Close

कहानी- बुद्धिबली 3 (Story Series- Budhibali 3)

इस बीच मौक़ा देख गरिमा ने नीरज को फोन मिलाया और फुसफुसाते हुए बोली, “अगर मुझसे प्यार करते हो, तो एक पल भी गंवाए बिना कॉलेज आ जाओ और मेरा पर्स लेकर दौड़ते हुए वापस चले जाओ. कोई तुम्हें पहचानने न पाए, इसलिए हेलमेट पहने रहना.” “क्या हुआ ? तुम ठीक तो हो?” नीरज बुरी तरह घबरा उठा. “कुछ बताने के लिए समय नहीं है. बस, इतना समझ लो कि अगर मेरा पर्स सुरक्षित रहा, तो मैं भी सुरक्षित रहूंगी.” गरिमा ने कहा और फोन काट दिया. “चलो घड़ी उतारो.” गरिमा ने धमकी की परवाह न करते हुए उसकी कलाई थाम ली. “तू जानती नहीं, मैं यहां के विधायक का बेटा हूं. चुपचाप घड़ी छोड़, वरना अंजाम अच्छा न होगा.” लड़का गरिमा से छीना-झपटी करने लगा. “लायक बाप के लायक सपूत! ज़रा पीछे मुड़कर देखो, क्या लिखा है?” अविचलित गरिमा ने एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा. लड़के ने पीछे मुड़कर देखा. दीवार पर चिपके काग़ज़ पर साफ़-साफ़ शब्दों में लिखा था ‘आप कैमरे की नज़र में हैं’ यह देख वह हड़बड़ा गया. गरिमा उसे डपटते हुए बोली, “चुपचाप खड़े रहे, तो केवल नकल करने के अपराध में कॉपी ज़ब्त करूंगी. अगर ज़रा-सी भी बदतमीज़ी की, तो कैमरे में हुई रिकॉर्डिंग के आधार पर महिला पर हमला करने के जुर्म में जेल भिजवा दूंगी. उसके बाद तुम्हारे पूज्य पिताजी अदालतों के चक्कर लगाते रहेंगे.” लड़के ने ऐसी स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी. उसकी समझ में ही नहीं आया कि क्या करे. इसलिए हतप्रभ खड़ा रहा. इस बीच शोर सुन मुख्य निरीक्षक शर्माजी भी वहां आ गए थे. गरिमा कॉपी और घड़ी ज़ब्त करने की कार्रवाई करने लगी. वह लड़का शर्माजी से बात करने लगा. उसका परिचय जान शर्माजी ने उस लड़के को छोड़ देने के लिए काफ़ी समझाया, लेकिन गरिमा नहीं मानी. हारकर वे प्रिंसिपल से मिलने चले गए. इस बीच मौक़ा देख गरिमा ने नीरज को फोन मिलाया और फुसफुसाते हुए बोली, “अगर मुझसे प्यार करते हो, तो एक पल भी गंवाए बिना कॉलेज आ जाओ और मेरा पर्स लेकर दौड़ते हुए वापस चले जाओ. कोई तुम्हें पहचानने न पाए, इसलिए हेलमेट पहने रहना.” “क्या हुआ ? तुम ठीक तो हो?” नीरज बुरी तरह घबरा उठा. “कुछ बताने के लिए समय नहीं है. बस, इतना समझ लो कि अगर मेरा पर्स सुरक्षित रहा, तो मैं भी सुरक्षित रहूंगी.” गरिमा ने कहा और फोन काट दिया. यह भी पढ़े: हेमा मालिनी- “मैंने ज़िंदगी में बहुत एडजस्टमेंट्स किए हैं” जैसे कि आशा थी, पंद्रह मिनट बाद प्रिंसिपल का बुलावा आ गया. नीरज अभी तक नहीं आया था, इसलिए गरिमा के माथे पर चिंता की रेखाएं छाने लगी थीं, किन्तु उसने आगे बढ़े क़दमों को पीछे खींचना सीखा ही न था. वह प्रिंसिपल से मिलने चल दी. सामने गेट से एक नेताजी दो अंगरक्षकों के साथ लपकते हुए चले आ रहे थे. उनका चेहरा तमतमाया हुआ था. गरिमा समझ गई कि वे विधायक जी ही हैं. चक्रव्यूह रच गया था, अब उसकी परीक्षा होनी शेष थी. गरिमा पलभर के लिए झिझकी, तभी उसकी दृष्टि नेताजी के पीछे लगभग दौड़ते हुए आ रहे नीरज पर पड़ी. वह भी अपनी पूरी शक्ति से नीरज की ओर दौड़ी और अपना बड़ा-सा पर्स उसे थमाते हुए बोली, “कुछ भी बताने का व़क्त नहीं है. बस, इतना समझ लो कि यह पर्स ही मेरी जान है. अगर यह सुरक्षित रहेगा, तो मैं भी सुरक्षित रहूंगी, इसलिए फ़ौरन यहां से दूर निकल जाओ.” “लेकिन गरिमा, मैं तुम्हें इस तरह संकट में छोड़कर नहीं जा सकता.” नीरज के होंठ थरथराए. संजीव जायसवाल ‘संजय’
अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करेंSHORT STORIES
[amazon_link asins='8129147386,8189852485,B008OKBBKG,0062506676' template='ProductCarousel' store='pbc02-21' marketplace='IN' link_id='31bd2b3b-01d6-11e8-b9b0-47c07ac217ea']

Share this article