पूनम अहमद
राहुल से तीन साल बड़ी रिया से ही फिर मैंने अपने मन की बात शेयर की, “तुम्हारे पापा के सीने में तो दिल जैसे है ही नहीं, पत्थर हैं जैसे, एक बार भी यह सोचकर उदास नहीं होते कि बेटा जा रहा है, कम से कम सालभर से पहले तो उससे मिलना नहीं होगा.”
शाम का समय था, मैं अपने बेडरूम में लेटी कोई पत्रिका पढ़ रही थी. राहुल एक बर्थडे पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रहा था, विजय ऑफिस से आ चुके थे. अपने फोन में व्यस्त थे. राहुल स़िर्फ जींस पहनकर हमारे रूम में आया, विजय की आलमारी खोलकर शर्ट्स देखने लगा. विजय ने टोका, “मेरी आलमारी क्यों खोली?” “एक शर्ट लेनी है.” “अपनी पहनो जाकर.” “नहीं, मुझे आपकी ब्लू शर्ट पहननी है, अभी प्रेस होकर आई होगी.” “यार, तुम अपने कपड़े क्यों नहीं पहनते? और यह क्या! जींस भी मेरी पहनी है?” “तो क्या हुआ पापा? बेटा हूं आपका.” राहुल अपनी चिरपरिचित मुस्कुराहट से बोला. मैं प्रत्यक्षतः तो पत्रिका पढ़ रही थी, पर मेरे कान पिता-पुत्र की बातचीत पर ही लगे थे. यह रोज़ का किस्सा है. अब चूंकि दोनों का नाप बराबर हो गया है, राहुल को मज़ा आता है रोज़ पापा के कपड़े पहनने में. उसे ब्लू शर्ट मिल गई और वह उसे पहनता हुआ हमारे रूम से निकल गया. विजय बोले, “फिर पहन गया मेरी शर्ट.” फिर राहुल को सुनाने के लिए ज़ोर से बोले, “कितने दिन पहनोगे और अब. जा ही रहे हो न, जल्दी जाओ, मेरी जान छूटेगी.” राहुल का वहीं से जवाब आया, “आपके सारे कपड़े ले जाऊंगा.” “मैं क्या पहनूंगा?” “आप अपने लिए नए ख़रीद लेना.” “वाह! यह बात भी ठीक है, मज़ा आएगा. सब नए कपड़े ख़रीद लूंगा. हां ठीक है, ले जाना सब पुराने कपड़े.” मैंने पत्रिका एक तरफ़ रखकर पूछा, “विजय, ऐसे क्यों बोलते हो, ज़रा भी नहीं सोचते तुम, ‘जान छूटेगी’ यह क्यों कहा?” “तो और क्या, जब देखो मेरी आलमारी से कुछ न कुछ निकालता रहता है, उसके पास अपने इतने कपड़े हैं, पर नहीं, मेरे ही कपड़े पहनता है आजकल.” “तुम्हें उसकी यह बात याद नहीं आएगी?” “नहीं, मैं तो चैन की सांस लूंगा.” “कैसे हो तुम! हर समय यही कहते हो!” मुझे हमेशा की तरह झुंझलाहट हुई. राहुल का जी मैट में अच्छा स्कोर आया है. उसका एडमिशन फ्रांस के एक वर्ल्डवाइड टॉप फाइव कॉलेज में हो गया है. तीन महीने बाद उसे फ्रांस चले जाना है. आजकल वह थोड़ा फ्री है. मेरे दिल को तो एक-एक दिन जैसे और भारी करता चला जा रहा है, पर आजकल मैं अक्सर इस बात पर मन ही मन चिढ़ती रहती हूं कि विजय कितने हार्टलेस हैं, एक बार भी बेटे को बाहर जाने से मना नहीं किया. जब उसने ज़िद की तो मुझे ही समझाया, “उसके सुनहरे भविष्य के लिए उसे जाने दो, उसने इस एडमिशन के लिए बहुत मेहनत की है. अगर वह विदेश जाना चाहता है और हम यह अफोर्ड कर सकते हैं, तो उसे ख़ुशी-ख़ुशी भेजो. हर समय दुखी रहकर उसके सपने पूरे होने में बाधा नहीं बनना है हमें. हम माता-पिता हैं उसके, उसका हर संभव साथ देना है.” उनकी इतनी बात सुनकर मैंने चुप्पी ओढ़ ली, पर दिल ही दिल में यही सोचा, कितने प्रैक्टिकल हैं विजय, उल्टा मैंने उन्हें विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के विषय पर राहुल से भी ज़्यादा उत्साहित देखा है. पिता-पुत्र के जोश को देखकर मैं ठंडी सांस भरकर ही रह जाती थी. कई बार मैं कह भी देती थी, “कल अगर राहुल बदल जाए, विदेशी धरती पर रहते हुए हमें भूल भी जाए, तो मुझे दोष मत देना.” इस पर विजय हंसकर कहते, “भूल गया तो क्या हुआ. जहां रहे, ख़ुश रहे, हम भी यह सोचकर ख़ुश रह लेंगे कि हमने बेटे को सेटल कर अपना फर्ज़ पूरा किया.” मैंने ग़ुस्से में कहा था, “तुम्हारे सीने में दिल है भी कि नहीं, हमेशा हर बात के लिए तैयार! क्या ज़रा भी दिल उदास नहीं होता तुम्हारा किसी भी बात पर?” “अरे, यह तो ख़ुशी की बात है. हमारा बेटा एक शानदार कॉलेज में पढ़ेगा, वहीं से उसे अच्छा जॉब भी मिलेगा. बढ़िया लाइफ जीएगा.” मैं इस बात पर अक्सर सोचती हूं कि क्या सचमुच पुरुष प्रैक्टिकल होते हैं और हार्टलेस भी? आजकल हर समय विजय को राहुल के जाने पर उत्साहित देखती हूं, तो पता नहीं दिल कैसा हो जाता है. एक दिन मैं राहुल से कह रही थी, “राहुल, तुम तो कभी हमसे एक हफ़्ता भी कहीं दूर नहीं रहे, रात ग्यारह बजे भी आते हो तो मॉम-मॉम करते घूमते हो, वहां कैसे रह पाओगे हम लोगों के बिना?” राहुल के कुछ कहने से पहले ही विजय बोल पड़े थे. “अरे, बड़ा हो गया है हमारा बेटा, कुछ ही दिनों में वहां सेट हो जाएगा, तुम ये सब बातें मत सोचो अब.” मुझे उस समय ग़ुस्सा तो बहुत आया था, पर चुप रह गई थी. राहुल के जाने का समय धीरे-धीरे पास आ रहा था और मैं विजय का उत्साह देखकर मन ही मन उन्हें हार्टलेस की उपाधि देती रही, उसकी सारी शॉपिंग विजय ऑफिस से छुट्टी लेकर भी करते रहे. राहुल से तीन साल बड़ी रिया से ही फिर मैंने अपने मन की बात शेयर की, “तुम्हारे पापा के सीने में तो दिल जैसे है ही नहीं, पत्थर हैं जैसे. एक बार भी यह सोचकर उदास नहीं होते कि बेटा जा रहा है, कम से कम सालभर से पहले तो उससे मिलना नहीं होगा.” रिया मेरी ही तरह है, बहुत ही सेंसिटिव, उसने मेरी हां में हां ही मिलाई, “हां मम्मी, पापा को जैसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. वे सचमुच बहुत ही मज़बूत दिल के हैं.” अक्सर विजय फोन पर परिचितों से बात करते हुए बहुत ही जोश से राहुल के जाने के बारे में बताते रहते. राहुल के जाने में एक हफ़्ता ही बचा था, तो विजय ने कहा, “राहुल, बुला लो अपने फ्रेंड्स को डिनर पर, तुम्हारे जाने की ख़ुशी में एक पार्टी हो जाए जाते-जाते.” मैंने उन्हें घूरा, फिर चिढ़कर कहा, “मेरा बेटा इतने दिनों के लिए जा रहा है, मेरा कोई मूड नहीं है पार्टी देने का.” राहुल शुरू हो गया, “पापा ठीक कह रहे हैं आप, मॉम बुलाने दो न फ्रेंड्स को, प्लीज़.” राहुल ने ज़िद की तो मैं मना नहीं कर पाई, सोचा जा ही रहा है अब, पता नहीं बचपन के इन दोस्तों से अब कब मिलेगा. शुरू में तो वहां अकेलापन ही लगेगा. मैंने कहा, “ठीक है, बुला लो जिसे बुलाना हो.” फिर उसके सभी दोस्तों को डिनर पर बुलाया गया. सारे दोस्त बहुत ख़ुश थे. विजय सबको स्नेहपूर्वक खाना परोसते रहे और मैं अपने आंसू छुपा-छुपाकर पोंछती ही रही. रिया मेरे मन की उदासी की प्रत्यक्ष गवाह थी. वह भी उदास थी. मैंने बड़ी मुश्किल से थोड़ा-सा खाना खाया. रात एक बजे तक राहुल के दोस्तों की महफिल जमी रही, सबके जाने के बाद राहुल मुझसे लिपट गया, “थैंक्स मॉम, बहुत मज़ा आया.” मैंने विजय को देखा, वे मुस्कुरा रहे थे. मैंने अकेले में चिढ़ते हुए कहा, “कैसे पिता हो तुम? बेटे की जाने की पार्टी में इतना ख़ुश, मेरा तो दिल बैठा जा रहा है. कैसे रहूंगी उसके जाने के बाद.” विजय ने मेरे गाल थपथपाए, “सब ठीक ही होगा रश्मि. उसे ख़ुुशी-ख़ुशी भेजो, नहीं तो वह भी दुखी रहेगा.” “काश, मेरा दिल भी तुम्हारी तरह होता.” मैंने कहा, तो विजय बस मुस्कुरा दिए. राहुल की फ्लाइट रात एक बजे थी. हम सब सात बजे के आसपास घर से निकले. विजय की कार में हम चारों और दो कारों में राहुल के दोस्त भी उसे छोड़ने एयरपोर्ट के लिए निकले. रिया आगे बैठी थी, मैं राहुल के साथ पीछे ही बैठी थी. पूरे रास्ते मैंने राहुल का हाथ पकड़े रखा. दिल पर जैसे कोई भारी वज़न रखता जा रहा था. राहुल कुछ उदास-सा था. विजय ही रास्ते भर हल्की-फुल्की बात कर माहौल सामान्य रखते रहे. मेरे पास कहने को कुछ नहीं था. मैं पूरे रास्ते आंसू ही पोंछती रही. राहुल कभी मेरे गाल पर किस कर रहा था, कभी मेरे कंधे पर पर सिर रख रहा था, कभी मुझे तसल्ली दे रहा था, “डोंट वरी मॉम, स्काइप पर रोज़ बात करेंगे. आप उदास मत हो, मैं हमेशा टच में रहूंगा.” एयरपोर्ट पहुंचकर सारे दोस्त इकट्ठा हुए. माहौल कुछ उदास-सा हुआ. सबके गले मिलकर राहुल अपनी ट्रॉली लेकर अंदर की ओर बढ़ा, तो उसके सारे दोस्त ज़ोर से बोले, “राहुल, जा जी ले अपनी ज़िंदगी.” राहुल ने पीछे मुड़कर देखा, सब दोस्तों के साथ वह भी हाथ हिलाता हुआ हंस दिया. जैसे ही राहुल आंखों से ओझल हुआ, विजय वहीं कार पर सिर टिकाकर सिसक पड़े. सारे दोस्त आसपास हैरान से खड़े रह गए. अपने माथे पर हाथ रखकर विजय सिसकियां भर रहे थे. रिया और मैंने अश्रुपूरित आंखों से एक-दूसरे को देखा. मेरा हार्टलेस जीवनसाथी तो माहौल से जैसे बेख़बर-सा फूट-फूटकर रोए चले जा रहा था. कितनी ग़लत थी मैं. हार्टलेस कहां होते हैं पुरुष. उनके सीने में भी दिल धड़कता है. उन्हें भी तो वे सब भावनाएं छूती हैं, जिन्हें हम उजागर कर देती हैं. बस, उन्हें अपने मनोभावों पर नियंत्रण रख हर परिस्थिति से जूझते हुए परिवार के हर सदस्य को संभालना आता है, बेटे के स्नेह में कमज़ोर पड़ती पत्नी को बहलाना आता है, अपने को समझाकर बेटे को दूर भेज उसके सपने पूरे करने में साथ देना आता है. सचमुच कितनी ग़लत थी मैं.अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES
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