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कहानी- मार्च की दहशत (Short Story- March Ki Dahshat)

बेड के बराबर में स्टूल पर रखे काढ़े को उठा उसके ऊपर फेंका… फिर गिलोय और मल्टी विटामिन की गोलियों की बौछार कर दी! बेशर्म इधर से उधर लुढ़क रहा था अब भी… ऐसे नहीं मानने वाला ये, सोच कर रुचि ने आलमारी से वैक्सीन निकाल उस पर हमला कर दिया.

हाय! हाय! कमबख़्त सिर दर्द से फटा जा रहा है और ये बच्चे हैं कि शोर बंद ही नहीं करते.
"मैं सोने जा रही हूं, तुम दोनों खेलने के बाद चाहो तो थोड़ी देर नई किताबों को निकाल कर देख सकते हो." बच्चों ने मासूम मेमने सा मुंह बना मम्मी को देखा और चुपचाप नई किताबें पढ़ने चले गए. पता था रुचि को कि जब तक स्कूल नहीं खुलते यही बवंडर मचता रहेगा और ये किताबें तो सिर्फ़ बहाना है कुछ देर की शांति कायम करने का.
रुचि ने अपने कमरे में जा दरवाज़ा बंद कर लिया और तकिए पर सिर रख लेट गई. तभी उसे हल्की सी आहट सुनाई दी… सिर उठाकर देखा, दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था… ये बच्चे भी ना, लाख मना करो पर मानते नहीं हैं. ना ख़ुद आराम करते और ना मुझे करने देते. मन में सोचते हुए रुचि उठ कर बैठ गई.
कमरे की मद्धम रोशनी में उसने देखा कि बड़े तरबूज के साइज़ की हरे रंग की बॉल उड़ती हुई कमरे में आई… यह कौन सी बॉल है? बच्चों के पास तो ऐसी बॉल नहीं थी! यह कहां से आ गई… सोचते हुए रुचि ने उसे थोड़ा पास जाकर देखा. उस पर जगह-जगह फोड़े-फुंसी निकले हुए थे.

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ठोड़ी पर उंगली रख सोचने लगी… कहीं तो देखा है इसको, याद नहीं आ रहा?.. अचानक दिमाग़ की बत्ती जली… ओ तेरी! यह तो कोरोना है!..‌ अरे हां, कोरोना ही तो है. टीवी पर फॉरवर्ड मैसेजेस में… हर जगह ऐसा ही तो दिखता है.
अच्छा! तो आज इसकी इतनी हिम्मत हो गई कि यहां तक आ गया… मेरे कमरे में! रुचि के दिल में पहले से ही कोरोना के लिए न जाने कितनी नफ़रत भरी हुई थी. दुश्मन को सामने देख रुचि से रहा नहीं गया. सबसे पहले लपक कर मास्क पहना और सैनिटाइजर से हमला कर दिया.
बेड के बराबर में स्टूल पर रखे काढ़े को उठा उसके ऊपर फेंका… फिर गिलोय और मल्टी विटामिन की गोलियों की बौछार कर दी! बेशर्म इधर से उधर लुढ़क रहा था अब भी… ऐसे नहीं मानने वाला ये, सोच कर रुचि ने आलमारी से वैक्सीन निकाल उस पर हमला कर दिया. कोरोना आगे-आगे और रुचि पीछे-पीछे… किसी तरह इंजेक्शन ठूंस ही दिया दुष्ट कोरोना में!
"कम्बख़त सत्यानाश हो तेरा!.. कीड़े पड़े तुझमें, मुएं वायरस!‌ कितने घर बर्बाद कर दिए, कितनी बद्दुआ लेगा हम सब से? देखना एक दिन रोएगा… पछताएगा… अपने कर्मों के लिए. संभल जा, अभी वक़्त है, संभल जा! चला जा वापस… नहीं तो!" इधर-उधर देखती रुचि की नज़र वहीं पड़ी रस्सी पर रुक गई और उसने रस्सी से कोरोना को कस के बांध दिया.
जिस कोरोना ने पूरी दुनिया में आतंक मचा रखा था आज वो ख़ुद लाचार नज़र आ रहा था. घबराए… सहमे… जान की भीख मांगते कोरोना की जीभ बाहर निकल आई… सांस तेज़ चल रही थीं और आंखें बंद होने लगी… लेकिन रुचि की आंखें ग़ुस्से से धधक रही थी! तेज धार वाले चाकू से उस पर अनगिनत वार करने शुरू कर दिए… कलेजे को अब भी चैन नहीं पड़ा, तो दूसरी रस्सी से उसका टेटवा बांध पंखे से लटका दिया!..
रुचि की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई थी… इसको आग में जला के ख़त्म कर दूंगी! सोचते हुए कैरोसिन ऑयल लाकर उसके ऊपर छिड़क दिया… माचिस कहां गई? सब जगह ढूंढ़ लिया, लेकिन माचिस नहीं मिली.
"टिंकू… टिंकू बेटा, जरा मुझे माचिस दे जा… मुझे इस कोरोना वायरस को जलाना है!"

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टिंकू तेजी से दौड़ता हुआ आया…"मम्मा!.. मम्मा!"
रुचि ने हड़बड़ा कर टिंकू की तरफ़ देखा.
"लाया क्या माचिस?"
टिंकू सिर पकड़ कर बैठ गया.
"हे भगवान मम्मी को फिर मार्च का दौरा पड़ गया. 2020 के बाद से हर साल मार्च शुरू होते ही इन्हें यही सपना आता है. कितनी बार कहा है, अब सब नॉर्मल है और वो क्राइम पेट्रोल थोड़ा कम देखा करो… आज फिर सपने में बड़बड़ाना शुरू कर दिया!"

- संयुक्ता त्यागी

Photo Courtesy: Freepik

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