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कहानी- आम्रपाली 1 (Story Series- Aamrapali 1)
सब ख़ुश थे. रोज़मर्रा की चिंताओं से अलग, ज़िम्मेदारियों से विलग सबके साथ एक अलग तरह के एहसास से भरी ज़िंदगी सांस ले रही थी. यह आम्रपाली भी जैसे महसूस कर रहा था, पर कुछ ऐसा भी था, जो व्हील चेयर पर असहाय बैठे शिवप्रसाद ही जानते थे और कुछ समय से महसूस करने लगे थे. वह थी उनकी वसीयत को लेकर चिंता.
‘आम्रपाली‘ में खटर-पटर शुरू हो गई थी. रंग-रोगन से लेकर कारपेंटर, रिपेयरिंग, साफ़-सफ़ाई... मतलब कि हर काम बहुत तेजी से चल रहा था. एक महीना होते-होते आम्रपाली किसी दुल्हन की तरह सज गया. गेट पर दरबान रामसिंह नियुक्त कर दिया गया था. आगे-पीछे के बड़े-बड़े लाॅन की घास की कटाई कर दी गई थी. आम्रपाली का इंटीरियर भी काफ़ी सुंदर कर लिया गया, थोड़े समय के लिये इतना ख़र्च करने में शंकर कसमसा रहा था. पर सरस और रचिता ने उसे आश्वस्त कर दिया.
शादी व इंटीरियर की पूरी ज़िम्मेदारी वेडिंग प्लानर सरस व पत्नी इंटीरियर डेकोरेटर रचिता की थी. जब भी ख़र्चे की बात होती, दोनों कह देते, ”आप फ़िक्र मत कीजिए...बेटी की शादी धूमधाम से कीजिए... रुपया कहां जा रहा है, उसका हिसाब बाद में हो जाएगा.”
दरअसल, आम्रपाली के मालिक शिवप्रसादजी के बड़े बेटे शंकर की इकलौती बेटी की शादी थी. शिवप्रसादजी की पत्नी की मृत्यु काफ़ी कम उम्र में ही हो गई थी. उनके तीन बेटे व एक बेटी इसी आम्रपाली में ही बड़े हुए, खेले-कूदे और फिर घोंसला छोड़कर उड़ चले. कुछ वर्षों तक तो शिप्रसादजी आम्रपाली में अकेले नौकर-चाकरों के साथ रहे, फिर शंकर के पास दिल्ली रहने चले गए. उनके बांया अंग लकवाग्रस्त होने के कारण पिछले लगभग 10 महीने से उनकी ज़िंदगी व्हील चेयर की होकर रह गई थी. लेकिन पोती चिंकी की शादी के लिए जब उन्होंने टूटे-फूटे शब्दों व हाव-भाव में किसी तरह अपनी दिली इच्छा व्यक्त की, कि चिंकी की शादी अंबाला के अपने पुस्तैनी घर आम्रपाली से की जाए, तो बेमन से शंकर ने मान लिया था.
सरस और रचिता के बारे में शिवप्रसादजी के एक वकील दोस्त अभय बाजपेयी ने जानकारी दी थी. उन्होंने शंकर से कहा था कि घर एक बार रिपेयर करके घर व शादी की पूरी ज़िम्मेदारी सरस और रचिता पर डाल दो... और बेफ़िक्र हो जाओ. आम्रपाली पूरी सजधज व अपनी वैभवशाली विरासत समेटे, नए कलेवर के साथ अपने उत्तराधिकारियों के स्वागत के लिए तैयार हो गया. सबसे पहले शंकर अपने पत्नी शामी, बेटी चिंकी व पिता शिवप्रसादजी के साथ पहुंचा और नीचे के तल का सबसे बड़ा कमरा हथिया लिया. उनके कमरे के बगलवाले कमरे को चिंकी ने पसंद कर लिया. आख़िर चिंकी की शादी थी, तो उसकी पसंद सर्वोपरी थी. प्रवेशद्वार के एकदम सामनेवाले कमरे में शिवप्रसादजी का इंतजा़म कर दिया गया. क्योंकि उनके साथ 10 महीने से साथ रह रहा अटेंडेंट नंदन भी रहेगा. वह बाहर वाले काॅमन टाॅयलेट का इस्तेमाल कर लेगा.
शिवप्रसादजी का दूसरा बेटा समर का परिवार भी दिल्ली में रहता था. कुछ दिन बाद समर भी अपनी पत्नी स्मिता व बेटे अभि के साथ पहुंच गया. चार बेडरूम नीचे के तल पर थे और चार ऊपर के तल पर. नीचे के तीन बेडरूम तो भर गए थे. चौथा सरस व रचिता अपने लिए रखने के लिए कह गए. उनका कहना था कि साथ रहकर काम करना अधिक सहज हो जाएगा. छोटी-छोटी ज़रूरतों के बारे में पता चलता रहेगा, इसलिए समर का परिवार ऊपर के मंज़िल पर चला गया. विवाह से एक हफ़्ता पहले मुंबई से वरूण भी पत्नी रीना व अपने दो किशोरवय बच्चों शिया व कियान के साथ आ गया. उसी दिन शिवप्रसादजी की बेटी शालिनी भी अपने पति रमन के साथ पहुंच गई. शालिनी की बेटी की शादी हो गई थी और वह अमेरिका में थी, इसलिए विवाह में शामिल नहीं हो पा रही थी.
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अब आम्रपाली पूरी तरह से आबाद व गुलज़ार हो गया था. शंकर, समर, वरूण व शालिनी चारों भाई-बहन अपने-अपने परिवारों के साथ बहुत समय बाद एक साथ रह रहे थे. ऊपर के तल पर चार बेडरूम में से समर-स्मिता व वरूण-रीना के दो कमरे, एक कमरे में अभि और कियान व एक में शालिनी अपने पति रमन के साथ, शिया ने नीचे चिंकी के साथ डेरा डाल लिया.
विवाह व सजावट का सारा इंतज़ाम, तो रचिता और सरस देख रहे थे, इसलिए घर के सदस्य आम्रपाली में रहना ख़ूब एंजाॅय कर पा रहे थे. शादी के लिए अभी एक हफ़्ता बाकी था. रोज़ ही संगीत की महफिल सज जाती. ढोलक के साथ-साथ फिल्मी गानों पर डांस का समा बांध देते. चिंकी, अभि, शिया और कियान नई पीढ़ी के तो युवा थे ही पर पिछली पीढ़ी भी कोई बुज़ुर्ग न थी और साथ में रचिता व सरस, जिन्हें जब मौक़ा मिलता उनके साथ शामिल हो जाते. उनकी उम्र ही ऐसी थी कि वे किसी भी उम्र के साथ फिट हो जाते. महफ़िल शिवप्रसादजी के कमरे से लगे हुए हाॅल में जमती. शिवप्रसादजी की व्हील चेयर उनके दरवाज़े के बीचोंबीच रख दी जाती, ताकि वे सब कुछ देख सकें और सब की उपस्थिति को महसूस कर सकें.
विवाह से पांच दिन पहले आम्रपाली के सर्वेंट क्वार्टर में वर्षों रह चुका माली जगजीवन, जो माली कम परिवार का सदस्य ज़्यादा था, अचानक आ धमका और आते ही शिवप्रसादजी के पैरों से लिपट कर रोने लगा. जगजीवन को आया देख कर सारा परिवार वहां पर सिमट आया.
”अरे जगजीवन तुम कहां चले गए थे.” शंकर उसे पिता से अलग करते हुए बोला.
”जब मालिक भी यहां से चले गए भैया, तो मैं यहां क्या करता... अकेले बंगले में रहने में डर लगता था, इसलिए अपने परिवार को गांव भेज कर एक स्कूल में मालीगिरी करने लगा. वहीं रहने के लिए कोठरी भी मिल गई.
”पर आसपास के बंगलों में लोग रह रहे थे... डरने की क्या बात थी. पिताजी बोल कर गए थे, तुम्हारी तनख़्वाह भेजते रहेंगे” समर बोला.
”तनख़्वाह की बात नहीं थी भैया. तुम जानो, अकेले बंगले में बहुत डर लगता था.”
”तुम्हें हमारे आने का कैसे पता चला?” वरूण बोला.
”स्कूल के लिए पौधे लेने जा रहा था नर्सरी. बंगले में हलचल दिखी, रामसिंह से पूछा, तो पता चला शंकर भैया की बिटिया चिंकी की शादी है. सब लोग आए हैं और मालिक भी, बस अब तो स्कूल से कुछ दिन की छुट्टी ले लूंगा... और यहीं रहूंगा.” जगजीवन ख़ुशी-ख़ुशी बोला.
”यह तो तुमने बहुत अच्छा किया जगजीवन... पिताजी को भी तुम्हारा साथ बहुत अच्छा लगेगा.” शालिनी बोली.
”पर मालिक को यह क्या हो गया बिटिया. जब यहां से गए थे, तो भले-चंगे थे.”
”उनके आधे हिस्से में लकवा मार गया जगजीवन, बोल नहीं पाते हैं ठीक से... पर समझ जाते हैं.” शालिनी दुखी होकर बोली.
सब ख़ुश थे. रोज़मर्रा की चिंताओं से अलग, ज़िम्मेदारियों से विलग सबके साथ एक अलग तरह के एहसास से भरी ज़िंदगी सांस ले रही थी. यह आम्रपाली भी जैसे महसूस कर रहा था, पर कुछ ऐसा भी था, जो व्हील चेयर पर असहाय बैठे शिवप्रसाद ही जानते थे और कुछ समय से महसूस करने लगे थे. वह थी उनकी वसीयत को लेकर चिंता.
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जब से वे लकवाग्रस्त हुये थे, तब से उनके चारों बच्चों में से जो भी उन्हें मिलने आता, उनसे अकेले में वसीयत के विषय में चर्चा अवश्य करता. चारों भाई-बहन जानना चाहते थे कि पिता ने आख़िर वसीयत की भी है या नहीं और अगर की है, तो कितना किसको दिया है. वे सब सुनते थे, समझते थे पर बहुत कुछ न बोल पाते थे, न बोलने की कोशिश करते थे. पर इतना उन्हें समझ में आ गया था कि तीनों बेटों में एक-दूसरे से ज़्यादा हिस्सा लेने की होड़ मची है...
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
सुधा जुगरान
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