Close

कहानी- अपना अपना सहारा 1 (Story Series- Apna Apna Sahara 1)

  पति की बात सुनकर मन्दिरा को जैसे कुछ याद आ गया, “हां, जब उससे आख़िरी बार फ़ोन पर बात हुई थी, तो वो कह रहा था कि आपके लिए बहू पसन्द कर ली है. घर आऊंगा, तो सब कुछ बताऊंगा.” “तुम भी मन्दिरा, आज दो साल बाद बता रही हो.” “मैं क्या करती? उसके बाद ही तो उसका एक्सीडेंट हो गया. फिर मुझे क्या होश था?” “लेकिन मन्दिरा, अगर सच में कोई लड़की उसकी ज़िन्दगी में थी तो उसका क्या हाल हुआ होगा? अब तक तो उसने शादी कर ली होगी. और क्या पता उसके कारण ही उसका एक्सीडेंट भी हुआ हो.” “नहीं, उस समय कार में तुषार अकेला था और ग़लती आगे से आ रहे ट्रक वाले की थी. अच्छा, अब ये सब मत सोचो. मन्दिर भी जाना है.” ''मन्दिरा, क्या सोच रही हो?” सुबह-सुबह खिड़की पर खड़े मयंक की आवाज़ सुनकर मन्दिरा ने आंखों से आंसू पोंछते हुए कहा, “आज तुषार को गए पूरे दो साल हो गए. याद है, आज उसकी बरसी है. मयंक, भगवान ने हमारे साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों किया? उसे बुलाना ही था तो मुझे ही बुला लेता अपने पास. अब आगे की ज़िन्दगी कैसे कटेगी? हमारी इकलौती औलाद ही हमसे छीन ली ईश्‍वर ने.” कहते हुए मन्दिरा मयंक से लिपटकर रोने लगी. मयंक पत्नी को चुप कराते हुए कहने लगा, “काश, उसने शादी की होती तो आज कम-से-कम एक बहू तो होती, जो हमारे बुढ़ापे का सहारा बनती. कम-से-कम अमेरिका में ही अपनी पसन्द की लड़की से शादी कर लेता.” पति की बात सुनकर मन्दिरा को जैसे कुछ याद आ गया, “हां, जब उससे आख़िरी बार फ़ोन पर बात हुई थी, तो वो कह रहा था कि आपके लिए बहू पसन्द कर ली है. घर आऊंगा, तो सब कुछ बताऊंगा.” “तुम भी मन्दिरा, आज दो साल बाद बता रही हो.” “मैं क्या करती? उसके बाद ही तो उसका एक्सीडेंट हो गया. फिर मुझे क्या होश था?” “लेकिन मन्दिरा, अगर सच में कोई लड़की उसकी ज़िन्दगी में थी तो उसका क्या हाल हुआ होगा? अब तक तो उसने शादी कर ली होगी. और क्या पता उसके कारण ही उसका एक्सीडेंट भी हुआ हो.” “नहीं, उस समय कार में तुषार अकेला था और ग़लती आगे से आ रहे ट्रक वाले की थी. अच्छा, अब ये सब मत सोचो. मन्दिर भी जाना है.” यह भी पढ़े: हेमा मालिनी… मां बनना औरत के लिए फख़्र की बात होती है  बेटे की बरसी का कार्यक्रम उन्होंने मन्दिर में सादे तरी़के से किया. शाम के क़रीब छ: बजे थे कि दरवाज़े की घण्टी बजी. मयंक ने उठकर दरवाज़ा खोला तो सामने सलवार-कमीज़ पहने एक लड़की खड़ी थी. उसने अपना परिचय तुषार की सहकर्मी के रूप में दिया. दोनों अमेरिका में एक ही हॉस्पिटल में डॉक्टर थे. उसने बताया कि उसका नाम प्रियंका है और वो पूरे दो साल बाद भारत लौटी है. उन लोगों से ऐसे ही मिलने चली आई है. वो पूरे दो घण्टे रही और इन दो घंटों में उसने घर का वातावरण ही बदल दिया था. कितने दिन बाद घर में हंसी की आवाज़ आई थी. जाते समय प्रियंका ने पूछा, “आप लोगों को मेरा आना बुरा तो नहीं लगा? आप लोगों को अगर...” मन्दिरा ने बीच में ही कह दिया, “नहीं, तुमसे मिलकर तो बहुत अच्छा लगा. तुम किसी दिन खाने पर आओ अपने घरवालों के साथ.” प्रियंका के जाने के बाद मन्दिरा ने मयंक से पूछा, “मैंने उसे खाने पर बुलाकर ग़लत तो नहीं किया?” पति के ना में सिर हिलाने पर उसे राहत मिली. इसके बाद प्रियंका दो बार तुषार के घर आई. एक बार अपने भाई-भाभी के साथ भी आई थी. परिवार में उसके भाई-भाभी ही थे. प्रियंका ने कई बार उन्हें अपने घर बुलाया, पर हर बार वे टाल जाते. फिर अचानक एक महीने तक प्रियंका नहीं आई. उसका फ़ोन नंबर भी मन्दिरा से खो गया था. अक्सर दोनों की आंखें दरवाज़े पर लगी रहती थीं.

- नीतू

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करेंSHORT STORIES

Share this article