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कहानी- मेहमान (Short Story- Mehmaan)

सहमी हुई, धबराई हुई सीमा बाहर आई.

"हरवंश… आई एम सॉरी..! मम्मी को सब मालूम हो गया है."

"ऊं… हूं…"

"जब से सुना है, वो सख़्त बीमार पड़ी हैं. रात में दो बार बेहोश हो चुकी हैं. हरवंश…" कहते-कहते उसकी आंखों में आंसू भर आए. गुमसुम खड़ा वह उसे देखता रहा.

"नहीं-नहीं… हरवंश मैं कोर्ट में शादी नहीं करूंगी… मेरी मां… तुम… तुम..!" रोती हुई वह वापस भाग गई.

हरवंश अपनी क़िस्मत की भविष्यवाणी पढ़कर उछल पड़ा. बस, अब उसकी शादी में कोई अड़चन नहीं आ सकती. इस हफ़्ते तो शादी होगी ही, सीमा ने कल ही तो कहा था कि इस हफ़्ते चलकर हम कोर्ट में शादी करेंगे.

उसने दुबारा संडे टाइम्स में सितारे और क़िस्मत का कॉलम निकाला और तफसील पर गौर करने लगा.

इस हफ्ते घर में एक मेहमान का आना लाज़िमी है. (सीमा के बगर और कौन हो सकता है?) मेहमान के आने से ख़र्चो में बढ़ोतरी होगी. (ज़रूरी बात है घर के ख़र्च और दोस्तों की दावत) क़ानूनी मामलों में कामयाबी होगी. (ज़ाहिर है शादी कोर्ट में होनी है) ख़ुशक़िस्मती के लिए मंगल और शुक्र के दिन सब्ज़ रंग का इस्तेमाल कीजिएगा. (चलेगा!)

एक-एक जुमले की भविष्यवाणी परख लेने के बाद हरवंश को पूरी तसल्ली हो गई.

संडे‌ टाइम्स का ज्योतिषी कभी ग़लत नहीं कहता. इससे पहले भी वह कई बार परख चुका था. जैसे पिछले हफ़्ते भी टाइम्स ने कुछ गैरज़रूरी ख़र्चो के बारे में लिखा था और वही हुआ.

रोज़ की तरह वह अपने दफ़्तर से निकल कर पूरे छह‌बजे सीमा के दफ़्तर पहुंचा था. सीमा ने एक पिक्चर के टिकट बुक करवा रखे थे. हरवंश ने पूछा था, "जानती हो ये शो साढ़े नौ बजे ख़त्म होगा और तुम साढ़े दस से पहले घर नहीं पहुंच सकती."

"तो क्या हुजा?"

"और तुम्हारी मम्मी!"

"कह दूंगी एक सहेली के साथ शॉपिंग करने चली गई थी." और वे दोनों पिक्चर से निकले, तो हरवंश ने कहा था, "सीमा, चलो कहीं चाय पी लें."

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"पता है साढ़े नौ बज रहे हैं. मम्मी बहुत ग़ुस्सा होंगी."

"कह देना एक सहेली के साथ शॉपिंग करने चली गई थी."

सीमा का सिक्का हरवंश ने सीमा पर ही चलाया. दोनों हंसते हुए एक रेस्टॉरेंट में घुस गए. बाहर निकले, तो सवा दस बज रहे थे. सीमा घबरा कर बोली, "अब तो फास्ट ट्रेन भी नहीं."

"टैक्सी!" हरवंश ने हाथ झुलाकर भागती हुई टैक्सी को पीछे से पकड़ लिया, "चलो, तुम्हें टैक्सी से छोड़ आता हूं."

सीमा को घर छोड़कर जब हरवंश उसी टैक्सी में घर पहुंचा, तो कुछ ज़्यादा का बिल हो चुका था. '

राशिफल में लिखा ही था कि इस हफ़्ते कुछ गैर-ज़रूरी ख़र्चे बढ़ेंगे.

अगले दिन हरवंश ने जाकर सीमा को इस नए हफ़्ते की भविष्यवाणी दिखाई. सीमा भी पढ़ कर बड़ी ख़ुश हुई. कहने लगी, "पता है, मेरे बारे में भी वही लिखा है."

"क्या लिखा है?"

"कुछ पुराने रिश्तेदारों से मन-मुटाव और सफ़र की संभावना."

"फर्स्ट क्लास!" हरवंश उछल पड़ा, "मैं सोच ही रहा था दफ़्तर से छुट्टी लेकर हफ़्ते भर के लिए कहीं हनीमून मनाने चलेंगे."

दोनों ने पक्का फ़ैसला कर लिया कि इस हफ़्ते यह ज़रूर कोर्ट में जा कर शादी कर लेंगे.

हरवंश मेहमान के आने की तैयारियां करने लगा.

उसी दिन दफ़्तर से वापसी पर उसने नई बेड शीट, नए तकिए, गिलाफ ख़रीदे. मेहमान के आने से ख़र्चो में बढ़ोतरी तो लिखी ही थी.

मंगल के रोज़ जब हरवंश घर से निकला, तो ख़्याल आया कि ख़ुशक़िस्मती के लिए सब्ज़ रंग का इस्तेमाल लिखा है. बाज़ार जाकर उसने सबसे पहले एक सब्ज़ रुमाल ख़रीदा. रुमाल ख़रीदने के बाद जाने क्या सूझी, एक दर्जन लेडीज़ रुमाल का पैकेट भी ख़रीद लिया, सीमा के लिए सरप्राइज़ गिफ्ट.

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बुधवार के दिन वह दफ़्तर देर से पहुंचा. सुबह ही नौकर से सारे घर की सफ़ाई शुरू करवा दी. जितनी पुरानी फ़ालतू चीज़ें जमा हो गई थीं, फिंकवा दी. रसोई में बहुत सारे डालडा के खाली डिब्बे जमा हो गए थे, उसने सब बाहर निकलवा दिए. स्टोव बहुत पुराना हो गया था. उसने नौकर से कह दिया, "आज शाम को आते हुए मैं एक नया स्टोव ले आऊंगा."

"साब! अचानक ये सब क्यों?"

"अरे, तुझे मालूम नहीं? शुक्रवार को मैं कोर्ट में शादी कर रहा हूं. शादी के बाद मेमसाहब सीधी घर पर आएगी."

बा‌थरूम में प्लास्टिक की टूटी हुई साबुन दानियां जमा हो गई थीं. उसने सब फेंक दी. कंघी के जगह-जगह से दांत गिर गए थे. उस बुढ़िया को भी उसने बाहर फिकवा दिया. शीशा चौंधिया चुका था. चूना मल कर उसे ख़ूब साफ़ किया, पर कुछ बना नहीं.

"इसका तो पानी मर गया है. फेंक दो इसे बाहर." नौकर ने ले जाकर रसोई में अपने लिए सजा लिया.

"और सुनो, इस टूटी कुर्सी का हत्ता आज ज़रूर ठीक करवा देना."

गुरुवार को दफ़्तर से लौटते हुए हरवंश किस्त पर टी.वी. भी ख़रीद लाया. हफ़्ते भर में उस कुंआरी कुटिया का रंग ही बदल गया.

शुक्र का दिन आया. हरवंश सुबह ही सुबह तैयार होकर कोर्ट पहुंच गया. जेब में सब्ज़ रुमाल ठूंसा हुआ था. 'हरी झंडी, लाइन साफ़' मुहावरा याद करके हरवंश अपने आप हंस पड़ा. पेपर की कटिंग अभी तक उसकी जेब में थी. टैक्सी से उतर कर उसने देखा वह कोर्ट में एक घंटा पहले पहुंच गया था. बेताबी में इधर से उधर टहलता रहा. सीमा नहीं आई. सीमा को पहले पहुंच जाना चाहिए था. वह बार-बार घड़ी देख रहा था.

घंटे भर में वह क़रीब पांच बार चाय पी गया, लेकिन सीमा नहीं आई. दस से ग्यारह, ग्यारह से बारह, बारह में एक... डेढ़ बजे कोर्ट का लंच ऑवर हो गया. उसने सीमा के दफ़्तर में फोन किया. मालूम हुआ सीमा नहीं आई. उसने छु‌ट्टी ले रखी है. टैक्सी लेकर वह सीमा के घर पहुंचा, लेकिन आज ऊपर जाने की हिम्मत नहीं हुई. मोहल्ले के एक छोटे बच्चे को भेज कर उसने सीमा को बाहर बुलवाया.

सहमी हुई, धबराई हुई सीमा बाहर आई.

"हरवंश... आई एम सॉरी..! मम्मी को सब मालूम हो गया है."

"ऊं... हूं..."

"जब से सुना है, वो सख़्त बीमार पड़ी हैं. रात में दो बार बेहोश हो चुकी हैं. हरवंश..." कहते-कहते उसकी आंखों में आंसू भर आए. गुमसुम खड़ा वह उसे देखता रहा.

"नहीं-नहीं... हरवंश मैं कोर्ट में शादी नहीं करूंगी... मेरी मां... तुम... तुम..!" रोती हुई वह वापस भाग गई.

हरवंश मायूस खड़ा दरवाज़े को घूरता रहा. फिर आहिस्ता-आहिस्ता कदम उठाता घर लौट आया. घर आया, तो एक और हंगामा खड़ा था. नौकर टी.वी. चुरा कर भाग रहा था. पड़ोसियो ने पकड़ कर उसे पुलिस के हवाले कर दिया था.

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हरवंश ख़ामोशी से जाकर बिस्तर पर गिर पड़ा. पेपर की कटिंग मसल कर उसने खिड़की से बाहर फेंक दी और तकिए में आंखें मसलता-मसलता सो गया. रोज़ की तरह अगले दिन उठा. तैयार होकर दफ़्तर‌ चला गया. शाम होते-होते हरवंश के घर मेहमान आ चुका था एक नया नौकर!

- गुलज़ार

अनुवाद: अशफ़ाक़ अहमद

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