थे. दोनों ने निर्णय ले लिया था जीवनभर साथ निभाने का. इधर रमा के माता-पिता उसके लिए लड़का देखने लगे थे. रमा मौ़के की नज़ाकत समझ रही थी. कहीं उसकी शादी तय कर दी गई, तो फिर बड़ी मुश्किल हो जाएगी, इसलिए उसने पहले ही अपनी मां सुभद्रा के ज़रिए पिता राजेंद्र कुमार को ख़बर दे दी कि वह विराट से शादी करना चाहती है.


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विराट के बारे में जानकारी लेने पर उसके पिता इस शादी के विरुद्ध हो गए. एक तो उनकी नज़र में लड़की का ख़ुद शादी के लिए लड़का चुनना अपने आप में ग़लत था और लड़का दूसरी जाति का भी था. वे इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे. रमा को विश्‍वास था कि यदि विराट प्रस्ताव रखेगा, तो उसके पिता मान जाएंगे. अतः उसने विराट को अपने पिता से बात करने के लिए कह दिया.
विराट ने एक दिन उसके पिता के मोबाइल पर कॉल किया. अनजान नंबर देखकर यह सोचते हुए कि न जाने कौन होगा, उन्होंने फोन उठाया. रमा को मालूम था कि विराट उसके पिता को फोन करनेवाला है. उसका पूरा ध्यान पिता के फोन पर था.
“हैलो.” राजेन्द्रजी ने कहा.
“नमस्ते अंकल, मैं विराट बोल रहा हूं.” विराट ने नम्रतापूर्वक कहा.
“कौन विराट?” राजेन्द्रजी ने जान-बूझकर अनजान बनते हुए कहा. उन्हें अच्छी तरह से मालूम था कि विराट कौन है. रमा ने बताया था.
“जी, मैं रमा के ऑफिस में काम करता हूं. मेरी रमा के साथ बहुत अच्छी मित्रता है. हम एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.” विराट ने कहा.
“देखो बेटा, तुम लोग शादी कर सकते हो, मुझे कोई आपत्ति नहीं है, पर इसके बाद मेरा रमा से कोई रिश्ता नहीं रहेगा.” राजेन्द्रजी ने बेरुखी से कहा.
“कैसी बातें कर रहे हैं अंकल आप?” विराट ने आश्‍चर्य से कहा.
“जैसे भी बातें कर रहा हूं, मेरी निगाह में जो सही है, वही कर रहा हूं. मुझे कोई आपत्ति नहीं है तुम दोनों की शादी से. दोनों बालिग हो, अपना निर्णय ले सकते हो. मैं भी बालिग ही हूं और स्वतंत्र निर्णय ले सकता हूं कि किससे संपर्क रखना है किससे नहीं.” राजेन्द्रजी ने सख़्त लहज़े में कहा.
“मैं नहीं चाहूंगा कि मेरी वजह से आप अपनी बेटी से रिश्ता ख़त्म कर लें. थैंक यू अंकल.” कहकर फोन डिसकनेक्ट कर दिया था विराट ने.
रमा समझ गई थी कि उसके पिता ने बेरुखी से विराट के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है. ग़ुस्से में ही सही एक उचित बात की थी उन्होंने कि दोनों बालिग हो, अपना निर्णय ले सकते हो और रमा ने निर्णय ले लिया था.
अगले दिन उसने विराट से कहा, “हम कोर्ट मैरिज कर लेंगे.”

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“नहीं, मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण तुम्हें तुम्हारे पिता के साथ संबंध विच्छेद करना पड़े.” विराट ने कहा था.
रमा ने विराट को समझाने की कोशिश की, “घरवाले प्रारंभ में विरोध करते ही हैं, कुछ वर्ष के बाद वे हमें अपना लेंगे.”
“जब तक तुम्हारे पिताजी राज़ी नहीं होंगे, मैं यह शादी नहीं करूंगा.” विराट ने स्पष्ट कर दिया था.
क्या करती रमा? चुप लगा गई.
कुछ दिनों के बाद रमा का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया. उसे अच्छा लगा, क्योंकि अब उसे रोज़ विराट के सामने नहीं आना पड़ता था. विराट ने अपने सिद्धांत के आगे प्यार को छोटा जो कर दिया था.
इस बीच घरवालों ने उसकी इच्छा पूछी. रमा ने कहा, “मेरी मर्ज़ी से शादी तो होनेवाली नहीं. अब आप लोग जो समझो करो.”
फिर शादी के लिए लड़के की तलाश हुई और एक अच्छा सा लड़का मिल भी गया. शादी तय कर दी गई. सगाई हो गई.
इस बीच विराट को न जाने क्या हुआ, उसने रमा के मोबाइल पर कॉल किया, “रमा, मुझे लगता है कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगा. हम कोर्ट मैरिज कर लें.”
“जब कोर्ट मैरिज करना था, तब तो तुम बड़े आदर्शवादी बन गए थे. अब यह संभव नहीं है. मेरी सगाई हो गई है और शादी का दिन भी निश्‍चित हो गया है. अगले सप्ताह ही मेरी शादी है. अब इन बातों का कोई मतलब नहीं है.” रमा ने दुखी पर सख़्त लहज़े में कहा.
“सगाई ही तो हुई है. शादी भी टूट जाती है सगाई क्या चीज़ है?” विराट बोला.
“मैं उस निर्दोष व्यक्ति को क्यों बदनाम करूं, जिसका कोई कसूर नहीं है. यदि अब मैं सगाई तोड़ दूंगी, तो उसकी कितनी बदनामी होगी. अब तुम इन बातों को भूल जाओ. मैं भी भूल गई हूं.” रमा ने दृढ़ता से कहा.
“कैसे भूल सकता हूं रमा, कितने हसीन पल बिताए हैं हम दोनों ने.”

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“सारे हसीन पलों को तुमने दुःस्वप्न बना दिया एक सिद्धांतवादी निर्णय लेकर और अब उस निर्णय पर भी अडिग नहीं रह सकते? अब कुछ नहीं हो सकता.” रमा ने कहा और फोन काट दिया. विराट बार-बार फोन करता रहा, पर रमा ने फोन नहीं उठाया. रमा यही सोच रही थी कि विराट स्थिति को समझ कर शांत हो जाएगा, पर जब पवन ने शादी से एक दिन पहले उसे फोन कर पूछा कि क्या वह अपनी मर्ज़ी से शादी कर रही है, तो वह चौंक गई.
“ऐसा क्यों पूछ रहे हैं आप?” रमा ने पूछा. “मेरे पास विराट नाम के लड़के का फोन आया था. उसने बताया कि वह तुमसे शादी करना चाहता है और तुम भी उससे शादी करना चाहती थी. घरवालों के दबाव में तुम मुझसे शादी कर रही हो.” पवन ने कहा.
ऐसी नीचता पर उतर जाएगा विराट, रमा ने सोचा भी नहीं था. पर अभी तो पवन को जवाब देना था.
“हम एक-दूसरे के साथ स्कूल से ही हैं. एक ही कंपनी में एक ही शहर में काम भी करते थे. वह मेरा अच्छा दोस्त भी था और प्रेमी भी. पर मेरे घरवाले उसके विजातीय होने के कारण उसके साथ मेरी शादी करने के लिए तैयार नहीं थे. मैं तैयार थी, पर वह घरवालों की सहमति के बिना शादी नहीं करना चाहता था. इसलिए मैं घरवालों की मर्ज़ी से शादी करने के लिए तैयार हो गई. अब वह मेरे लिए भूतकाल की बात है. हां! यदि यह जानकर आप मुझसे शादी नहीं करना चाहते, तो आप स्वतंत्र हैं.” रमा ने बगैर किसी लाग लपेट के स्थिति स्पष्ट कर दी.
“यह जानकर कि वह तुम्हारा प्रेमी था, मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, बस यही जानना चाहता हूं कि तुम स्वेच्छा से मुझसे शादी कर रही हो या किसी दबाव में.” पवन ने पूछा.
“विराट से मेरी शादी हो नहीं सकती. किसी से शादी तो करना है. मेरे घरवालों ने यह शादी तय की है और मैं इसके लिए बिल्कुल तैयार हूं.” रमा ने कहा.
“जब तुम तैयार हो, तो कोई विराट या कोई सम्राट क्या करेगा? उसे बकने दो.” पवन ने कहा.
रमा को बड़ी राहत महसूस हुई. यदि पवन शादी के लिए इनकार कर देता, तो उसके घरवालों के लिए बहुत ही अप्रिय स्थिति होती.


इसके बाद दोनों पति-पत्नी ख़ुशहाल जीवन जी रहे थे. आज दो वर्ष बाद पवन को फिर से फोन कर विराट ने उनके शांत जीवन में खलबली मचा दी थी.
विराट बीच-बीच में इस तरह की हरकत कर दिया करता था. जब उसे निर्णय लेना था, उस समय तो निर्णय लिया नहीं और अब जब सब कुछ हाथ से निकल गया, तो ऊटपटांग हरकत कर रहा है.
खाना बना लेने के बाद वह ड्रॉइंगरूम में आई और पवन से कहा, “टीवी का वॉल्यूम कम करो, मुझे बात करनी है.”
“उधर जाकर बात कर लो ना.” पवन ने कहा.
“तुम्हारे सामने बात करनी है.” कहकर रमा ने टीवी को म्यूट कर दिया. फिर उसने विराट को फोन मिलाया.
विराट ख़ुश होकर बोला, “हेलो रमा.”
“मुझे मालूम है कि तुम पागल हो चुके हो. आज तुमने फिर मेरे पति को फोन करके परेशान किया है. अंतिम चेतावनी है तुम्हें. भारतीय दंड सहिता की धारा 354 के बारे में पढ़ लो. अब अगर मुझे या मेरे पति को फोन करोगे, तो इसी धारा में तुम्हारे ख़िलाफ़ पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज़ कराऊंगी. एक बार एफआईआर हो जाने पर कंपनी तुम्हारे साथ क्या करेगी, तुम अच्छी तरह जानते हो. गुड बाय.” रमा ने विराट के जवाब की प्रतीक्षा किए बिना फोन काट दिया और पवन के बगल में जाकर बैठ गई. उसने टीवी को अनम्यूट कर दिया. पवन प्रशंसाभारी निगाहों से रमा को देखने लगा.

विनय कुमार पाठक

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