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कहानी- आंखें बोलती हैं… 2 (Story Series- Aankhen Bolti Hain… 2)

"मोटरसाइकिल पंचर कर दो जी इसकी...” सुमिता बोली, "न रहेगा बांस... न बजेगी बांसुरी, हमेशा बाहर जाने की फिराक में रहता है.” "उफ्फ़!” वह झल्लाता हुआ अपने कमरे की तरफ़ चल दिया. ऐसे डांटते हैं जैसे मैं अभी भी बच्चा हूं. अरे नौकरी कर रहा हूं. दोस्तों ने मना भी किया था होम टाउन में नौकरी करने के लिए, "क्या यार, अभी भी मां-बाप के साथ ही रहेगा. घर से ही पढ़ाई और अब नौकरी. अब तो घर से बाहर निकल ले...”   ... "ओह!” वह मन ही मन शर्मिंदा हुआ. मन का सच ज़ुबान से फिसल गया था. अब फिसल ही गया, तो उसने फिर पूछ लिया, "पापा की लानी होगी.” "नहीं, पापा भी सिर्फ़ ब्लड प्रेशर की दवाई लेते हैं और वो अभी काफ़ी हैं. और तूने यह क्या दवाई-दवाई लगा रखी है. चुपचाप बैठ जाकर.” "लगता है बेचारा बोर हो गया है घर में रहकर. वर्क फ्रॉम होम, तो अब मुझे भी काट खाने को दौड़ रहा है.” पापा मनीष थोड़े मस्त स्वभाव के थे, इसलिए थोड़ी मस्ती में बोले. उसने बड़ी उम्मीद से पापा की तरफ़ देखा, चुपचाप घर में बैठो बर्खुरदार. हमेशा बाहर जाने को उतावले रहते हो. अरे यार, इसको नौकरी किसने दे दी. अभी तक स्कूल स्टूडेंटवाली हरकतें हैं...” पापा का मूड एकाएक ख़राब हो गया, ”कोई ज़रूरत होगी, तो मैं ख़ुद मैनेज कर लूंगा.” "मोटरसाइकिल पंचर कर दो जी इसकी...” सुमिता बोली, "न रहेगा बांस... न बजेगी बांसुरी, हमेशा बाहर जाने की फिराक में रहता है.” "उफ्फ़!” वह झल्लाता हुआ अपने कमरे की तरफ़ चल दिया. ऐसे डांटते हैं जैसे मैं अभी भी बच्चा हूं. अरे नौकरी कर रहा हूं. दोस्तों ने मना भी किया था होम टाउन में नौकरी करने के लिए, ”क्या यार, अभी भी मां-बाप के साथ ही रहेगा. घर से ही पढ़ाई और अब नौकरी. अब तो घर से बाहर निकल ले...” पर इकलौता बेटा होने के कारण वह बचपन से ही इतने सुरक्षित माहौल में पला कि उसने दोस्तों की सलाह नज़रअंदाज़ कर अपने होम टाउनवाली जाॅब ले ली. पर मम्मी पापा में कोई बदलाव नहीं आया. वे उसे जैसे पहले मानते थे, अब भी मानते हैं, बल्कि कभी-कभी उसे गर्लफ्रेंड के सामने बहुत शर्मिंदा होना पड़ता है. रुहानी एकदम बिंदास और दबंग है. घर से बाहर पढ़ने व जाॅब करने आई है, इसलिए उसकी मुश्किलें नहीं समझती है. यह भी पढ़ें: नवरात्रि- नवदुर्गा में प्रथम दुर्गा देवी शैलपुत्री (Navratri 2021- Devi Shailputri) कमरे में जाकर उसने झल्लाकर फोन की तरफ़ देखा, उफ्फ़! फोन देखते ही रुहानी का चेहरा याद आ जाता है. एक फोन का ही तो सहारा है. रुहानी वहां भी प्यार से बात नहीं कर सकती. उसे तो अब अपने कमरे में आने से ही डर लगने लगा है. कमरे में रुहानी का खौफ़... कमरे से बाहर मम्मी-पापा का... आख़िर करे तो क्या करे... अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें... Sudha Jugran सुधा जुगरान   अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

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