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कहानी- चिड़ियां दा चंबा 1 (Story Series- Chidiyan Da Chamba 1)

 

(‘चिड़ियां दा चंबा’ मतलब चिड़ियों का झुंड)

श्यामली को राघव बचपन से ही जानता था. जब से उसे समझ आई वह उसे अच्छी-सी लगने लगी थी. कितनी उम्र होगी तब उसकी जब पहली बार उसने श्यामली के प्रति कुछ अलग-सा आकर्षण महसूस किया था? १५-१६ के आसपास? कोई आपको क्यों अच्छा लगता है, कोई कारण बता सकते हैं आप? नहीं न? परिचितों में कोई विशेष एक मन को भा जाता है बस. यूं महसूस होता है वह दुनिया में आपके ही लिए आया है.

     

राघव जब कल रात छुट्टी पर घर आया, तभी उसे पता चल गया था कि श्यामली आई हुई है. परन्तु पूरा दिन बीत जाने पर भी वह जाकर श्यामली से मिलने का समय नहीं निकाल पाया था. ‘समय नहीं निकाल पाया अथवा हिम्मत नहीं जुटा पाया था?’ उसके भीतर से किसी ने प्रश्न किया. कभी-कभी हम स्वयं को ही धोखा देने की प्रयत्न करते हैं न? बातों से फुसला देने का प्रयत्न. सच तो यह था कि वह श्यामली से मिलने जाने की, उसका सामना करने कि हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहा था राघव, इसलिए नहीं गया था, जबकि मन तो पूरा दिन श्यामली के गिर्द घूमता रहा. श्यामली को राघव बचपन से ही जानता था. जब से उसे समझ आई वह उसे अच्छी-सी लगने लगी थी. कितनी उम्र होगी तब उसकी जब पहली बार उसने श्यामली के प्रति कुछ अलग-सा आकर्षण महसूस किया था? १५-१६ के आसपास? कोई आपको क्यों अच्छा लगता है, कोई कारण बता सकते हैं आप? नहीं न? परिचितों में कोई विशेष एक मन को भा जाता है बस. यूं महसूस होता है वह दुनिया में आपके ही लिए आया है.

 

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राघव की छोटी बहन निधि की सहेली थी श्यामली. दोनों एक ही कक्षा में पढ़ती थीं और आसपास घर होने से स्कूल के बाद भी संग खेलना-कूदना चलता. लड़कों की तरह नहीं होते इन लड़कियों के शौक कि स्कूल से लौटते ही साइकिल उठाई और चल दिए इधर-उधर मटरगश्ती करने. घर से निकलने के बाद विचारा जाता है कि साइकिल का रुख़ किधर मोड़ना है. सायंकाल या तो निधि श्यामली के घर होती या श्यामली निधि के घर. छुटपन में वह गुड़ियों के संग खेलती थीं या फिर टीचर-टीचर. एक टीचर बनती एक छात्रा और अपनी अध्यापिकाओं की नक़ल की जाती. थोड़ा बड़े होने पर वह शौक भी जाता रहा. बस कमरे में बैठी देर तक खुसर-पुसर करती, बिना बात हंसतीं. राघव हैरान होता, कितनी ढेर सारी बातें होती हैं इन लड़कियों के पास, वह सोचता. थोड़ी-थोड़ी देर में उन दोनों की हंसी गूंज जाती. राघव इसी बात से संतुष्ट रहता कि श्यामली उनके घर आई हुई है. श्यामली के पिता का बहुत पहले देहान्त हो चुका था. वह सेना में थे पर उनकी मृत्यु शान्तिकाल में सीमा पर चौकसी करते हुए गोली लग कर हुई थी. पैन्शन से घर चल रहा था.

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बहुत कर्णप्रिय था उसका नाम श्यामली पर उसके अनुरूप बिल्कुल नहीं. गोरा उजला रंग, तीखे नैन-नक़्श, औसत क़द-काठी. लगता था उसकी आंखें चेहरे के भीतर से कहीं तार द्वारा उसकी होंठों से जुड़ी हुई हैं. होंठों पर मुस्कान आते ही आंखें स्वयं चमक उठती. सिर्फ़ आंखें देखकर ही जान सकते थे कि वह मुस्कुरा रही है. चुलबुली और बिंदास. शर्मीले राघव को उसका अपने से विपरीत स्वभाव ही आकर्षित करता था.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...

Usha Wadhwa

उषा वधवा

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