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कहानी- बाजूबंद ५ (Story Series- Bajuband 5)

“यह कहानी तुम्हारी बनाई हुई है या सुकेश की?” राकेश के स्वर का आक्रोश और सख्ती बता रही थी कि वे इस बात को लेकर बहुत गंभीर हैं. मैंने डरते-डरते सच्चाई उगल डाली. “काश! उसने यह मां-बाउजी के रहते स्वीकार किया होता, तो वे दोनों असमय कालकलवित न होते.” राकेश शांत थे मानो उन्हें सब पता था.

         

... उफ! मुझे तो ध्यान ही नहीं रहा सवेरे कपड़े निकालने के लिए राकेश आलमारी खोलेगें. उनकी आंखों में उभरते संदेह के बादलों ने मुझे चौंकाया. कहीं ये मुझे तो चोर नहीं समझ रहे? “अं... रात में सुकेश भैया दे गए थे. घर में ही मांजी के कपड़ों में रखा मिल गया था.” “यह कहानी तुम्हारी बनाई हुई है या सुकेश की?” राकेश के स्वर का आक्रोश और सख्ती बता रही थी कि वे इस बात को लेकर बहुत गंभीर हैं. मैंने डरते-डरते सच्चाई उगल डाली. “काश! उसने यह मां-बाउजी के रहते स्वीकार किया होता, तो वे दोनों असमय कालकलवित न होते.” राकेश शांत थे मानो उन्हें सब पता था. “... बाउजी को न जाने क्यों सुकेश पर शक हो गया था? आश्‍चर्य की बात है क्षीण होती स्मरणशक्ति के बावजूद बाउजी को जाने कैसे याद था कि 12 मार्च 2009 को वे यहां लखनऊ में थे, तो फिर लॉकर कैसे ऑपरेट हुआ? घर जाने पर वे मुझे लेकर बैंक गए थे. उस दिन के सीसी टीवी फुटेज निकलवाए थे. उसमें सुमन और सुकेश को देखकर हमें सांप सूंघ गया था. बाउजी को गहरा सदमा लगा था. कहीं वे भी इसे मां की तरह दिल से लगाकर... इसलिए मैं उन्हें ख़ूब समझाता था कि इंसान कभी-कभी परिस्थितिवश ग़लत कदम उठा लेता है. सुकेश की कमज़ोर आर्थिक स्थिति, दो-दो बच्चियों का बोझ, सुमन का असहयोगी रवैया... शायद हमसे ही उसकी मदद करने में कमी रह गई है. बाउजी मेरे गले लगकर फूट-फूटकर रोए थे.”

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“एक ही खून से पैदा दो इंसानों की सोच में कितना भेद है? तू देवता है और वो?” “है तो अपना ही खून न बाउजी. उसे जलील करेगें तो क्या हमारा खून, हमारा घर-परिवार जलील नहीं होगा? बुराई को बुराई से नहीं भलाई से समाप्त किया जा सकता है. आपने ही तो सिखाया है. देखना, हमारा प्यार उसका मन बदलकर एक दिन अवश्य उसे पश्‍चाताप के लिए मजबूर कर देगा.” राकेश के बड़प्पन ने मुझे एक बार फिर अभिभूत कर दिया था. कैसे बताती कि बाउजी के दिमाग़ में अनजाने शक का कीड़ा मैंने ही डाला था. मन ही मन मैंने प्रायश्‍चित सोच डाला. “अब 72 की उम्र में ऐसा भारी बाजूबंद पहनकर मैं कहां जाऊंगी? सोचती हूं तुड़वाकर इसके दो हल्के बाजूबंद बनवा लूं. जब हमारी बेटियां पिंकी-मिंकी मुझ के लिए आएगीं, तब उन्हें दे देगें... टूटकर जोड़े रहोगे.” कहते हुए मैंने बाजूबंद को चूम लिया. और भावविभोर राकेश ने मुझे.

          [caption id="attachment_182852" align="alignnone" width="246"] संगीता माथुर[/caption]

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