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कहानी- कॉकटेल बनाम मॉकटेल 4 (Story Series- Cocktail Banam Mocktail 4)
"क्या एकमात्र पति का संतुष्ट होना ही सुखी गृहस्थी होती है? वह जो भी है, जैसा भी है ठीक है. सारी ज़िंदगी स्त्री को ही अलग-अलग सांचों में ढलना है? कभी ख़ुद को पिता की इच्छा के अनुरूप ढालना है, कभी भाई की, तो कभी पति की. उसकी अपनी इच्छा, अपना मौलिक स्वरूप तो कहीं खो-सा गया है. एक मॉकटेल बनकर रह गई है वो! हर कोई उसमें अपनी पसंद का स्वाद और सुगंध खोजता है और पाकर परितृप्त भी होता है. लेकिन पुरुष ख़ुद क्या है? महज़ एक कॉकटेल! हार्डड्रिंक! जो किसी के साथ मिक्स नहीं हो सकती... एक कड़वा घूंट, जिसे बस किसी तरह हलक से नीचे उतारना है."
कितना ख़्याल है भाभी को उसकी रूचि-अरूचि, पसंद-नापसंद का... और कितना आक्रोश है इनके मन में इस बात को लेकर कि इतनी शिक्षित होते हुए भी मैं पति की हर जायज़-नाजायज़ मांग मूक बनी रहकर पूरी करती रहती हूं. आपका यही स्नेह तो मेरा संबल है भाभी... उपयुक्त मौक़ा आने दीजिए, आपकी यह बहन जैसी ननद आपको निराश नहीं करेगी.
सोचते हुए कृतज्ञता से तनु ने भाभी का हाथ दबा दिया. नंदिनी यह सोचकर और भी उदास हो गई कि उसकी ननद कितनी भोली और नादान है, जो पसंद के एक परांठे से ही ख़ुद को कृतकृत्य समझने लगी है. यह किस मुंह से पति की ग़लत बात का प्रतिकार कर पाएगी और अपने दिल की बात उनसे कहने का साहस जुटा पाएगी? काश मैं आपकी कुछ मदद कर पाती दीदी!
अपराधबोध के शिकंजे में जकड़ी नंदिनी घुटन महसूस करने लगी, तो प्लेटें समेटने के बहाने उठ खड़ी हुई.
व्यक्त-अव्यक्त विचारों के द्वंद्व में दो दिन और गुज़र गए.
जैसे-जैसे तनु दीदी, जीजाजी के जाने का दिन समीप आता जा रहा था नंदिनी के मन की घुटन एक जबरन लादे अपराधबोध के कारण बढ़ती जा रही थी. उस संध्या वे किसी रिश्तेदार के यहां खाने पर आमंत्रित थे. विदेश जाने से पूर्व ऐसे आमंत्रणों का दौर चलता ही है. "अब आप अपने कपड़े पैक ही रहने दीजिए तनु दीदी. आज आप मेरी साड़ी पहन लीजिए. यह पिंक फूलों वाली साड़ी, आपको बहुत पसंद भी है." नंदिनी के इसरार पर तनु उसकी दी साड़ी पहनकर उसे दिखाने आ गई. मैचिंग टॉप्स और छोटी-सी मेचिंग बिंदी में तनु का परंपरागत रूप निखर आया था.
"कितनी सुंदर लग रही है न दीदी!" नंदिनी ने मयंक का ध्यान आकृष्ट करना चाहा, पर वह अपनी टाई की नॉट बांधने में तल्लीन था. नंदिनी ने एक डिब्बा खोलकर ख़ूबसूरत जड़ाऊ पिंक चूड़ियों का सेट निकाला और प्यार से तनु दीदी को पहनाने लगी.
"यह चूड़ियों का सेट इस साड़ी पर बहुत फबेगा. यह साड़ी और यह सेट आप अपने साथ ले जाना दीदी. कभी अपने मन का भी तो पहन लेना." तनु दीदी अपने कमरे में चली गईं, तो मयंक का ग़ुस्सा भड़क उठा, "तुम हर वक़्त तनु को अपने पति के ख़िलाफ़ जाने के लिए क्यों उकसाती रहती हो? क्यों उनकी सुखी गृहस्थी में आग लगाना चाहती हो?"
नंदिनी इस अप्रत्याशित आरोप से एकबारगी तो हतप्रभ रह गई, पर फिर इतने दिनों का जमा आक्रोश, दबा हुआ अपराधबोध सब लावा बनकर फूट पड़ा, "क्या एकमात्र पति का संतुष्ट होना ही सुखी गृहस्थी होती है? वह जो भी है, जैसा भी है ठीक है. सारी ज़िंदगी स्त्री को ही अलग-अलग सांचों में ढलना है? कभी ख़ुद को पिता की इच्छा के अनुरूप ढालना है, कभी भाई की, तो कभी पति की. उसकी अपनी इच्छा, अपना मौलिक स्वरूप तो कहीं खो-सा गया है. एक मॉकटेल बनकर रह गई है वो! हर कोई उसमें अपनी पसंद का स्वाद और सुगंध खोजता है और पाकर परितृप्त भी होता है. लेकिन पुरुष ख़ुद क्या है? महज़ एक कॉकटेल! हार्डड्रिंक! जो किसी के साथ मिक्स नहीं हो सकती... एक कड़वा घूंट, जिसे बस किसी तरह हलक से नीचे उतारना है."
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अपनी भड़ास निकल जाने के बाद नंदिनी काफ़ी हल्का महसूस कर रही थी. मयंक अवाक् था. लेकिन दोनों ही इस तथ्य से अनजान थे कि कान लगाकर उनकी बातें सुन रहा एक युगल स्वयं को मन ही मन बदलने का निर्णय ले चुका था. सुजय शर्मिंदगी के मारे अपनी पत्नी से नजरें चुराने को विवश हो रहा था, तो उधर तनु... मन में बढ़ते आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के वज़न ने उसके तन को फूल-सा हल्का कर दिया था.
संगीता माथुर
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