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कहानी- कोरोना 3 (Story Series- Corona 3)

 

कॉलेज गेट पर बड़ा-सा ताला लगवा दिया गया. बिना अनुमति न कोई अंदर आ सकता था, न जा सकता था. गार्ड, प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन जैसे कुछ अति आवश्यक कर्मचारियों को तुम्हारे दादा ने अपनी सील और हस्ताक्षरयुक्त पास जारी कर दिए थे. इतना ही नहीं घर के बरामदे में झाड़ू लगाकर घर का कचरा बाहरवाले कूड़ेदान में खाली करने वे स्वयं जाते थे.

      ... "अरे यह तो मैजिक है!" किंशु चहक उठा. "बस यही मैजिक, तो हमें करना था और हम कर नहीं पा रहे थे. कुछ लापरवाह लोगों के असहयोग के कारण कोरोना फैलता ही जा रहा था. लोग घरों में बंद होने को तैयार ही नहीं थे. कोई न कोई रोड पर आ ही जाता था. जबकि छोटे-छोटे बच्चे तक को पता था कोरोना यानी कोई रोड पर न आना. तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू के दिन शाम 5 बजे सभी को अपने-अपने घरों की बालकनी से चिकित्सकों, स्वयंसेवकों, पुलिस, प्रशासन आदि का मनोबल बढ़ाने के लिए ताली, थाली, शंख, घंटी आदि बजाने का आह्यान भी किया था. हम सभी ने पूरे उत्साह से ऐसा किया था." "सच दादी, आपने बजाई थी?" "हां, मैंने शंख बजाया था." दादी ने गर्व से बताया.   यह भी पढ़ें: भजन भी एक प्रकार का मंत्र होता है और पूजा में क्यों जलाया जाता है कपूर, जानें ऐसी हिंदू मान्यताओं के पीछे क्या हैं वैज्ञानिक कारण! (Scientific Reasons Behind Hindu Traditions)   "और मैंने ताली. और मेरी तालियों में एक ताली तुम्हारी दादी के लिए भी थी. उन दिनों तुम्हारी दादी सहित सभी गृहिणियों का कार्यभार अचानक ही बहुत बढ़ गया था. एक तो कार्यालय, स्कूल, कॉलेज बंद होने से सभी चौबीसों घंटे घर पर ही रहते थे. दूसरे बाइयों का प्रवेश निषेध कर दिया गया था..." दादा की बात अधूरी ही रह गई, क्योंकि दादी को अचानक कुछ याद आ गया था. "प्रिंसिपल होने के नाते तुम्हारे दादा पर संपूर्ण कॉलेज परिसर की ज़िम्मेदारी थी. हाॅस्टल तो समय रहते खाली करवा दिए गए थे. सभी बच्चे घर चले गए थे, पर परिसर में रह रहे स्टाफ परिवारों को सुरक्षित रखना भी तो उन्हीं का दायित्व था. कॉलेज गेट पर बड़ा-सा ताला लगवा दिया गया. बिना अनुमति न कोई अंदर आ सकता था, न जा सकता था. गार्ड, प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन जैसे कुछ अति आवश्यक कर्मचारियों को तुम्हारे दादा ने अपनी सील और हस्ताक्षरयुक्त पास जारी कर दिए थे. इतना ही नहीं घर के बरामदे में झाड़ू लगाकर घर का कचरा बाहरवाले कूड़ेदान में खाली करने वे स्वयं जाते थे." "हां, मुझे याद है. मैं भी पापा की मदद करता था और हमें ऐसा करते देखकर बाकी सब भी अपने घर-बाहर की साफ़-सफ़ाई स्वयं करने लगे थे." राहुल ने सहमति व्यक्त की. "शुरू के 4-5 दिन तो बड़ी मुश्किल आई. झाड़ू-पोंछा, बर्तन करते कमर अकड़ गई थी, पर फिर धीरे-धीरे आदत होती चली गई. तुम सब लोग बराबर मदद कर रहे थे, तो फिर काम इतना बोझ नहीं लगता था. घर के और ऑफिस के काम निबट जाते, तो सब लोग नेटफ्लिक्स पर कोई मूवी लगाकर बैठ जाते. अरे हां, उस वक़्त दूरदर्शन पर पुराने धारावाहिक रामायण, महाभारत, सर्कस, शक्तिमान आदि का भी पुर्नप्रसारण आरंभ कर दिया गया था, क्योंकि टीवी, सिनेमा की शूटिंग तो रूक गई थी..." यह भी पढ़ें: बच्चों की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए उन्हें खिलाएं ये 10 सुपरफूड (10 Immunity Boosting Foods For Kids)   "पापा सर्वेंट क्वार्टर में रखा बड़ा-सा कैरम, लूडो, सांप-सीढ़ी आदि भी तो निकाल लाए थे. जो मेरे और दीदी के बाहर चले जाने के बाद कुछ काम नहीं आ रहे थे." याद दिलाते राहुल का मानो बचपन ही लौट आया था. दादी भी उत्साहित हो उठीं...

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...

        [caption id="attachment_182852" align="alignnone" width="246"] संगीता माथुर[/caption] अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

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