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“रिटायर्ड होना बेचारगी कब से हो गई भला? यह तो एक नियम के तहत सामान्य प्रक्रिया है कि साठ साल की उम्र में व्यक्ति रिटायर हो जाएगा. ऐसा नहीं होगा, तो नवयुवकों को रोज़गार कैसे उपलब्ध होंगे? नहीं, रिटायरमेंट इसकी वजह नहीं, मानसिकता ही ऐसी होती है. अपने बच्चों से तालमेल बैठाने का प्रयास करने की बजाय उनकी आलोचना करना, महंगाई को रोते रहना, व्यर्थ की राजनीतिक चर्चा- ये सब खाली लोगों के लिए टाइमपास के साधन हैं.” वे तर्क देते, किंतु आज उनके सभी तर्क व़क्त और हालात की चादर के नीचे दबे सिसकियां ले रहे थे. दस दिन पहले वे स्वयं रिटायर हो चुके थे. कई दिनों तक पार्टियां चलती रही थीं. घर में मित्रों और रिश्तेदारों का आना-जाना जारी था, किंतु जब सब चले गए, तब उन्हें एहसास हुआ कि उनकी ज़िंदगी की कितनी बड़ी घटना घटी है. सर्विस से रिटायर हो जाना कोई छोटी घटना तो है नहीं. ज़िंदगी की तस्वीर ही बदल जाती है उसके बाद और इस समय तो उन्हें और भी सूनापन लग रहा था, क्योंकि घर में उनके और अंजलि के अतिरिक्त कोई नहीं था. उनके रिटायरमेंट के दो दिन बाद बेटा आरव, बहू रिचा और तीन वर्षीय पोता सनी, रिचा की छोटी बहन की शादी में इंदौर चले गए थे. घर में सन्नाटा छाया हुआ था. पिछले दो दिनों से वह इसी प्रश्न पर अटके हुए थे कि अब ज़िंदगी कैसे कटेगी? रेनू मंडलअधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करें – SHORT STORIES
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